लाइव न्यूज़ :

पीड़ित को मुआवजा देने से अपराध खत्म नहीं हो जाता: दिल्ली उच्च न्यायालय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 19, 2024 5:26 PM

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पक्षों के बीच समझौते के आधार पर हत्या के प्रयास के एक मामले में प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि आपराधिक कानून समाज में व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है और मुआवजे के भुगतान से कोई अपराध खत्म नहीं हो जाता।

Open in App
ठळक मुद्देसमझौते के आधार पर हत्या के प्रयास के एक मामले में प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार किया मुआवजे के भुगतान से कोई अपराध खत्म नहीं हो जाता - दिल्ली उच्च न्यायालययाचिकाकर्ताओं ने मामला रद्द करने का अनुरोध किया था

नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पक्षों के बीच समझौते के आधार पर हत्या के प्रयास के एक मामले में प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि आपराधिक कानून समाज में व्यक्तियों के आचरण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है और मुआवजे के भुगतान से कोई अपराध खत्म नहीं हो जाता। 

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने आरोपियों की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) जैसा गंभीर अपराध दोहराया नहीं जाए और समझौता अधिक आपराधिक कृत्यों को बढ़ावा न दे या बड़े पैमाने पर समाज के कल्याण को खतरे में नहीं डाले। 

अदालत ने इस महीने की शुरुआत में पारित एक आदेश में कहा, "वर्तमान मामले में एक छोटी सी बात पर याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी नंबर तीन के शरीर के महत्वपूर्ण हिस्से पर चाकू से वार किया गया था। केवल इसलिए कि प्रतिवादी नंबर तीन को समझौते के बाद मुआवजा दिया गया था, यह कार्यवाही को रद्द करने का समुचित आधार नहीं हो सकता है।" 

अदालत ने कहा, "इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है कि आपराधिक कानून सामाजिक नियंत्रण बनाने और समाज के भीतर लोगों के आचरण को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है। केवल मुआवजे के भुगतान से अपराध खत्म नहीं हो जाता।" याचिकाकर्ताओं ने 2019 में दर्ज की गई प्राथमिकी को इस आधार पर रद्द करने का अनुरोध किया कि मामला उनके और पीड़ित के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और पीड़ित को मुआवजा दिया जा चुका है। 

अभियोजन पक्ष ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि याचिकाकर्ताओं ने एक छोटी सी बात पर पीड़ित को शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों पर चाकू से वार कर चोटें पहुंचाई थीं। आदेश में अदालत ने कहा कि मानसिक विकृति के जघन्य और गंभीर अपराधों या हत्या, बलात्कार और डकैती जैसे अपराधों के लिए मामलों को रद्द करने की उसकी शक्तियों का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि इनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 307 के तहत अपराध को जघन्य और गंभीर अपराध माना जाता है क्योंकि इसे मुख्यत: समाज के खिलाफ अपराध माना जाता है, न कि किसी व्यक्ति के खिलाफ। 

(इनपुट- भाषा)

टॅग्स :दिल्ली हाईकोर्टक्राइमहाई कोर्ट
Open in App

संबंधित खबरें

भारत‘जाओ फांसी लगा लो’ कहने मात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं रख सकते, कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला, जानें कहानी

क्राइम अलर्टTripura Minor Girl Rape: लड़की का बारी-बारी हुआ बलात्कार, फेसबुक-इंस्टाग्राम वाले दोस्त से मिलने गई थी

क्राइम अलर्टGujarat Women Rape: काला जादू का डर, बेडरूम में तांत्रिक, विवाहित महिला का हुआ बलात्कार

भारतगैंगस्टर गोल्डी बराड़ की अमेरिका में हत्या! सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड का भी है मास्टमाइंड

क्राइम अलर्टBhopal Private School Rape Case: शहर में फैली सनसनी, 8 साल की मासूम का बलात्कार, तीन के खिलाफ एफआईआर, सीएम ने एसआईटी को दिया आदेश

भारत अधिक खबरें

भारत'इस महीने शुरू होगी CAA के तहत नागरिकता देने की प्रक्रिया', अमित शाह ने दी जानकारी

भारतTMC सांसद ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर एक महिला से 'छेड़छाड़' करने का लगाया आरोप

भारत'प्रज्वल के पूर्व ड्राइवर को मलेशिया किसने भेजा?' सेक्स टेप विवाद में आया नया ट्विस्ट

भारतBengaluru Traffic Alert: मेट्रो निर्माण कार्य के मद्देनजर 20 दिनों के लिए बेंगलुरु ट्रैफिक अलर्ट जारी

भारतकोविशील्ड के दुष्प्रभावों पर बहस के बीच भारत बायोटेक ने जारी किया बयान, कहा- "कोवैक्सीन को पहले सुरक्षा.."