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ब्लॉग: त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय- तीन राज्यों के चुनाव के नतीजों ने दिए चार स्पष्ट संदेश

By अवधेश कुमार | Published: March 03, 2023 10:18 AM

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पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में चौंकाने वाला कोई तत्व नहीं है. वास्तव में परिणाम लगभग उम्मीदों के अनुरूप ही है. तीनों राज्यों त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के चुनाव परिणामों को एक साथ मिलाकर देखें तो कुछ बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं. एक, भाजपा की सीटें किसी राज्य में थोड़ी कम या ज्यादा हो, मत प्रतिशत में थोड़े-बहुत अंतर आ जाएं लेकिन अब वह पूर्वोत्तर की प्रमुख स्थापित पार्टी हो गई है. 

दूसरे, एक समय पूर्वोत्तर पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी की क्षरण प्रक्रिया लगातार जारी है. तीसरे, पूर्वोत्तर में तृणमूल के एक प्रमुख पार्टी के रूप में उभरने की उम्मीद भी धराशाई हुई है. चौथे, माकपा के नेतृत्व वाले वाम दलों की पुनर्वापसी की संभावना पहले से ज्यादा कमजोर हुई है. जरा सोचिए, अगर त्रिपुरा में वामदल और कांग्रेस मिलकर भी भाजपा को सत्ता से बाहर करने में सफल नहीं हुए तो इसके मायने क्या हैं? 

पिछले चुनाव में यद्यपि माकपा नेतृत्व वाला वाममोर्चा सत्ता से बाहर हुआ था लेकिन भाजपा और वाम मोर्चे के मतों में ज्यादा अंतर नहीं था. इस कारण भाजपा विरोधी और वाममोर्चा के समर्थक यह मान रहे थे कि भले जनता ने सत्ता विरोधी रुझान में माकपा को बाहर कर दिया लेकिन अगले चुनाव में इसकी वापसी हो सकती है. चुनाव परिणामों ने बता दिया कि वाम मोर्चे का उदय अब दूर की कौड़ी है. निश्चित रूप से इस परिणाम के क्षेत्र के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में भी विश्लेषण होगा. 

आखिर 2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा विरोधी पार्टियां कई प्रकार के समीकरण बनाने की कवायदें कर रही हैं तो इस चुनाव का असर उस पर न पड़े ऐसा संभव नहीं. तो कैसे देखा जाए इन चुनाव परिणामों को?

यद्यपि तीनों राज्यों के चुनाव महत्वपूर्ण थे, पर देश का सबसे ज्यादा ध्यान त्रिपुरा की ओर था. यह पहला राज्य था जहां भाजपा ने अपने विपरीत विचारधारा वाले वाममोर्चा को पहली बार पराजित किया था. भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव देव के शासनकाल में स्वयं पार्टी के अंदर असंतोष के स्वर तथा सरकार की कुछ नीतियों के विरुद्ध जनता में भी विरोध देखा गया. 

भाजपा ने मई 2022 में उनकी जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया. कहा जा सकता है कि चेहरा बदलने से दोनों स्तरों का असंतोष थोड़ा कम हुआ. भाजपा की सीटें और मत दोनों पिछले चुनाव से घटे हैं लेकिन वह अपनी बदौलत 60 सदस्य विधानसभा में बहुमत पा चुकी है.

नगालैंड की ओर देखें तो वहां भी भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक रहा. नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ गठबंधन में वह छोटा साझेदार थी. उसे 20 सीटें ही लड़ने के लिए मिलीं किंतु केंद्रीय नेतृत्व ने इसके कारण पार्टी की स्थानीय इकाई में विरोध और असंतोष उभरने नहीं दिया. छोटा साझेदार होकर भी उसने एनडीपीएस के साथ मिलकर उसी तन्मयता से चुनाव लड़ा जैसे वह अन्य राज्यों में लड़ रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे सभी नेता वहां चुनाव प्रचार करने गए और पूरा जोर लगाया. पिछले नगालैंड की विधानसभा में कोई विपक्ष रह ही नहीं गया था. नगा पीपुल्स फ्रंट के विधायक सरकार के साथ चले गए थे. आगे क्या होगा अभी कहना कठिन है लेकिन भाजपा ने वहां सभी दलों के नेताओं से अपना संपर्क संबंध बनाए रखा है.  

निस्संदेह, मेघालय का चुनाव परिणाम भाजपा की उम्मीदों के अनुरूप नहीं है. उसे स्वयं बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद थी. पिछली बार उसे 2 सीटें आई थीं और एनपीईपी, पीडीएफ और एचएसबीसी के साथ मिलकर उसने मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस बनाया था. एनपीईपी के साथ उसका चुनावी गठबंधन नहीं था. चुनाव के बाद असम के मुख्यमंत्री और पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक हेमंत विश्व सरमा की कोनराड संगमा से मुलाकात बताती है कि साथ मिलकर काम करने की बातचीत परिणाम के पहले ही शुरू हो गई थी. तृणमूल कांग्रेस भी यहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और कांग्रेस को लेकर तो बहुत उम्मीद ही नहीं थी.  

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्वोत्तर पर विशेष फोकस किया है. वहां अपनी नीतियों, कार्यक्रमों और संवाद से अलगाववाद, क्षेत्रीय -जातीय विशेषता के भाव को भारतीय राष्ट्र भाव के साथ जोड़ने की लगातार कोशिश की. यातायात और संचार के क्षेत्र में पूर्वोत्तर में सच कहा जाए तो क्रांति हुई है. सड़कें और रेलमार्ग ही नहीं हवाई यात्राओं की दृष्टि से भी आधारभूत संरचनाएं सशक्त हुई हैं. 

सबसे बड़ी बात कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफस्पा को हटाने की बात अनेक पार्टियां और मानवाधिकार संगठन करते थे. उसे सही मायनों में भाजपा ने ही स्वीकार किया. आज असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम आदि सभी राज्यों में ज्यादातर क्षेत्रों से अफस्पा हटाया जा चुका है. नगालैंड की सभा में प्रधानमंत्री ने इसे हटाने का वायदा किया. इस तरह वहां के लोगों ने लंबे समय बाद शांति, स्थिरता और आवागमन से लेकर सभी प्रकार की गतिविधियों में भयमुक्त स्वतंत्र वातावरण महसूस किया है. 

इन सबके साथ पूर्वोत्तर के अलग-अलग क्षेत्रों की संस्कृतियों, स्थानीय परंपराओं, सोच और व्यवहार से लेकर स्थानीय विशेषताओं को भी प्रोत्साहित किया गया. इन सबका व्यापक असर हुआ है और आज पूर्वोत्तर सोच और व्यवहार की दृष्टि से समग्र रूप से भारत का बदला हुआ क्षेत्र है. इन सबकी प्रतिध्वनि चुनावों में दिखाई पड़ रही है. हालांकि अभी इन सारी दिशाओं में काफी कुछ किया जाना शेष है.

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