Bihar Politics News: बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया में सीटों के बंटवारे पर चर्चा शुरू हो चुकी है। विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के बीच तरकश में तीर सजाए जाने लगे हैं। विपक्ष को साझेदारी के लिए सीटों का बंटवारा करना होगा। यहां राजद, जदयू, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की महागठबंधन में सीटों को लेकर तलवार खींचने की स्थिति हो सकती है।
सूत्रों की मानें तो सीट शेयरिंग को लेकर लालू और नीतीश में सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में बिहार में सीटों के बंटवारे का काम बेहद जटिल साबित हो सकता है। बिहार में कांग्रेस ने पहले ही 10 सीट पर चुनाव लड़ने का राग आलाप चुकी है।
बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह ने कहा था कि कांग्रेस की अपेक्षा यही होगी कि जहां हमारा मजबूत जनाधार है, जहां से बड़े नेता चुनाव लड़ते रहे हैं, वो सारी सीटें नीतीश और लालू कांग्रेस के लिए छोड़े। कांग्रेस इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और हमें उचित जगह मिलनी चाहिए।
वहीं भाकपा-माले का कहना है कि सीटों का बंटवारा साल 2020 के विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए। माले ने सीटों के बंटवारे को लेकर अपना प्रस्ताव राजद के पास भेज दिया है। जबकि जदयू का कहना है कि इंडिया गठबंधन की लड़ाई भाजपा से है।
ऐसे में यह माना जा रहा है कि राजद, जदयू और वामपंथी दलों के लिए सीटों के बंटवारे को अपने स्तर पर अंतिम रूप देना आसान नहीं है। कारण कि सीतामढ़ी, मधेपुरा, गोपालगंज, सीवान, भागलपुर और बांका लोकसभा सीटों का है, जहां साल 2019 में जदयू की जीत हुई थी, जबकि राजद दूसरे नंबर पर थी।
दूसरी तरफ पटना साहिब और बेगूसराय जैसी लोकसभा सीटें भी हैं, जिस पर भाजपा ने कब्जा किया था। कोसी-सीमांचल की सुपौल लोकसभा सीट पर साल 2019 में जदयू ने 56 फीसदी वोट के साथ जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की रंजीता रंजन ने करीब 30 फीसदी वोट हासिल किए थे। रंजीता रंजन कोसी इलाके की बड़ी नेता मानी जाती हैं।
रंजीता रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं और पहले लोकसभा सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में साझेदारी के तहत सुपौल सीट पर किस पार्टी को चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। ऐसे में संभावना यह व्यक्त की जा रही है कि नीतीश कुमार को अपनी कुछ सीटों की कुर्बानी देनी पड़ सकती है।
अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो महागठबंधन में सीटों को लेकर तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कारण कि सभी दल विधानसभा की सीट के हिसाब से लोकसभा की सीटों पर दावेदारी चाहते हैं। बता दें बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिनमें अभी 16 सीटों का प्रतिनिधित्व अकेले जदयू करता है।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में किशनगंज की मात्र एक सीट पर कांग्रेस का झंडा लहराया था। जबकि भाजपा ने 17 सीटों पर अपना परचम लहराया था तो वहीं उस समय की साझेदार जदयू ने 16 सीट अपने कब्जे में किया था तो लोजपा ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया था।