नया साल एक बेहतरीन शायर के जन्मदिन से शुरू होता है। एक ऐसा शायर जिसने ज़िंदगी के हर पहलू पर पर शायरी की है। वो 'रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं, रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है'. राजनीति और इश्क़ पर कहा गया उनका एक शेर तो सारी कहानी कह देता है... 'आप हिंदू मैं मुसलमान ये सिख वो ईसाई, छोड़ो यार ये सियासत है! चलो इश्क़ करें'। राहत इंदौरी के लफ्जों से मोहब्बत को नए मायने मिलते हैं। इसका नमूना उनके इस शेर से मिल जाता है... 'मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया, मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है'। धारदार कलम के मालिक मशहूर शायर राहत इंदौरी का आज जन्मदिन है।
राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को हुआ था। बेहद साधारण परिवार में जन्में राहत इंदौरी के शायर बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। शुरुआती दिनों में राहत साहब सड़कों पर साइन बोर्ड बनाने का काम किया करते थे। लेकिन मुशायरे की दुनिया में आए तो साइन बोर्ड की तरह ही छा गए। जन्मदिन के इस खास मौके पर ज़िंदगी के हर पहलू को छूते राहत साहब के कुछ ऐसे चुनिंदा शे'र लेकर आए हैं।आप हिंदू मैं मुसलमान ये सिख वो ईसाई,छोड़ो यार ये सियासत है! चलो इश्क़ करें
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दियामेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है
राह के पत्थर से बढ़ के, कुछ नहीं हैं मंजिलेंरास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो
उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर-मंतर सबचाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैंचादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
राहत इंदौरी साहब आज 68 बरस के हो गए। लोकमत न्यूज की तरफ से उनके जन्मदिन और नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं...
*Graphics- Harshvardhan Mishra