Bihar Politics News: ललन सिंह के जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पार्टी के कई ऐसे नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अलग होते चले गए जो अपनी अहमियत रखते थे। इसमें कुर्मी हो या कोयरी, धानुक हो या कहार, राजपूत रहे या फिर कायस्थ- भूमिहार। ललन सिंह के कार्यशैली के चलते जदयू में टिक नहीं पाए।
31 जुलाई 2021 को तामझाम के साथ ललन सिंह को जदयू अध्यक्ष पद की कमान इस उम्मीद के साथ सौंपी गई थी कि वह पार्टी में सब कुछ बदलकर रख देंगे और पार्टी काफी ऊंचाईयों पर जाएगी। लेकिन हाल यह हुआ कि उनके कार्य रवैये से जदयू के कई बड़े नेता यह कहकर जदयू से किनारे हो गए कि उन्हें पार्टी में तरजीह नहीं दी जाती।
ज्यादातर नेताओं ने जदयू से नाता तोड़ते हुए ललन सिंह को ही कटघरे में खड़ा किया। जिस जदयू की रीढ़ के रूप में कुर्मी और कोयरी वोटर यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण माना जाता रहा, उन जातियों के बड़े नेता भी जदयू से अलग हो गए। आरसीपी सिंह ने सबसे पहले जदयू का दामन छोड़ा और भाजपा का दामन थाम लिया।
वहीं कोयरी जाति से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने तो अपनी पार्टी आरएलएसपी का जदयू में विलय कर लिया था। लेकिन नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर राजद के साथ बिहार में सरकार बनाई तो उपेंद्र कुशवाहा विरोध में उतर गए। स्थिति हुई कि वे जदयू से अलग होकर फिर से अपनी नई पार्टी बनाए और अब एनडीए का हिस्सा हैं।
इसके साथ ही ललन सिंह के क्रियाकलापों से आजिज आकर जदयू प्रवक्ता अजय आलोक, पूर्व विधान पार्षद रणवीर नंदन, प्रमोद चन्द्रवंशी, पूर्व सांसद मीना सिंह भी शामिल हैं। मीना सिंह आब भाजपा में जा चुकी हैं। वहीं, धानुक जाति से आने वाले प्रगति मेहता को जदयू ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। जदयू सूत्रों की मानें तो इन सबके पार्टी छोड़ने की एक वजह ललन सिंह के साथ इनके असहज रिश्ते रहे। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जानकर भी अबतक अनजान बने रहे और ललन सिंह के इशारे पर चलते रहे।