हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘अक्षय तृतीया’ पर्व मनाया जाता है, जो इस वर्ष 10 मई को मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में प्रत्येक शुभ एवं मांगलिक कार्यों के लिए अक्षय तृतीया पर्व को बहुत शुभ माना गया है. अक्षय तृतीया पर इस वर्ष पांच दुर्लभ संयोग बन रहे हैं. तृतीया तिथि का आरंभ 10 मई की सुबह 10 बजकर 17 मिनट से होगा, जो 11 मई को रात्रि 2 बजकर 50 मिनट तक रहेगी.
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अक्षय तृतीया शुक्रवार के दिन है और इस दिन सुकर्मा योग भी रहेगा. इस योग में खरीदारी करना बेहद शुभ माना जाता है और यह योग 10 मई को दोपहर 12 बजकर 7 मिनट से अगले दिन 10 बजे तक बना रहेगा. इस दिन रोहिणी नक्षत्र सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा, जिसके स्वामी भौतिक सुखों के दाता शुक्र ग्रह हैं, इसलिए रोहिणी नक्षत्र में किसी भी प्रकार का कार्य शुरू करना शुभ फलदायक रह सकता है.
इसके बाद पूरे दिन मृगशिरा नक्षत्र रहेगा, ज्योतिष में इस नक्षत्र को शुभ माना गया है. तैतिल और गर करण का निर्माण भी इसी दिन होगा. यही कारण है कि अक्षय तृतीया को इस वर्ष बेहद खास माना जा रहा है.
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन स्वयं सिद्ध योग होते हैं और इस दिन बिना मुहूर्त निकलवाए कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, इसीलिए लोग बिना पंचांग देखे अक्षय तृतीया के दिन विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यापार, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, घर, भूखंड या नए वाहन आदि की खरीदारी जैसे विभिन्न शुभ कार्य करते हैं.
मान्यता है कि इसी तृतीया तिथि को माता पार्वती ने अमोघ फल देने की सामर्थ्य का आशीर्वाद दिया था, जिसके प्रभाव से अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य निष्फल नहीं होता. पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, दान, जप, स्वाध्याय इत्यादि करना शुभ फलदायी होता है. हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती भी मनाई जाती है.
भगवान परशुराम का जन्म त्रेता युग में भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में भार्गव वंश में सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के यहां हुआ था. मान्यता है कि परशुराम के जन्म के पूर्व रेणुका तीर्थ पर जमदग्नि और रेणुका ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वरदान दिया था कि स्वयं भगवान विष्णु रेणुका के गर्भ से जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेंगे.
भगवान परशुराम को भगवान शिव और विष्णु का संयुक्त अवतार माना जाता है और मान्यता है कि उन्होंने भगवान विष्णु से पालनहार के गुण और दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान शिव से युद्ध कला में निपुणता हासिल की.