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अनिल विज भारत बयोटेक की वैक्सीन लेने के बाद कैसे हुए कोरोना पॉजिटिव और प्लेसिबो क्या है?

By विनीत कुमार | Published: December 06, 2020 3:53 PM

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हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज कोरोना संक्रमित हो गए हैं। 5 दिसंबर यानी शनिवार को ये खबर आई और इसके साथ ये सवाल भी कई लोगों के मन में कौंध गया कि अभी हाल ही में तो हम सभी ने अनिल विज को टीवी कैमरों के सामने कोरोना वैक्सीन के ट्रायल में शामिल होते हुए देखा था। अनिल विज को भारत बायोटेक और ICMR की ओर से विकसित की जा रही कोवैक्सीन की डोज दी गई थी। उन्होंने 20 नवंबर को कोरना की वैक्सीन ली थी और महज 15 दिन बाद उन्होंने ट्वीट कर बताया कि वे कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। पूरे मामले को लेकर जब सवाल उठे और तमाम चर्चाएं होने लगी तो भारत बायोटेक ने भी अब सफाई दी है।भारत बायोटेक ने अनिल विज के कोरोना से संक्रमित होने को लेकर बताया है कि कोवैक्सिन के क्लीनिकल ट्रायल दो डोज पर आधारित हैं। इसमें 28 दिन का समय लगता है। भारत बायोटेक ने सफाई देते हुए कहा कि कोरोना वैक्सीन का प्रभाव वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के 14 दिनों के बाद दिखता है। कंपनी ने कहा कि वैक्सीन तभी ज्यादा असरदार होगी जब किसी व्यक्ति ने टीके की दोनों डोज ली हो। ये तो हुई एक बात जिसके बारे में हम आपको आगे और विस्तार से बताएंगे लेकिन एक और अहम बात का जिक्र यहां जरूरी है।दरअसल बायोटेक वैक्सीन के ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉक्टर संजय राय ने वैक्सीन से संबंधित एक बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। डॉ संजय के मुताबिक जब किसी वैक्सीन का ट्रायल चल रहा होता है और खासतौर पर जब तीसरे चरण का ट्रायल हो तो 50 फीसदी लोगों को प्लेसिबो दिया जाता है जबकि 50 फ़ीसदी लोगों को वैक्सीन दी जाती है। इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है कि किसको क्या दिया जा रहा है। ना तो देने वाले को पता होता है और न ही जिसको वैक्सीन दी जा रही है उसे ही इस बारे में कुछ पता होता है।यही नहीं, इन्वेस्टिगेटर को इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती है कि सामने वाले को क्या दिया गया....वैक्सीन या प्लेसिबो... ऐसे में अब सवाल है कि वैक्सीन के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन ये प्लेसिबो क्या बला है और इसका वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल से क्या लेना देना है। पहले हम आपको बताते हैं कि प्लेसिबो क्या है.....बहुत आसान भाषा में कहें तो प्लेसिबो एक तरह की चिकित्सा पद्धति है। आप इसे यूं समझिए कि ये भ्रम या अहसास के आधार पर काम करती है।दरअसल इसमें किसी शख्स को कोई दवा जैसी दिखने वाली चीज....मसलन टैबलेट या फिर इंजेक्शन भी दी जाती है, लेकिन इसमें कोई दवा नहीं होती है। ऐसे में प्लेसीबो इफेक्ट पूरी तरह मन पर पड़ने वाले प्रभाव और उसके शरीर से रिश्तों पर काम करता है। एक तरह से आप इसे साइकॉलोजिकल दवा कर सकते हैं....ठीक वैसे ही जैसे आपको लगता है कि आपने अमूक बीमारी की दवा खा ली लेकिन असल में आपने दवा नहीं खाई...आपको ऐसे ही कोई मामूली टैबलेट दे दी गई लेकिन इसके बावजूद आप ठीक हो गए।संभव है कि अनिल विज के केस में भी यही हुआ है...अभी ये साफ नहीं है कि अनिल विज को असली वैक्सीन की डोज दी गई थी या फिर प्लेसिबो।एक और बात ये भी है कि किसी भी वैक्सीन के बाद एंटीबॉडी बनने में समय लगता है। साथ ही भारत बायोटेक के इस वैक्सीन में दो डोज का शेड्यूल है। इसके अनुसार अगर आज आपको वैक्सीन दी गई है तो आज ही आपके शरीर में एंटीबॉडी नहीं बनेगी। दो डोज मिलने के बाद ही आप सुरक्षित हैं।अनिल विज ने भी बताया है कि डॉक्टरों ने उन्हें पहले ही बता दिया था कि भारत बायोटेक और ICMR की ओर से डेवलप ये टीका दूसरा डोज लेने के लगभग 14 दिन बाद से काम करना शुरू करता है। कोरोना का दूसरा डोज पहले डोज के 28 दिन बाद दिया जाता है और फिर 14 दिन बाद ही शरीर में एंटीबॉडीज डेवलप होते हैं। यानी इस पूरी प्रक्रिया में 42 से 45 दिन का समय लगता है। इसके बीच में वैक्सीन से कोई सुरक्षा नहीं है।इसलिए जरूरी यह है कि वैक्सीन लेने के बाद भी मास्क पहना जाए, बार-बार हाथ धोया जाए। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन भी जरूरी है।
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