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ब्लॉग: राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपने देश हित को दांव पर लगा रहे ट्रूडो

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 01, 2024 11:46 AM

कहावत है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वही सबसे पहले उसमें गिरता है। कनाडा के प्रधानमंत्री को वास्तविकता को समझना चाहिए और अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के लिए अपने देश का नुकसान करने से बचना चाहिए।

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कनाडा में और हमारे देश के भीतर पंजाब में खालिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा फिर से सिर उठाने की खबरें निश्चित रूप से चिंताजनक हैं। पंजाब में जहां दो अलगाववादी नेताओं के लोकसभा का चुनाव लड़ने की खबर है, वहीं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने टोरंटो में रविवार को संबोधित किया तो वहां मौजूद भीड़ ने खालिस्तानी नारे लगाए।

जहां तक पंजाब में दो अलगाववादी नेताओं के लोकसभा का चुनाव लड़ने का सवाल है, हमारे देश में चुनाव की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने का सबको अधिकार है, चिंताजनक लेकिन ऐसे तत्वों को देश से बाहर की ताकतों से समर्थन मिलना है।

खासकर कनाडा में प्रधानमंत्री ट्रूडो द्वारा खालिस्तानियों को समर्थन देने से बाज नहीं आना चिंता का एक बड़ा कारण है। कनाडा में सिख समुदाय का अच्छा-खासा राजनीतिक प्रभाव है और वहां की आबादी में सिखों की 2.1 फीसदी हिस्सेदारी है। जस्टिन ट्रूडो जब साल 2015 में पहली बार कनाडा के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा भी था कि भारत की मोदी सरकार से ज्यादा उनकी कैबिनेट में सिख मंत्री हैं।

उस समय ट्रूडो ने कैबिनेट में चार सिखों को शामिल किया था और ये कनाडा की राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ था। उस समय ट्रूडो की बात से उनका जो रुझान प्रकट हुआ था, बाद में वह लगातार गंभीर होता नजर आया है। कुछ माह पहले खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ होने का आरोप लगाते हुए तो उन्होंने भारत-कनाडा के संबंधों को ही लगभग दांव पर लगा दिया था।

हालांकि इसमें अपने ही देश का आर्थिक नुकसान देखकर बाद में उनके सुर कुछ नरम पड़े थे, लेकिन वे खालिस्तानियों को समर्थन देने के अपने रवैये से अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल वर्ष 2019 में ट्रूडो जब दोबारा कनाडा के प्रधानमंत्री बने, तब तक उनकी लोकप्रियता काफी कम हो चुकी थी और उनकी लिबरल पार्टी की सीटें पहले के मुकाबले 20 कम हो गईं।

जबकि उसी चुनाव में जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 24 सीटें मिल गईं, जिसे खालिस्तानियों का समर्थक माना जाता है। उसके बाद से ट्रूडो की जगमीत सिंह की पार्टी पर निर्भरता चली आ रही है, क्योंकि 2021 के चुनावों में भी उनकी पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाया और जगमीत सिंह किंगमेकर की भूमिका में आ गए। चूंकि ट्रूडो को अपनी सरकार चलाने के लिए जगमीत सिंह की पार्टी के समर्थन की जरूरत है, इसलिए अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए वे अपने देश के हितों की भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे हैं।

लेकिन ट्रूडो को समझना चाहिए कि ऐसा करके वे आग से खेल रहे हैं। भारत के साथ तो उनके संबंध बिगड़ेंगे ही, उनके देश के भी विभाजन का खतरा पैदा हो सकता है। अभी पिछले साल ही कनाडा में रह रहे एक प्रभावशाली सिख नेता और पंजाबी मूल के भारतवंशी उज्ज्वल दोसांझ ने कहा था कि अगर कनाडा में सिखों का एक छोटा सा समूह खालिस्तान चाहता है तो उन्हें कनाडा में ही सिखों के लिए खालिस्तान बना देना चाहिए।

कहावत है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वही सबसे पहले उसमें गिरता है। कनाडा के प्रधानमंत्री को वास्तविकता को समझना चाहिए और अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के लिए अपने देश का नुकसान करने से बचना चाहिए।

टॅग्स :जस्टिन ट्रूडोकनाडाभारत
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