आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर्स एक्ट (अफस्पा), 1958 के खिलाफ समूचे नागालैण्ड में भारी रोष और आक्रोश के माहौल में केंद्र सरकार ने इस कानून के लागू रहने की अवधि फिर से छह महीने के लिए बढ़ा दी. जबकि केंद्र सरकार ने इसी बात पर विचार करने के लिए कमेटी बनाई कि नागालैण्ड में यह कानून लागू रखा जाए अथवा नहीं.
कमेटी का गठन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक में 26 दिसंबर को हुआ, जिसमें नागालैण्ड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो भी मौजूद थे.
बैठक में तय हुआ कि यह उच्चस्तरीय कमेटी 45 दिनों के अंदर रिपोर्ट देगी. लेकिन सिर्फ चार दिनों के बाद ही गृह मंत्रालय ने नागालैण्ड में छह महीने के लिए अफस्पा की अवधि बढ़ाने की अधिसूचना जारी कर दी. 26 दिसंबर को अफस्पा हटाने की मांग पर विचार करने के लिए कमेटी बनाई गई और 30 दिसंबर को अफस्पा बरकरार रखने का केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फैसला कर लिया.
केंद्र सरकार ने अपनी ही बनाई कमेटी की रिपोर्ट के लिए खुद की तय की गई समय सीमा तक का इंतजार करना जरूरी नहीं समझा.
नागालैण्ड के मोन जिले में 4 दिसंबर को तड़के भारतीय सेना के 21 पैरा (स्पेशल फोर्स) बटालियन की फायरिंग में 14 लोग मारे गए. उस वक्त संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. दोनों सदनों में हंगामा हुआ.
मारे गए लोगों में 6 कोयला खान मजदूर थे, जो काम करके घर लौट रहे थे. गृह मंत्री ने सदन को बताया कि जवानों ने ‘गलती से’ उन मजदूरों को उग्रवादी समझ लिया.
गृह मंत्री ने यह कहकर सेना का बचाव भी किया कि सेना की गाड़ी में लाल सिग्नल हुआ था और मजदूरों ने जब भागने का प्रयास किया तब जवानों ने गोली चलाई.
अन्य सात के सेना की गोली से मारे जाने की रिपोर्ट ये है कि अपने साथियों को मृत देखकर क्रुद्ध गांववालों ने सेना की गाड़ी पर हमला कर दिया. तोड़-फोड़, आगजनी के दौरान जवानों ने गोली चलाई. एक जवान के भी मारे जाने की रिपोर्ट है.
6 दिसंबर को अमित शाह ने लोकसभा को बताया कि घटना की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (विशेष जांच दल) गठित की गई है, जो 30 दिनों में अपनी रिपोर्ट देगी. गृह मंत्रालय ने विशेष जांच दल की रिपोर्ट आने का भी इंतजार नहीं किया.
नागालैंड के लोग नगा समस्या के समाधान का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. सरकार से शांति वार्ता चलाने वाले सबसे दबंग गुट हार्डलाइनर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (मुइवा गुट) समेत सात अन्य गुटों ने भी साफ कह दिया कि शांति वार्ता तो अब नहीं चल सकती.
सात गुटों के राजनीतिक मंच नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप (एनएनपीजी) के नेताओं के नरम रवैये के कारण वार्ता चल रही थी, क्योंकि यह ग्रुप ‘अलग झंडा, अलग संविधान’ की शर्त पर ज्यादा जोर नहीं दे रहा है. इस गुट ने भी कह दिया कि अफस्पा वापस लिए बिना वार्ता के रास्ते बंद रहेंगे.
व्यापक जन असंतोष के मद्देनजर नगालैंड सरकार ने 20 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अफस्पा रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया और केंद्र से यह कानून हटाने का अनुरोध किया गया.
नगालैंड के मुख्यमंत्री द्वारा पेश इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से ध्वनिमत से विधानसभा ने पारित किया, जिसमें विपक्ष है ही नहीं. विधानसभा से पारित प्रस्ताव के बाद 26 दिसंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अफस्पा हटाने की मांग पर विचार करने के लिए कमेटी गठित करने के वास्ते बैठक बुलाई.
एक जनवरी को अपने बधाई संदेश में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि 2022 के पहले चार महीने में अफस्पा हटाने पर विचार किया जाएगा. असम में नगालैंड से भी ज्यादा उग्रवादी सक्रिय हैं.
पूर्वोत्तर राज्यों ने कई बार अफस्पा हटाने की मांग की है. मणिपुर की ‘लौह महिला’ के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला ने अफस्पा हटाने के लिए 16 साल अनशन किया, 2017 में उनका अनशन तोड़ना निष्फल गया. 32 जनमंचों का संयुक्त प्लेटफार्म इरोम शर्मिला के साथ था.
अफस्पा के हथियार के रूप में इस्तेमाल के खिलाफ 2004 में गठित पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह कानून अत्याचार का प्रतीक बन गया है, इसे हटाया जाए.
मणिपुर से ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के जरिए अफस्पा का मामला 1997 में सुप्रीम कोर्ट गया. पांच जजों की पीठ ने कहा कि किसी क्षेत्र को ‘अशांत’ घोषित करने से पहले राज्य सरकार की राय जरूर ली जाए.