लाइव न्यूज़ :

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: पेगासस जासूसी मामले पर सदन में चर्चा की मांग क्यों नहीं मान रही सरकार

By विश्वनाथ सचदेव | Published: August 06, 2021 1:32 PM

जनतंत्र में मतदाता सरकार ही नहीं चुनता, विपक्ष भी चुनता है. ऐसे में संसद को चलाने में दोनों की भूमिका अहम है. सरकार का दायित्व बनता है कि वह विपक्ष को उचित-अपेक्षित सम्मान दे.

Open in App

संसद का मानसून सत्र चल भी रहा है, और नहीं भी. चल इस मायने में रहा है कि दोनों सदनों में कार्रवाई शुरू होती है, हो-हल्ले के बीच सरकार बिना किसी बहस के अपने काम के विधेयक पारित करा लेती है. और दोनों सदनों की कार्रवाई न चलने का मतलब है विपक्ष का अपनी कुछ मांगों पर अड़े रहना,  शोर-शराबा और कार्रवाई का बार-बार स्थगित होना. 

विपक्ष के कुछ मुद्दे हैं, जिन पर वह संसद में बहस चाहता है, सरकार से दो-टूक जवाब मांग रहा है. इनमें इजराइल की एक कंपनी के सॉफ्टवेयर की मदद से होने वाली जासूसी, महंगाई और किसानों की मांगों के मुद्दे शामिल हैं. दोनों पक्ष अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और सरकार के अनुसार संसद की कार्यवाही को विपक्ष द्वारा बाधित किए जाने के फलस्वरूप देश के लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपए बर्बाद हो गए हैं.

चिंता की बात तो है यह. संसद अखाड़ा तो है, पर विवेकपूर्ण बहस का. नारेबाजी और शोर-शराबे की जगह संसद नहीं, सड़क हुआ करती है. जनतांत्रिक व्यवस्था में संसद और सड़क दोनों का महत्व है लेकिन जब सरकार और विपक्ष दोनों जिद पर अड़ जाएं तो यह सवाल उठाना लाजिमी है कि बात कैसे बने. 

जनतांत्रिक परंपरा में संसद में कार्यवाही चलाते रहने का दायित्व मुख्यत: सरकारी पक्ष का ही माना जाता है. विपक्ष से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस कार्य में योगदान करे. जहां तक संसद के मौजूदा संकट का सवाल है, यह बात आसानी से समझ नहीं आती कि आखिर सरकार को विपक्ष की मांग मानने में आपत्ति क्या है? 

यह पेगासस जासूसी वाला कांड दुनिया के कई देशों में परेशानी का सबब बना हुआ है. अमेरिका, फ्रांस, हंगरी और कई अन्य यूरोपीय देशों ने मामले की जांच के आदेश दे भी दिए हैं. स्वयं इजराइल भी मामले की जांच करा रहा है. तो फिर भारत सरकार यह जिद क्यों किए बैठी है कि वह न मामले पर बहस होने देगी, न जांच कराएगी?

बहरहाल, पेगासस जासूसी वाला यह मामला गंभीर है. अब तो मामला न्यायालय में भी पहुंच गया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार अपने दामन के पाक साफ होने का प्रमाण देना चाहेगी. यह काम जितना जल्दी हो, बेहतर है. लेकिन संसद में काम न हो पाने के इस प्रकरण ने जनतांत्रिक कार्य-पद्धति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं.  

जनतंत्र में मतदाता यह तय करता है कि सरकार कौन बनाए. इस दृष्टि से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को मतदाता ने पूर्ण बहुमत से चुना है. उसने भाजपा की रीति-नीति का समर्थन किया है. भाजपा का अधिकार है कि वह उन नीतियों के अनुसार काम-काज चलाए जिन्हें मतदाता ने समर्थन दिया था. संसद में विवेकशील बहस करा कर वह यह काम कर सकती है. पर यहीं इस बात का भी ध्यान रखा जाना जरूरी है कि जनतंत्र में मतदाता सरकार ही नहीं चुनता, विपक्ष भी चुनता है.

 इस पद्धति में विपक्ष की भी अपनी महत्ता है, अपना स्थान है. मतदाता विपक्ष से यह अपेक्षा करता है कि वह सरकार के कामकाज पर नजर रखेगा. कुछ अनुचित हो रहा है तो उसे जनता और सरकार, दोनों की नजर में लाएगा और यह भी बताएगा कि उसकी दृष्टि में उचित क्या है.  पेगासस की जासूसी, किसानों की मांग, महंगाई आदि के सवाल पर विपक्ष यही करने का दावा कर रहा है. संसद में ‘काम रोको’ विपक्ष के इसी दावे का परिणाम है. रणनीति का हिस्सा है यह.

