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Delhi High Court: 'शादीशुदा हैं, दूसरे से बना लिए शारीरिक संबंध, गलत बात नहीं', दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा

By धीरज मिश्रा | Published: May 04, 2024 10:57 AM

Delhi High Court: बलात्कार का आरोपी और एक शादीशुदा व्यक्ति को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध विवाह के दायरे में ही होने चाहिए।

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ठळक मुद्देकोर्ट ने कहा, यौन संबंध विवाह के दायरे में ही होने चाहिएदो वयस्कों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध गलत बात नहींबलात्कार के आरोपी को कोर्ट ने दी जमानत

Delhi High Court: बलात्कार का आरोपी और एक शादीशुदा व्यक्ति को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध विवाह के दायरे में ही होने चाहिए। यानि कि विवाहित पुरुष और स्त्री के बीच होना चाहिए। हालांकि, अगर यह दो वयस्कों के बीच सहमति से होता है, भले ही उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। दरअसल, कोर्ट ने जिस व्यक्ति की जमानत मंजूर की। उस पर एक महिला के द्वा्रा शादी का झूठा झांसा देकर बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था।

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त की वैवाहिक स्थिति के बारे में पता चलने के बाद भी पीड़िता का रिश्ता जारी रखने का निर्णय प्रथम दृष्टया उसकी सहमति की ओर इशारा करता है और इसकी पुष्टि के लिए कोई सबूत नहीं दिखाया गया है, जिससे यह साबित हो कि जबरदस्ती संबंध बनाया गया। 

कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि शिकायत दर्ज करने से पहले महिला काफी समय से आरोपी से मिलती रही। इस तथ्य को जानने के बाद भी कि आरोपी एक विवाहित व्यक्ति है, उसे रिश्ते जारी रखना चाहती थी। न्यायमूर्ति अमित महाजन द्वारा 29 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा गया कि हालांकि सामाजिक मानदंड यह तय करते हैं कि यौन संबंध आदर्श रूप से विवाह के दायरे में ही होने चाहिए, लेकिन अगर दो वयस्कों के बीच सहमति से यौन गतिविधि होती है, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, तो किसी भी गलत काम को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। 

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दर्ज एफआईआर घटना के 15 महीने के बाद दर्ज की गई। वहीं, आरोपी के खिलाफ शिकायतकर्ता ने कोई सबूत नहीं दिया जिससे यह साबित हो कि उसे मजबूर किया गया। कोर्ट ने कहा कि यौन दुर्व्यवहार और जबरदस्ती के झूठे आरोप न केवल आरोपी की प्रतिष्ठा को धूमिल करते हैं बल्कि वास्तविक मामलों की विश्वसनीयता को भी कम करते हैं और इसलिए प्रत्येक मामले में आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोपों के मूल्यांकन में अत्यधिक परिश्रम करना जरूरी है।

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