Assault rifle: मौजूदा समय में भारतीय सेना, विशेष बल, अर्धसैनिक बलों सहित दुनिया भर की सेनाएं असॉल्ट राइफल्स का प्रयोग करती हैं। असॉल्ट राइफल्स किसी भी पैदल टुकड़ी का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे घातक हथियार हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर असॉल्ट राइफल कहते किसे हैं और ये कैसे बाकी राइफल्स से अलग है? चलिए हम बताते हैं।
क्या होती है असॉल्ट राइफल
असॉल्ट राइफल उस राइफल को कहते हैं जिसमें सिंगल फायर और बर्स्ट फायर के बीच स्विच करने की क्षमता होती है। इसका मतलब है कि इसे चलाने वाला चाहे तो एक बार ट्रिगर दबाकर केवल एक गोली भी चला सकता है और चाहे तो एक ट्रिगर दबा के पूरी मैगजीन (लगभग 28 गोलियां) एक साथ फायर कर सकता है। असॉल्ट राइफल्स की रेंज 1000 से 1500 फीट होती है। असॉल्ट राइफलों ने बोल्ट-एक्शन और सेमीऑटोमैटिक राइफलों की जगह ले ली है।
इस नए हथियार का संकेत प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दिया गया था। तब रूसी स्वचालित हथियारों के जनक व्लादिमीर ग्रिगोरेविच फ्योडोरोव ने जापानी अरिसाका राइफल के 6.5 मिमी कारतूस को एक स्वचालित राइफल से जोड़ा था। 916 में उन्होंने अपने नए हथियार, एवोमैट फ़्योडोरोवा को दुनिया के सामने रखा।
भारतीय सेना के पास कौन सी असॉल्ट राइफल्स हैं
भारत के पास स्वदेशी रूप से डिजाइन की गई अपनी कोई विश्व स्तरीय असॉल्ट राइफल नहीं है। हालांकि भारतीय सेना और अन्य बलों में लगभग 20 लाख राइफलें उपयोग में हैं। भारतीय सेना और अर्धसैनिक बल विभिन्न प्रकार की असॉल्ट राइफलों का उपयोग करते हैं, जैसे कि INSAS (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम, भारतीय सैनिक का मानक व्यक्तिगत हथियार), AK-47, M4A1 कार्बाइन, T91 असॉल्ट राइफल, SIG सॉयर 716, और तेवोर।
करीब दस लाख INSAS राइफलें उपयोग में हैं। सशस्त्र बल तीनों सेनाओं के लिए 810,000 असॉल्ट राइफलों का उपयोग करते हैं। इनमें से अकेले सेना 760,000 राइफलों का उपयोग करती है। हालांकि इसांस में कई दोषों की सूचना मिली। 1999 की शुरुआत में, कारगिल युद्ध के दौरान, भारतीय सैनिकों ने ठंड के मौसम में पॉलिमर प्लास्टिक मैगजीन (वह बॉक्स जिसमें राइफल में डाली जाने वाली निश्चित संख्या में कारतूस/गोलियां रखी जाती हैं) के टूटने की शिकायत की थी।
धीरे-धीरे सियाचिन और कश्मीर घाटी में उच्च ऊंचाई वाले अभियानों के दौरान जाम लगना, साथ ही मध्य भारत के जंगलों में नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान खराबी की अधिक शिकायतें आने लगीं। इसके कारण सेना ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान इसका इस्तेमाल बंद कर दिया और इसकी जगह विश्वसनीय एके-47 का उपयोग करना शुरू कर दिया। एके-47 को गर्मी और सर्दी दोनों को झेलने की क्षमता के लिए जाना जाता है।