जब भाजपा विपक्ष में थी तो सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, दोनों ने इस रणनीति का बचाव किया था. यह दोनों नेता, दुर्भाग्य से, आज हमारे बीच नहीं हैं. वे होते तो शायद सरकार को कुछ समझाते. ऐसे ही एक अवसर पर, जब संसद का काम विपक्ष ने ठप कर रखा था, स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने कहा था,  ‘संसद में काम नहीं होने देना भी लोकतंत्न का एक रूप है.’ इससे पहले स्वर्गीय अरुण जेटली ने भी कहा था कि ‘ऐसे मौके होते हैं, जब संसद में हंगामे से देश को ज्यादा फायदा होता है.’

आज जब संसद में काम न होने देने से होने वाले आर्थिक नुकसान की दुहाई दी जा रही है, तो उस फायदे के बारे में भी बात होनी चाहिए जिसकी तरफ अरुण जेटली ने इशारा किया था. यह फायदा जनतांत्रिक मूल्यों-परंपराओं की रक्षा का है. यही बात भाजपा ने 1995 में कही थी. तब सरकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली थी. प्रधानमंत्नी नरसिंह राव के सहयोगी टेलीकॉम मंत्नी सुखराम के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा ने कई दिन तक सरकार नहीं चलने दी थी.  

संसद में सही वातावरण में उचित तरीके से विवेकपूर्ण बहस के माध्यम से नीतियां बनें, कानून पारित हों, यह आदर्श स्थिति है. लेकिन जब सरकारी पक्ष या विपक्ष जनतांत्रिक मूल्यों के बजाय राजनीतिक स्वार्थो की सिद्धि के अनुरूप आचरण करने लगे तो सवाल उठने ही चाहिए. इस समय जो गतिरोध हमारी संसद में है, उसके पीछे राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा भी हो सकती है, पर स्थितियां बता रही हैं कि बात सिर्फ राजनीतिक लाभ तक ही सीमित नहीं है. 

हो सकता है, इससे वर्तमान विपक्ष को वैसा कुछ लाभ भी मिल जाए जैसा 1995 और 2012 के गतिरोध के बाद भाजपा को मिला था. तब भाजपा की सरकारें बनी थीं. ऐसा नहीं भी हो सकता. सवाल सिर्फ राजनीतिक लाभ का नहीं, जनतांत्रिक परंपराओं-मूल्यों की रक्षा का भी है. 

सरकार का दायित्व बनता है कि वह विपक्ष को उचित-अपेक्षित सम्मान दे. विपक्ष को भी मतदाता ने ही चुना था. और फिर जब सवाल सरकार की नीयत पर उठ रहे हों तब तो और जरूरी हो जाता है कि पेगासस जैसी कथित जासूसी से वह अपना दामन साफ सिद्ध करे. गेंद इस समय विपक्ष के नहीं, सरकार के पाले में है.

टॅग्स :पेगासस स्पाईवेयरसंसद मॉनसून सत्रअरुण जेटलीसुषमा स्वराजभारतीय जनता पार्टी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतLok Sabha Election 2024 Phase 3: 93 लोकसभा सीटों के लिए दांव पर हैं ये बड़े चेहरे, आज गांधीनगर में वोट डालेंगे पीएम मोदी और अमित शाह

भारतभाजपा से निष्कासित होने के बाद बोले केएस ईश्वरप्पा- "लडूंगा, जीतूंगा और पार्टी में वापस जाऊंगा"

क्रिकेटNavjot Singh Sidhu: 'वह नजफगढ़ का कसाई था', नवजोत सिंह सिद्धू ने कॉमेंट्री बॉक्स में किसके लिए कहा

भारतBJP Manifesto 2024: 70 साल के ऊपर सभी बुजुर्गों को मिलेगा स्वास्थ्य बीमा, पीएम मोदी ने बताई बीजेपी का 'संकल्प पत्र' की मुख्य बातें

भारतब्लॉग: अकेले चले थे, मगर क्या बन पाया कारवां?

भारत अधिक खबरें

भारतबलात्कार पीड़िता को प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए मजबूर किया गया, महिला आयोग ने किया चौंकाने वाला दावा

भारतBengaluru Traffic Advisory: नागवाड़ा फ्लाईओवर के पास सर्विस रोड बंद, 10 मई से चेक रूट डायवर्जन

भारतUttar Pradesh Lok Sabha Election 2024 Phase 4: 13 मई को 13 सीट पर मतदान, भाजपा पर पुराना प्रदर्शन दोहराने का दबाव!, नए खिलाड़ी को अखिलेश ने उतारा...

भारतPawan Singh Karakat Lok Sabha seat: पवन सिंह ने भरा पर्चा, खेल बिगाड़ने अक्षरा सिंह आएंगी मैदान में!, आखिर क्या है माजरा

भारतLok Sabha Elections 2024: पहले तीन चरणों के मतदान ने पीएम मोदी को बेचैन किया, शरद पवार ने कहा- भाषणों में खुलेआम मुस्लिम समुदाय का कर रहे जिक्र