मजदूरों के बच्चों को शिक्षा के पंख देती और उनकी अँधेरी जिंदगी में रंग भरती शिक्षिका सरस्वती पद्मनाभन

By अनुभा जैन | Published: March 15, 2023 07:08 PM2023-03-15T19:08:38+5:302023-03-15T19:10:40+5:30

97 टीम सदस्यों के साथ आज दीया घर का लक्ष्य प्रतिदिन 5000 बच्चों को गुणवत्तापूर्ण भोजन, चिकित्सा देखभाल और शिक्षा देना है। दीया घर ने कई एनजीओ और एमफैसिस और ओरेकल जैसी विभिन्न आईटी कंपनियों के साथ साझेदारी की है

Teacher Saraswati Padmanabhan of Bangaluru gives education to children of laborers and adds color to their dark lives | मजदूरों के बच्चों को शिक्षा के पंख देती और उनकी अँधेरी जिंदगी में रंग भरती शिक्षिका सरस्वती पद्मनाभन

मजदूरों के बच्चों को शिक्षा के पंख देती और उनकी अँधेरी जिंदगी में रंग भरती शिक्षिका सरस्वती पद्मनाभन

अपने नाम के अनुरूप ’दीया घर’ आज हजारों वंचित बच्चों के उदास जीवन में एक ’प्रकाशस्तंभ’ के रूप में उभर रहा है। बच्चों के लिए बेहद भावुक, 46 वर्षीय सरस्वती पद्मनाभन, एक मॉन्टेसरी शिक्षिका और काउंसलर, अपने सपनों के घर ’दीया घर’ के जरिये बेंगलुरु में प्रवासी मजदूर समुदाय के बच्चों को शिक्षित कर उनके गुमनाम भविष्य को नया आयाम दे रही हैं।

सरस्वती कहती हैं, “इन बच्चों के साथ जुड़ना मेरे लिए हमेशा से आत्मीयता भरा रहा है। मैंने जहां भी काम किया ऐसे मौके तलाशने की कोशिश की जहां मैं न केवल बच्चों के साथ काम कर सकूं बल्कि उन्हें सहारा भी दे सकूं। ”

दीया घर में डे केयर सेवाएं, मूलभूत मॉन्टेसरी या पूर्वस्कूली शिक्षा जिसमें दिन में बच्चों का दो समय का पौष्टिक भोजन और उनको बस्तियों से स्कूल लाने और सुरक्षित घर छोडने की परिवहन व्यवस्था शामिल है प्राप्त कर एक नई दिशा मिल रही है।

सरस्वती और उनकी टीम मार्च 2020 तक 135 बच्चों वाले 3 प्री-स्कूल और डे केयर सेंटर चलाने के साथ कम्यूनिटी सेंटर भी स्थापित कर चुकी है। 22 केंद्रों में 1000 से अधिक और विशेषकर 2 से 6 आयु वर्ष के बच्चे हर दिन कक्षाओं में पढ़ने, पोषण, हर तरह की चिकित्सीय देखभाल प्राप्त करते हैं। अब तक, 400 से अधिक छोटे बच्चों ने दीया घर से “स्नातक“ किया है और बैंगलोर या अपने गांवों में प्राथमिक विद्यालयों में शामिल हुए हैं। 

स्कूली से पहले की शिक्षा के बाद, दीया घर किसी भी किफायती निजी या सरकारी स्कूल में बच्चों को नामांकित करने की सिफारिश भी करता है और यदि कोई प्रवासी माता-पिता पूरी फीस नहीं दे सकता है तो संगठन 60 प्रतिशत तक या स्कूल शुल्क की कुछ राशि देकर बच्चे के एडमिशन में सहयोग करता है ।

चेन्नई में पली-बढ़ी सरस्वती बचपन के दिनों को याद करते हुये बताती है कि अपने माता-पिता के साथ वे अपने हर जन्मदिन पर चिल्रन्स होम जाया करती थीं जिसका सरस्वती पर गहरा प्रभाव पड़ा। 

दीया घर को शुरू करने के विचार के बारे में बात करते हुए, सरस्वती ने जवाब देते हुये बताया कि, “मेरी पहली नौकरी मुंबई में लगी थी और एक वालंटियर ग्रुप का हिस्सा बन मैं वहां गली के बच्चों की देखभाल करती थी। बाद में, मैं एम.बी.ए करने कैलिफ़ोर्निया चली गयी और ऑडिटर के रूप में काम करने के साथ मैंने वहाँ भी स्वयंसेवा कर कैदियों के बच्चों के साथ काम किया। अंततः नौकरी के उद्देश्य से, मैं अपने पति के साथ बेंगलुरु वापस आ गई, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और दीया घर के ट्रस्टियों में से एक हैं। मैंने काउंसलिंग की पढ़ाई की और एक एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया। अपने बेटे के जन्म के बाद, मैंने काउंसलिंग पढ़ाना शुरू किया ताकि मैं अपने बच्चे को भी समय दे सकूँ। मेरे पति के ऑफिस के पीछे एक प्रवासी मजदूर समुदाय था। सप्ताहांत मैं और मेरे पति वहां जाया करते और छोटे बच्चों को कपड़े और किताबें बांट अच्छा समय बिताया करते थे। मेरी दो बेटियों के जन्म के बाद, मैंने अंशकालिक रूप से काउंसलिंग देना जारी रखा।”

