Lok Sabha Elections 2024: विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का लोकसभा चुनाव 2024 अब तक का दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की हालिया रिपोर्ट के अनुसार इस बार का चुनावी खर्च एक लाख बीस हजार करोड़ रुपए के खर्च के साथ दुनिया का सबसे महंगा चुनाव होने की ओर अग्रसर है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के खर्च की तुलना में इस बार दुगुना खर्च होगा. चुनाव प्रक्रिया अत्यधिक महंगी एवं धन के वर्चस्व वाली होने से राजनीतिक मूल्यों का विसंगतिपूर्ण एवं लोकतंत्र की आत्मा का हनन होना स्वाभाविक है.
जनतंत्र के स्वस्थ मूल्यों को बनाए रखने के लिए चुनाव की स्वस्थता, पारदर्शिता, मितव्ययिता और उसकी शुद्धता अनिवार्य है. चुनाव की प्रक्रिया गलत होने पर लोकतंत्र की जड़ें खोखली होती चली जाती हैं. करोड़ों रुपए का खर्चीला चुनाव अच्छे लोगों के लिए जनप्रतिनिधि बनने का रास्ता बंद करता है और धनबल एवं धंधेबाजों के लिए रास्ता खोलता है.
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज रिपोर्ट के मुताबिक आमतौर पर चुनाव अभियान के लिए धन अलग-अलग स्रोतों से अलग-अलग तरीकों से उम्मीदरवारों और राजनीतिक दलों के पास आता है. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव खर्च के लिए मुख्य रूप से रियल इस्टेट, खनन, कार्पोरेट, उद्योग, व्यापार, ठेकेदार, चिटफंड कंपनियां, ट्रांसपोर्टर, परिवहन ठेकेदार, शिक्षा उद्यमकर्ता, एनआरआई, फिल्म, दूरसंचार जैसे प्रमुख स्रोत हैं. इस साल डिजिटल मीडिया द्वारा प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है. राजनीतिक दल पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं.
इनसे सबसे अधिक राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा प्रचार अभियान, रैली, यात्रा खर्च के साथ-साथ सीधे तौर पर गोपनीय रूप से मतदाताओं को सीधे नकदी, शराब, उपहारों का वितरण भी शामिल है. देश में 1952 में हुए पहले आम चुनाव की तुलना में 2024 में 500 गुना अधिक खर्च होने का अनुमान है.
प्रति मतदाता 6 पैसे से बढ़कर आज 52 रुपए खर्च होने का अनुमान है. हालांकि चुनाव में होने वाले वास्तविक खर्च और अधिकारिक तौर पर दिखाए गए खर्चे में काफी अंतर है. रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में देश की 32 राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों द्वारा आधिकारिक तौर पर सिर्फ 2,994 करोड़ रुपए का खर्च दिखाया.
इनमें दिखाया गया कि राजनीतिक दलों ने 529 करोड़ रु. उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए दिए थे. रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा निर्वाचन आयोग में पेश खर्च का ब्यौरा और वास्तविक खर्च के साथ-साथ उम्मीदवारों द्वारा अपने स्तर पर किए जा रहे खर्चे में काफी अंतर है.