जो दूसरों की हत्या करते हैं वो अपराधी होते हैं। सभ्य समाज में हत्या एक जघन्यतम अपराध माना जाता है। हत्या करने वालों को सभी देशों में कड़ी सज़ा देने का कानून है। लेकिन क्या सभ्य समाज हत्या करने वालों को मौत की सजा देकर ख़ुद हत्यारा नहीं बन जाता? क्या किसी मनुष्य किसी अदालत किसी कानून को यह हक़ है कि वो किसी अन्य मनुष्य की जान ले ले? क्या हत्यारे को सजा देने के लिए ख़ुद हत्यारा बन जाना नैतिक रूप से जायज है