चूंकि सरस्वती के तीन बच्चे मॉन्टेसरी स्कूल में थे तभी सरस्वती ने 6 महीने का मॉन्टेसरी प्रशिक्षण हासिल कर अंततः, अपने अनुभव और बाल विकास की गहरी समझ के साथ, 2016 में श्रमिकों के केवल पांच बच्चों के साथ शुरुआत में मॉन्टेसरी प्री-स्कूल खोला। 

सरस्वती ने आगे कहा, “मुख्य रूप से मेरे अपने तीन छोटे बच्चों के साथ दीया घर का प्रबंधन और संचालन करना कठिन था। दीया घर की शुरू में सिर्फ आधे दिन के लिए शुरुआत की। पहले छः महीने मैं ही उन मजदूर बच्चों की शिक्षक थी और मेरे बच्चों की देखभाल करने वाली महिला ने मेरे केंद्र में भी मेरी मदद करनी शुरू कर दी। लगभग एक साल तक हमने इन प्रवासी बच्चों को घर का बना नाश्ता और दोपहर का खाना दिया। मैं ही उन्हें समुदाय से लाती और उन्हें वापस छोड़ती थी। बाद में, हमने शिक्षकों को काम पर रखा और उन्हें प्रशिक्षित किया। और फिर मैंने पूरे दिन का कार्यक्रम शुरू किया।”

जब मैंने सरस्वती से पूछा कि वह इन बच्चों के माता-पिता को विशेष रूप से शिक्षा प्राप्त करने के लिए कैसे राजी कर पाती हैं क्योंकि प्रवासी समुदाय के इन लोगों के लिये आसान जीवन जीने और भीख मांगकर अपनी आजीविका कमाने की प्रवृत्ति बन जाती है, तो सरस्वती ने हंसते हुये कहा, “ये प्रवासी परिवार उत्तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से आते हैं। इन परिवारों को अपने बच्चों को दीया घर भेजने में डर लगता और भरोसे की समस्या थी। उन्हें मनाना बेहद मुश्किल था। लेकिन ऐसी माताएँ भी थीं जो अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहती थीं क्योंकि वे कंस्टरक्शन साइट्स पर जाती और वहाँ इन बच्चों ने संघर्ष करने के साथ उपेक्षित माहौल का भी अनुभव किया। इसलिए शुरू में कुछ प्रवासी माता-पिता अपने बच्चों के साथ दीया घर आए और धीरे-धीरे उनका हममें विश्वास जमना शुरू हुआ। महामारी कोविड-19 के समय में प्री-स्कूल बंद हो गये थे इसलिए समुदायों के अंदर दीया घर केंद्र शुरू किए गए थे। बच्चों को सामने पढ़ता देख समुदाय के लोगों का विश्वास हममें और प्रगाढ़ हुआ।''

97 टीम सदस्यों के साथ, आज दीया घर का लक्ष्य प्रतिदिन 5000 बच्चों को गुणवत्तापूर्ण भोजन, चिकित्सा देखभाल और शिक्षा देना है। दीया घर ने कई एनजीओ और एमफैसिस और ओरेकल जैसी विभिन्न आईटी कंपनियों के साथ साझेदारी की है जिसमें ब्रिज कार्यक्रम चलाने के साथ बच्चों को कार्ड मेकिंग और पॉट पेंटिंग जैसी गतिविधियां करवाई जाती हैं। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, टाइटन, रोटरी बैंगलोर आईटी कॉरिडोर चैरिटी, और कई अन्य प्रसिद्ध ब्रांड दिया घर को समर्थन दे रहे हैं।

अंत में, सरस्वती का मानना है, “जरूरत बहुत बड़ी है। ये बच्चे कमजोर हैं और प्रवासी समुदाय को दुर्भाग्य से अनदेखा किया गया है। हमें समाज से अधिक सुदृढीकरण की आवश्यकता है और लोगों को इस आवश्यकता को पहचान कर सहयोग के लिये आगे आना चाहिए।’’

Web Title: Teacher Saraswati Padmanabhan of Bangaluru gives education to children of laborers and adds color to their dark lives

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