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व्याभिचार तलाक का आधार हो सकता है, बच्चे की अभिरक्षा देने का नहीं: बम्बई उच्च न्यायालय

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 19, 2024 5:45 PM

अदालत ने कहा, "एक अच्छी पत्नी नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि वह एक अच्छी मां नहीं है। व्याभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अभिरक्षा से इंकार का आधार नहीं हो सकता।"

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ठळक मुद्देव्याभिचार तलाक का आधार हो सकता है, बच्चे की अभिरक्षा देने का नहीं: बम्बई उच्च न्यायालयएक अच्छी पत्नी नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि वह एक अच्छी मां नहीं है : बम्बई उच्च न्यायालयअदालत को बच्चे की भलाई को सर्वोपरि मानना चाहिए : बम्बई उच्च न्यायालय

नयी दिल्ली:  बम्बई उच्च न्यायालय ने नौ वर्षीय एक लड़की की अभिरक्षा उसकी मां को देते हुए कहा कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन बच्चे की अभिरक्षा देने का नहीं। न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की एकल पीठ ने 12 अप्रैल को एक पूर्व विधायक के बेटे द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें फरवरी 2023 में एक कुटुंब अदालत द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी। 

इस आदेश में याचिकाकर्ता की बेटी की अभिरक्षा अलग रह रही उसकी पत्नी को दी गई थी। इस पुरुष और महिला की शादी 2010 में हुई थी और उनकी बेटी का जन्म 2015 में हुआ था। महिला ने 2019 में दावा किया था कि उसे उनके घर से निकाल दिया गया। याचिकाकर्ता ने हालांकि दावा किया कि उसकी पत्नी अपनी इच्छा से चली गई थी। याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अदालत से कहा कि महिला का कई व्यक्तियों के साथ प्रेम प्रसंग है, इसलिए बच्ची की अभिरक्षा उसे सौंपना उचित नहीं होगा। 

न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि बच्ची की अभिरक्षा के मामले पर निर्णय लेते समय व्याभिचार आचरण के आरोपों का कोई असर नहीं होगा। अदालत ने कहा, "एक अच्छी पत्नी नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि वह एक अच्छी मां नहीं है। व्याभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अभिरक्षा से इंकार का आधार नहीं हो सकता।" 

जयसिंह ने अदालत को बताया कि लड़की के स्कूल के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की मां को ईमेल लिखकर उसके व्यवहार के बारे में चिंता जताई थी। उच्च न्यायालय ने हालांकि दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सवाल उठाया कि जब माता-पिता अच्छी तरह से शिक्षित हैं तो स्कूल ने दादी से संपर्क क्यों किया। याचिकाकर्ता की मां एक पूर्व विधायक हैं और लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं। 

न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि लड़की केवल नौ वर्ष की है और अभिरक्षा के मामलों में, अदालत को बच्चे की भलाई को सर्वोपरि मानना चाहिए। अदालत ने कहा, "इसलिए, मेरे अनुसार, बच्ची की अभिरक्षा पत्नी से लेकर पति को सौंपने का कोई औचित्य नहीं है।" पीठ ने याचिकाकर्ता को 21 अप्रैल तक अपनी बेटी की अभिरक्षा पत्नी को सौंपने का निर्देश दिया। महिला ने 2020 में अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ उत्पीड़न, मारपीट और आपराधिक धमकी का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। 

महिला ने एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक शिकायत भी दायर की थी और अपनी बेटी की अभिरक्षा का अनुरोध करते हुए कुटुंब अदालत के समक्ष एक आवेदन भी दायर किया था। पुरुष ने भी महिला से तलाक और बेटी की अभिरक्षा दिये जाने का अनुरोध करते हुए कुटुंब अदालत में याचिका दायर की थी। कुटुंब अदालत ने फरवरी 2023 में लड़की की अभिरक्षा मां को सौंप दी और पिता को मिलने की इजाजत दे दी थी। इस साल फरवरी में हालांकि जब लड़की सप्ताहांत के लिए अपने पिता के आवास पर गई, तो उन्होंने बच्ची को मां को सौंपने से इनकार कर दिया था। 

(इनपुट- भाषा)

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