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आंख मूंद कर न करें भरोसा: वरुण कपूर

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 01, 2018 6:25 AM

ईरानी अपने मूल्यवान उपकरणों को इंटरनेट से कनेक्ट नहीं रखते थे कि कहीं अमेरिकी उनकी कमजोर सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाकर इन्फॉर्मेशन सुपर हाईवे से उनकी सूचनाएं चुरा न लें। वे एक वैकल्पिक तरीके से काम कर रहे थे और टीम बनाकर काम कर रहे थे। इस हमले को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार एक यूएसबी ड्राइव था।

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वर्तमान डिजिटल अस्तित्व में सब कुछ आभासी बन गया है। लोग अपने डिवाइस के जरिए ही एक-दूसरे से बातचीत करते हैं बल्कि कहना चाहिए कि अपने उपकरण की स्क्रीन पर दिखने वाली छवियों के जरिए वार्तालाप करते हैं। जो वे स्क्रीन पर देखते हैं और अपने उपकरण के माइक्रोफोन पर सुनते हैं - अक्सर उसे कई लोग परम सत्य मान लेते हैं। दुनिया भर में साइबर अपराधियों के जाल में लोग इसीलिए फंसते हैं क्योंकि जो भी वे देखते हैं और सुनते हैं उसे सही मान लेना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी होती है। अपराधी बेशक उनकी इस स्वाभाविक कमजोरी का लाभ उठाते हैं - लेकिन सिर्फ वे ही ऐसा नहीं करते हैं।

सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां भी वांछित जानकारी पाने और अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए इसका फायदा उठाती हैं। इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण वह तरीका है जिसके जरिए अमेरिका ने ईरान के तथाकथित ‘शांतिपूर्ण’ परमाणु क्षमता निर्माण कार्यक्रम को क्षति पहुंचाने में सफलता पाई थी। यह वर्ष 2005 की बात है जब ईरान सरकार अपने कथित शांतिपूर्ण कार्यक्रमों के लिए परमाणु संवर्धन कार्य में जुटी हुई थी, ताकि यूरेनियम 235 हासिल कर सके।

इस संवर्धित यूरेनियम की पर्याप्त मात्र हासिल कर लेने पर अधिकारी अपनी इच्छानुसार परमाणु ऊर्जा संयंत्र बना सकते थे या चाहें तो परमाणु बम बना सकते थे। इसके लिए अमेरिका ने  आपरेशन ओलंपिक गेम्स लॉन्च किया। यह अंतत: सफल रहा और बिना एक भी गोली चलाए या हवाई हमला किए ईरान के परमाणु कार्यक्रम को तबाह कर दिया गया! यह आज के मनुष्य की आम कमजोरी ‘स्क्रीन में विश्वास’ पर आधारित था।

ईरानी अपने मूल्यवान उपकरणों को इंटरनेट से कनेक्ट नहीं रखते थे कि कहीं अमेरिकी उनकी कमजोर सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाकर इन्फॉर्मेशन सुपर हाईवे से उनकी सूचनाएं चुरा न लें। वे एक वैकल्पिक तरीके से काम कर रहे थे और टीम बनाकर काम कर रहे थे। इस हमले को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार एक यूएसबी ड्राइव था।

अमेरिकियों ने अपने देश में एक अंतर्राष्ट्रीय परमाणु सम्मेलन बुलाया। दुनिया भर के शीर्ष वैज्ञानिकों ने उसमें भाग लिया, जिसमें ईरानी भी शामिल थे। इस सम्मेलन के अंत में, सभी वैज्ञानिकों को एक पेन ड्राइव प्रदान किया गया था ताकि वे सम्मेलन में दी गई जानकारी का बाद में उपयोग कर सकें। असल में ईरानियों को जो यूएसबी ड्राइव दी गई थी उसमें स्टक्सनेट नामक वायरस था। अमेरिका की चाल सफल रही। एक ईरानी वैज्ञानिक ने नतांज वापस लौटकर प्रदान की गई यूएसबी ड्राइव को अत्यधिक सुरक्षित प्रणाली में प्लग इन किया और स्टक्सनेट वायरस सक्रिय हो गया। उसने मशीन के माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम को संक्रमित कर दिया।

शुरू में वायरस ने नियंत्रण प्रणाली की पहचान की और धैर्य के साथ देखने तथा वेिषण करने लगा कि उसके सेंट्रीफ्यूज कैसे काम कर रहे हैं। जब सिस्टम सामान्य रूप से काम कर रहा था तो उसने विभिन्न सेंसर्स के सिग्नलों के वीडियो भी रिकार्ड किए। इसके बाद जब स्टक्सनेट ने सेंट्रीफ्यूज के रोटर्स पर प्रति मिनट एक लाख रोटेशन का दबाव डाला तो रोटेशन और कंपन सेंसर अलार्म ने सिग्नल भेजना शुरू किया। स्टक्सनेट ने इसे पकड़ा और नियंत्रण कक्ष के मॉनिटर पर प्रदर्शित होने से रोक दिया।

अलार्म सिग्नल और रेड लाइट को रोककर वायरस ने उसके बजाय उस वीडियो फुटेज को प्रदर्शित किया, जिसे उसने तब रिकार्ड किया था जब चीजें सामान्य थीं। इस प्रकार नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिकों ने अपने मॉनिटर स्क्रीन पर ग्रीन लाइट ही देखी, जबकि कुछ भी सामान्य नहीं था। आखिर यूरेनियम संवर्धन की पूरी प्रक्रिया तबाह हो गई।

ऐसा क्यों हुआ कि अच्छी तरह से प्रशिक्षित, योग्य और बुद्धिमान वैज्ञानिक अपने बेशकीमती कार्यक्रम की सुरक्षा करने में विफल रहे? जवाब सरल है -वे आंख मूंद कर उस पर भरोसा करते रहे जिसे उन्होंने अपनी मॉनिटर स्क्रीन पर देखा और उन्हें लगा कि सब कुछ ठीक चल रहा है, जबकि कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। इसलिए हमें हमेशा सचेत रहना चाहिए और समझना चाहिए कि दिखाई देने वाली चीज हमेशा सच नहीं हो सकती है। इसके बाद ही हम साइबर सुरक्षा की दिशा में सही कदम उठा सकते हैं।

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