ब्लॉग: फिर एक बार आ अब लौट चलें...!

By Amitabh Shrivastava | Published: May 11, 2024 08:11 AM2024-05-11T08:11:13+5:302024-05-11T08:11:31+5:30

इस दिशा में एक प्रयास पार्टी का विलय हो सकता है, जिसके लिए राकांपा के समक्ष कांग्रेस से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता है।

Maharashtra Lok Sabha Election 2024 Nationalist Congress Party (NCP) leader Sharad Pawar has left a new challenge for regional parties | ब्लॉग: फिर एक बार आ अब लौट चलें...!

ब्लॉग: फिर एक बार आ अब लौट चलें...!

महाराष्ट्र की आधी से अधिक लोकसभा सीटों पर मतदान होने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार ने क्षेत्रीय दलों के लिए एक नया शगूफा छोड़ दिया है। उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद कई क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस में विलय हो सकता है।

भले ही पवार के लिए यह पहला अवसर न हो, मगर अनेक राजनीतिक दलों को इस विचार पर कई बार सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह चुनाव के बीच विपक्ष के आत्मविश्वास को कम करता है, जिससे कुछ दलों को बचना भी जरूरी हो चला है।

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने अपने राजनीतिक कैरियर में कांग्रेस से अलग होकर दो बार अलग दलों का गठन किया। पहली बार तो मुख्यमंत्री का पद पाया और दूसरी बार केंद्र में मंत्री बने। पहले मौके में कांग्रेस से अलग कुछ साल राजनीति करने के बाद समय ऐसा आया कि पवार को भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उपस्थिति में तत्कालीन औरंगाबाद की एक जनसभा में कांग्रेस में दोबारा शामिल होना पड़ा।

कुछ साल बाद वर्ष 1999 में फिर वह कांग्रेस से अलग हुए और राकांपा का गठन किया। इस बार विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की सत्ता में खुद की जगह न बनाते हुए अपने भतीजे अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद दिलाया। खुद केंद्र सरकार में मंत्री बने। तब से बीते करीब 25 सालों में शरद पवार अपनी पार्टी के बारे में अलग-अलग बयान दे चुके हैं। यहां तक कि पिछले साल मई माह में दिया इस्तीफा भी पार्टी के भविष्य की ओर संकेत था।

किंतु पासा उल्टा पड़ने पर वह बात आगे नहीं बढ़ पाई और त्याग-पत्र वापस लेकर पद पर बने रहना पड़ा। कुछ माह बाद उनके भतीजे अजित पवार ने जरूर पार्टी को तोड़ दिया। तब से उनके विचारों में अनेक प्रकार के उतार-चढ़ाव आ रहे हैं। कभी वह खुद को बूढ़ा मानने से इंकार करते हैं, तो कभी नए लोगों के साथ उदारता दिखाते रहे।

किंतु ताजा अवसर में कांग्रेस में विलय को लेकर उन्होंने केवल खुद की चिंता नहीं की है, बल्कि अपने विचार के अनुरूप छोटे दलों की सोच को माना। 

लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी विरुद्ध क्षेत्रीय नेता हो चला है। किंतु पवार के समक्ष ऐसी कौन-सी मजबूरी है जिसमें उन्हें सार्वजनिक रूप से कांग्रेस में विलय का विचार रखना पड़ता है। स्थिति तो यहां तक भी है कि वह जिन दस लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से आधी सीटों पर भी मतदान तक पूरा नहीं हुआ है।

स्पष्ट रूप से यह पवार की अंदरूनी बेचैनी है, जो राकांपा के टूटने से लेकर परिवार में ननद-भाभी के मुकाबले तक आ पहुंची है। जिस पर मतदान के बाद कोई भी आत्मविश्वास से नहीं कह पा रहा है कि चुनाव में उनका पलड़ा भारी रहा है।

इस स्थिति में एक तरफ जहां परिवार है तो दूसरी तरफ पार्टी है। एक ओर बेटी का राजनीतिक भविष्य है तो दूसरी ओर अपने ही निष्ठावानों की बगावत से बनी पार्टी है। इस गंभीर संकट के बीच पवार के समक्ष एक ही विचार कांग्रेस में विलय का आ सकता है, क्योंकि वह गांधी-नेहरू के दर्शन को मानते हैं. भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलने पर विचारों के साथ अस्तित्व का संकट भी खड़ा होगा।

ऐसे में यह सोच कांग्रेस और महाराष्ट्र तक सीमित हो तो कुछ सीमाओं में कारगर साबित हो सकती है। किंतु इसे देश के समूचे परिदृश्य में व्यापक नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दल संघर्षरत हैं। वह संकटों से गुजरकर अपना वजूद बनाए हुए हैं।

उनके नेता कभी भी विलय का विचार सामने नहीं लाते हैं. विशेष रूप से कांग्रेस के साथ विलय का सपना तो गलती से भी देखा नहीं जाता है। ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व ही कांग्रेस के मुकाबले से तैयार हुआ। उन्होंने परिस्थिति अनुसार कांग्रेस के साथ गठबंधन किया या चुनावी समझौते किए, लेकिन अपने वजूद को खत्म करने की बात कभी नहीं की।

जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी, पंजाब में अकाली दल, हरियाणा में लोकदल, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी या राष्ट्रीय लोकदल, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड, कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर, ओडिशा में बीजू जनता दल जैसे अनेक दल अपनी हिम्मत और ताकत के आधार पर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

वे किसी समझौते की बात नहीं करते हैं। सभी साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस से मिलने के लिए तैयार नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्र में शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट तो किसी सूरत में कांग्रेस के आगे झुकने की बात नहीं करता है। दोनों दल वर्तमान में ‘इंडिया’ में रहकर अपनी मर्जी की सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।

ताजा लोकसभा चुनाव में राकांपा के दोनों गुट नुकसान में हैं। महाविकास आघाड़ी में जहां राकांपा के शरद पवार गुट को दस सीटें मिलीं, वहीं महागठबंधन में राकांपा अजित पवार को मात्र पांच सीटें मिलीं। पांच में से एक राष्ट्रीय समाज पार्टी को देनी पड़ी। लिहाजा दोनों राकांपा को मिलाकर केवल 14 सीटों पर ही चुनाव लड़ने का अवसर मिला। पिछली बार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में राकांपा ने 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

उससे पहले वर्ष 2014 में भी यही फार्मूला था। लिहाजा राकांपा को राजनीतिक और शरद पवार को पारिवारिक दृष्टि से नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। रिश्ते इतने तल्ख होते जा रहे हैं कि उनमें सुधार लाने में काफी समय लग जाएगा।

इस दिशा में एक प्रयास पार्टी का विलय हो सकता है, जिसके लिए राकांपा के समक्ष कांग्रेस से बेहतर कोई विकल्प नहीं हो सकता है। यह शरद पवार के पुराने अनुभव के अनुरूप होगा। बस इस सोच को विस्तार नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि देश के अनेक छोटे दल कभी खुद को छोटा नहीं मानते हैं। 

Web Title: Maharashtra Lok Sabha Election 2024 Nationalist Congress Party (NCP) leader Sharad Pawar has left a new challenge for regional parties

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