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बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी के खिलाफ पश्चिम बंगाल के मुस्लिम युवक ने उठाई आवाज, 72 घंटे का रखा रोजा

By विनीत कुमार | Published: July 21, 2021 2:25 PM

बकरीद के मौके पर जहां जानवरों की कुर्बानी देने की परंपरा इस्लाम में रही है। वहीं, एक मुस्लिम शख्स ने जानवरों पर क्रूरता के खिलाफ 72 घंटे का रोज रखने का फैसला किया है।

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ठळक मुद्देकोलकाता के 33 साल के एक मुस्लिम शख्स अल्ताब हुसैन ने बकरीद पर रखा है रोजाअल्ताब हुसैन 2014 से ही जानवरों के अधिकार के लिए आवाज उठाते रहे हैंअल्ताब मांस,मछली सहित डेयरी उत्पाद, शहद और चमड़े से बनी चीजों का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं

बकरीद (ईद उल अजहा, Eid ul Adha 2021) का त्योहार आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस बीच कोलकाता के 33 साल के एक मुस्लिम शख्स अल्ताब हुसैन ने इस मौके पर 72 घंटे का रोजा (उपवास) रखने का फैसला किया है। इस शख्स ने मंगलवार रात से अपना उपवास शुरू कर दिया।

बकरीद पर क्यों मुस्लिम शख्स ने रखा है उपवास

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार बकरीद के त्योहार के मौके पर भाई द्वारा कुर्बानी देने के लिए लाए गए जानवर से अल्ताब बेहद उदास थे। वह नहीं चाहता है कि किसी जानवर को इस मौके पर मारा जाए।

अल्ताब हुसैन ने कहा, 'जानवरों के खिलाफ बहुत क्रूरता हो रही है और इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा रहा है। मैंने 72 घंटे के उपवास का फैसला किया है ताकि लोगों को महसूस हो कि जानवरों की कुर्बानी जरूरी नहीं है। वे जब ऐसा करते हैं तो काफी क्रूरता जानवरों पर की जाती है।'

जानवरों पर क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं अल्ताब

अल्ताब हुसैन 2014 से ही जानवरों के अधिकार के लिए आवाज उठाते रहे हैं। एक डेयरी इंडस्ट्री में जानवरों के साथ हो रहे व्यवहार से संबंधित वीडियो देखने के बाद उन्होंने ऐसा करने का फैसला किया था। इसके बाद उन्होंने जानवरों को मारे जाने का विरोध शुरू कर दिया। वे वीगन बन गए और चमड़े आदि का इस्तेमाल भी बंद कर दिया।

हुसैन ने बताया, 'मैं भी पहले जानवरों की कुर्बानी में साथ देता था। लेकिन जब मैंने एक वीडियो देखा कि कैसे एक गाय से दूध निकालने के लिए उसे इंजेक्शन किया जाता है, बछड़ों को अलग कर दिया जाता है और उन्हें कसाईखाने में भेज दिया जाता है तो मुझे लगा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।'

हुसैन बताते हैं कि उन्होंने डेयरी उत्पाद से अपना विरोध शुरू किया था और अब वे जानवरों को मारे जाने के खिलाफ हैं। उन्होंने बताया कि वे अब मांस, मछली, शहद आदि भी नहीं खाते और चमड़े के उत्पाद का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं।

बकरीद पर तीन साल पहले भी किया था विरोध

हुसैन ने तीन साल पहले भी ऐसे ही विरोध किया था जब उनके भाई एक जानवर को कुर्बानी के लिए ले आए थे। अल्ताब हुसैन तब उस जानवर को बचाने में कामयाब रहे थे। हालांकि उनका परिवार उनके इस फैसले का साथ नहीं देता है।

अल्ताब हुसैन बताते हैं कि कई बार उन्हें हिंदू समुदाय से भी आलोचना का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे डेयरी उत्पाद के इस्तेमाल का विरोध करते हैं। हुसैन के अनुसार भले ही उनकी बात से की कई लोग सहमत नहीं हों लेकिन वे अपना शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखेंगे।

टॅग्स :बक़रीदइस्लामपश्चिम बंगाल
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