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ब्लॉग: पानी का मूल्य समझें तो नहीं होगी भविष्य में किल्लत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 02, 2023 9:51 AM

खेतों की सिंचाई के पारंपरिक तरीकों में पानी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके उससे कई गुना कम पानी में भी फसल ली जा सकती है। सबसे चिंताजनक पहलू है बारिश के पानी का संपूर्ण उपयोग न हो पाना।

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ठळक मुद्देपानी का सदुपयोग करना होगा ताकि आगे चलकर स्थितियां बिगड़ने न पाएंपहले ही बारिश औसत से कम होने की आशंका जताई जा रही थीदेश में इस साल औसत से कम बारिश दर्ज की गई है

नई दिल्ली: देश में इस साल औसत से कम बारिश दर्ज की गई है, जिसके मद्देनजर अभी से आवश्यक उपाय करते हुए सावधानी बरतनी होगी ताकि आगे चलकर स्थितियां बिगड़ने न पाएं। शनिवार को दक्षिण पश्चिम मानसून समाप्त होने के साथ, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने बताया कि देश में औसत से कम 820 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि किसी अल नीनो वर्ष में बारिश का दीर्घकालिक औसत 868.6 मिमी रहता है।

महाराष्ट्र में भी राज्य के 13 जिलों में तो औसत से अधिक बरसात हुई लेकिन 23 जिलों में औसत से कम बारिश दर्ज की गई है। पश्चिमी महाराष्ट्र के सांगली, सातारा, सोलापुर जिलों में जहां सबसे कम बारिश दर्ज की गई है, वहीं मराठवाड़ा के बीड़, धाराशिव, जालना, हिंगोली के साथ ही विदर्भ के अकोला और अमरावती जिलों में भी कम बारिश हुई है। गौरतलब है कि वर्ष 2023 से पहले देश में लगातार चार वर्षों तक मानसून के मौसम में ‘सामान्य’ और ‘सामान्य से अधिक’ बारिश दर्ज की गई थी।

इस साल हालांकि अल नीनो के कारण पहले ही बारिश औसत से कम होने की आशंका जताई जा रही थी, लेकिन संतोष की बात यह है कि सकारात्मक कारकों के कारण अल नीनो देश में मानसून की बारिश को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर सका। फिर भी औसत से कम बारिश का आगे चलकर असर तो दिखेगा ही, इसलिए उस स्थिति से निपटने की अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। इजराइल जैसे मरुस्थलीय देश ने दुनिया को दिखा दिया है कि अत्यंत कम बारिश होने पर भी, उसकी एक-एक बूंद का सदुपयोग करके वह किस कुशलता से अपना काम चला लेता है। हमारे यहां होता यह है कि बारिश के मौसम में, जब पानी की कोई किल्लत नहीं होती, उसका इतना दुरुपयोग किया जाता है कि गर्मी आने पर पेयजल तक के लिए त्राहि-त्राहि मच जाती है।

खेतों की सिंचाई के पारंपरिक तरीकों में पानी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है, जबकि अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके उससे कई गुना कम पानी में भी फसल ली जा सकती है। सबसे चिंताजनक पहलू है बारिश के पानी का संपूर्ण उपयोग न हो पाना। पेड़-पौधों और जंगलों के घटते जाने से बारिश का पानी जमीन में समाने के बजाय बहकर नदियों में और वहां से समुद्र में चला जाता है। शहरों में तो कांक्रीटीकरण के कारण बारिश के पानी को जमीन में समाने की कहीं जगह ही नहीं मिलती और जहां प्रकृति ने जरा सा रौद्र रूप दिखाया नहीं कि तत्काल बाढ़ आ जाती है। इसलिए वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना और रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए ताकि बारिश के पानी को संजोया जा सके और गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत से न जूझना पड़े। इस साल औसत से कम बारिश होने के तथ्य से हम अभी से सचेत रहेंगे तो आगे चलकर इसका ज्यादा प्रकोप झेलना नहीं पड़ेगा।

टॅग्स :Water Resources DepartmentIndiaBharatAgriculture Ministry
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