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Parliament 75 years: मोरारजी को क्यों भूल गए मोदीजी?

By हरीश गुप्ता | Published: September 29, 2023 3:20 PM

Parliament 75 years: प्रधानमंत्री ने बहुत सावधानी से अपने शब्दों का चयन करते हुए प्रत्येक के पिछले 75 वर्षों के दौरान भारत निर्माण में उनके योगदान के बारे में कहा.

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ठळक मुद्देभाषण में 1977-79 के बीच प्रधानमंत्री पद पर रहे मोरारजी देसाई का कोई उल्लेख नहीं किया.दिवंगत चरण सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की.प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना भी नहीं करना पड़ा.

Parliament 75 years: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने लोकसभा भवन में अपना आखिरी भाषण देते हुए नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक अपने सभी पूर्ववर्ती प्रधान मंत्रियों को श्रद्धांजलि अर्पित की. प्रधानमंत्री ने बहुत सावधानी से अपने शब्दों का चयन करते हुए प्रत्येक के पिछले 75 वर्षों के दौरान भारत निर्माण में उनके योगदान के बारे में कहा.

लेकिन, उन्होंने अपने लंबे भाषण में 1977-79 के बीच प्रधानमंत्री पद पर रहे मोरारजी देसाई का कोई उल्लेख नहीं किया. हालांकि मोदी ने दिवंगत चरण सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना भी नहीं करना पड़ा, लेकिन उनके भाषण में देसाई का कहीं भी जिक्र नहीं था.

यह बात लोगों को चौंकाने वाली थी. मोदी हमेशा अपने शब्दों का चयन बहुत ध्यानपूर्वक करते हैं और बोलने में कभी गलती नहीं करते. हालांकि, देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के प्रति उनकी नापसंदगी जगजाहिर है, फिर भी उन्होंने अपने भाषण में उनकी प्रशंसा की.

मोदी का चूकना इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि मोरारजी देसाई अपने गृह राज्य गुजरात से पहले प्रधानमंत्री थे और भगवा पार्टी 1977 में उनकी सरकार में भागीदार थी. क्या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मोरारजी देसाई 1956 में गुजरात राज्य और संयुक्त महाराष्ट्र के निर्माण के विरोध में थे? या फिर उन्होंने मुंबई को महाराष्ट्र में ही रखने की पक्षधर जनता पर गोली चलाने का आदेश दिया.

जिसमें 105 लोग मारे गए? या फिर इसलिए क्योंकि उन्होंने इंदिरा गांधी का विरोध किया था जिनका मोदी बहुत सम्मान करते हैं? या इसलिए कि मोरारजी इंदिरा गांधी से इतनी नफरत करते थे कि उन्होंने  देश की शीर्ष जासूसी एजेंसी के बाहरी अभियानों को वस्तुतः खत्म कर दिया? यह रहस्य आने वाले दिनों, महीनों या वर्षों में खुल सकता है.

क्या मोदी इंदिरा गांधी के प्रशंसक हैं?

प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल चुनावी रैलियों के दौरान, बल्कि जहां भी मौका मिलता है, नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ते. लेकिन उन्होंने कभी दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. हालांकि, 1975 में आपातकाल लगाए जाने का जिक्र हमेशा होता रहा, लेकिन उन्होंने कभी इंदिरा का नाम नहीं लिया.

इंदिरा गांधी के प्रशंसक होने का एक प्रमाण तब मिला जब उन्होंने पुरानी लोकसभा में 18 सितंबर को अपना आखिरी भाषण देते हुए एक बार नहीं, बल्कि दो बार उनकी प्रशंसा की.प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान मार्च 1983 में नई दिल्ली में आयोजित गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन की सफलता का विशेष उल्लेख किया.

मोदी ने कहा, ‘‘जब गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन हुआ था, तो इस सदन ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था और देश ने इस प्रयास की सराहना की थी. आज आपने भी एक स्वर से जी 20 की सफलता की सराहना की है. मुझे विश्वास है कि आपने देश का गौरव बढ़ाया है.’’

इतना ही नहीं, मोदी ने फिर से इंदिरा गांधी की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘इसी सदन ने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध का समर्थन करने और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अपना समर्थन देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.’’ राजनीतिक विश्लेषकों को हमेशा आश्चर्य होता है कि नरेंद्र मोदी, इंदिरा गांधी के प्रति नरम रवैया अपनाकर यह क्यों कहते हैं कि वह इंदिरा गांधी का अनुसरण करते हैं.

2019 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में प्रवेश कर बालाकोट में आतंकी शिविरों को नष्ट करने जैसे उनके कुछ साहसिक फैसले इंदिरा गांधी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों के अनुरूप हैं. यदि इंदिरा गांधी के पास रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की स्थापना करने वाला आरएन काव जैसा देश का पहला सुपर कॉप था, तो मोदी के पास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में अजीत डोभाल के रूप में उतना ही सख्त पुलिस अधिकारी है.

रॉ के हिस्से कई सफलताएं

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की स्थापना इंदिरा गांधी द्वारा की गई थी. यह देश की पहली बाहरी जासूसी एजेंसी थी, जिसे 1962 की पराजय के बाद भारत का विदेशों में विस्तार करने के उद्देश्य से 1968 में स्थापित किया गया था. लेकिन, इसका ध्यान भारत की पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी, पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) पर केंद्रित हो गया.

रॉ कई सफल गुप्त अभियानों में शामिल थी और इस्लामाबाद को हमेशा लगता था कि रॉ एजेंट पाकिस्तान को अस्थिर करने का काम करती है. रॉ पर अफगान सीमा पर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादियों को प्रशिक्षण देने और हथियार देने का आरोप लगाया गया.

रॉ ने जुलाई 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर बमबारी के लिए पाकिस्तान के इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) पर आरोप लगाया. रॉ की शुरुआत 250 लोगों और लगभग 400,000 डॉलर से हुई थी और यह बहुत तेजी से बढ़ी है और इसके कार्यबल की संख्या और बजट गुप्त बना हुआ है.

अमेरिका स्थित फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने 2000 में अनुमान लगाया था कि रॉ के पास लगभग आठ से दस हजार एजेंट और असीमित बजट है. संयुक्त राज्य अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) या ब्रिटेन की एमआई 6 के विपरीत, रॉ रक्षा मंत्रालय के बजाय सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है.

सितंबर महीने की शुरुआत में पीओके के रावलकोट में लश्कर-ए-तैयबा के रियाज अहमद उर्फ अबू कासिम जैसे आतंकवादियों की हालिया हत्याओं ने चिंताएं बढ़ा दी हैं. इस साल सीमा पार से सक्रिय किसी शीर्ष आतंकवादी कमांडर की यह चौथी हत्या थी. कनाडा और कुछ अन्य स्थानों पर खालिस्तानी आतंकवादी एचएस निज्जर की हत्या के लिए बिना किसी सबूत के रॉ को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

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