पिछले हफ्ते की भारत-पाक टकराव से हमको बड़ी नसीहत लेने की जरूरत है। खास तौर से हमारे वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल बी।एस। धनोआ के बयान के बाद। धनोआ ने कोयम्बतूर में पत्नकारों से बात करते हुए कहा कि 26 फरवरी को पाकिस्तान में घुसकर जब हमारे जहाजों ने बालाकोट पर बम बरसाए तो ‘‘हमें पता नहीं कि कितने लोग मारे गए। हमारा काम निशाने को ठोक देना है, लाशें गिनना नहीं है।’’ दूसरे शब्दों में हमारे वायु सेना प्रमुख ने टीवी चैनलों के इस दावे को पुष्ट नहीं किया कि बालाकोट में सैकड़ों आतंकवादी मारे गए।
विदेश सचिव से अपनी उनकी पत्नकार परिषद में जब उनसे यही सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया कि मृतकों के आंकड़े बताना रक्षा मंत्नालय का काम है। जब सरकारी प्रवक्ता से यही सवाल किया गया तो उसने कहा कि बालाकोट में हमारे जहाजों ने चार भवनों को गिराया लेकिन यह नहीं बता सकते कि वहां कितने लोग मरे, क्योंकि न तो वहां हमारे जासूस थे और न ही हमारे पास उच्च कोटि के तकनीकी साधन हैं। लगभग यही स्थिति पाकिस्तान के एफ-16 जहाज को गिराने के बारे में है। एयर मार्शल धनोआ ने सिर्फ इतना ही कहा कि हमारा मिग-21 हवाई मुठभेड़ में गिर गया। उन्होंने यह नहीं कहा कि हमने एफ-16 को चकनाचूर कर दिया।
सैनिकों ने वास्तव में गजब की बहादुरी दिखाई कि उन्होंने पाकिस्तान के घर में घुसकर उसे सबक सिखाया लेकिन उस बहादुरी को जब निराधार बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है तो हमारी सरकार की छवि भी खराब होती है। उसकी बातों पर से लोगों का भरोसा उठने लगता है। कोई भी खबर स्पष्ट प्रमाण के बिना कतई नहीं आगे बढ़ानी चाहिए। युद्धों या दंगों या राष्ट्रीय विपत्तियों के समय अपुष्ट खबरें बहुत भयानक सिद्ध होती हैं। वे आग में घी का काम करती हैं।