पुणे: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एआरडीई) और हैदराबाद स्थित एक निजी फर्म ने मिलकर 'उग्रम' नाम से एक स्वदेशी असॉल्ट राइफल लॉन्च की है। सोमवार, 8 जनवरी को इसका प्रदर्शन किया गया। ह पहली बार है कि डीआरडीओ की प्रयोगशाला ने 7.62 x 51 मिमी कैलिबर राइफल के निर्माण के लिए एक निजी उद्योग के साथ सहयोग किया है।
'उग्रम' को भारतीय सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस बलों की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिजाइन और विकसित किया गया है। 500 मीटर की फायरिंग रेंज वाली चार किलोग्राम से कम वजन वाली इस राइफल का अनावरण डीआरडीओ के आर्मामेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग (एसीई) सिस्टम के महानिदेशक शैलेन्द्र गाडे के हाथों किया गया।
इसे हाल के दिनों में भारतीय सेना द्वारा असॉल्ट राइफलों के लिए जारी किए गए जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट (जीएसक्यूआर) के आधार पर विकसित किया गया है। इस परियोजना का दायरा बहुत बड़ा है क्योंकि बलों में असॉल्ट राइफलों की कमी है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण एके-203 राइफलों का आयात प्रभावित हुआ है। इसलिए अब जोर देश में बनी असॉल्ट राइफल पर है। अभी 'उग्रम' असॉल्ट राइफल के विभिन्न पहलुओं का परीक्षण करने के लिए विभिन्न आंतरिक परीक्षण किए जाने हैं।
इसके लिए भारतीय सेना के प्रतिनिधित्व वाले अधिकारियों का एक बोर्ड गठित करने की तैयारी है। 'उग्रम' का परीक्षण विभिन्न मौसम स्थितियों किया जाएगा। सेना, आने वाले महीनों में उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों, रेगिस्तानों आदि में हथियार का परीक्षण करेगी। कोई कमी होने पर इसमें सुधार किया जाएगा। 'उग्रम' का डिजाइन पहले से ही तैयार था इसलिए इसे विकसित करने में संस्था को केवल 100 दिन लगे। हालांकि इसके परीक्षण लंबे समय तक चलेंगे। पहले स्लॉट में परीक्षण के लिए पांच राइफलें विकसित की गई हैं। उन्नत परीक्षण के लिए एआरडीई को 15 और राइफलें दी जाएंगी।
डीआरडीओ ने इस परियोजना पर 60 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (एआरडीई) ने अपने परिसर में एक समर्पित बैरल विनिर्माण सुविधा भी स्थापित की है। इसके लिए मशीनें ऑस्ट्रिया से आयात की गई हैं। आयुध कारखाने बैरल बनाने के लिए इन मशीनों का उपयोग करते हैं। इस बारे में बात करते हुए एआरडीई के लघु हथियार अनुभाग के परियोजना निदेशक और सुविधा के प्रभारी पीएस प्रसाद ने कहा कि निजी उद्योगों को हथियार विकसित करने का लाइसेंस मिल गया है। लेकिन उनके पास हथियारों के लिए बैरल बनाने की तकनीक और सुविधा नहीं है। ऐसे में उन्हें बैरल आयात करना होगा। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ के आगे बढ़कर सहयोग करने के कारण निजी उद्योगों को अपनी हथियार निर्माण परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में मदद मिलेगी।