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अफ्रीकी चीतों का नया आवासः कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान

By अनुभा जैन | Published: January 30, 2023 5:26 PM

प्रोजेक्ट चीता’ के जरिये जहां नामीबिया से चीतों को भारत लाया गया है, दुनिया की पहली अंतर-महाद्वीपीय परियोजना है जहां एक मांसाहारी प्रजाति को एक नई आबादी स्थापित करने के लिए ट्रांसलोकेट किया गया है। यह परियोजना इकोटूरिज्म के लिए बेहद लाभकारी रहेगी।

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ठळक मुद्दे यह राष्ट्रीय उद्यान 748 वर्ग किमी के वन क्षेत्र और 450 वर्ग किमी से अधिक के बफर क्षेत्र में फैला हुआ है1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित, इसे 2018 में एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था

Kuno-Palpur National Park: मध्य प्रदेश में श्योपुर जिले के चंबल क्षेत्र में स्थित कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान एशियाई शेरों के लिए भारत का दूसरा घर बनने जा रहा है, जो अब अफ्रीकी चीतों के निवास के रूप में भी सामने आ रहा है। 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित, इसे 2018 में एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था। यह राष्ट्रीय उद्यान 748 वर्ग किमी के वन क्षेत्र और 450 वर्ग किमी से अधिक के बफर क्षेत्र में फैला हुआ है।

चूंकि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शेरों और चीतों के अनुकूल विविध आवास हैं, और इसलिए प्रोजेक्ट चीता के तहत अफ्रीकी चीतों को कूनो में लाने के लिए भारत और नामीबियाई सरकारों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इसी क्रम में, पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 सितंबर, 2022 को लगभग एक महीने के लिए कूनो नेशनल पार्क में आठ चीतों को छोड़ा। पांच मादा चीतों सहित आठ चीतों को विंडहोक, नामीबिया से ग्वालियर तक एक विशेष कार्गो विमान के माध्यम से उड़ाया गया।

इसके बाद चिकित्सीय जांच के बाद, इन चीतों को भारतीय वायुसेना के दो हेलीकॉप्टरों में श्योपुर जिले के पालपुर गांव में ले जाया गया। चीते रेडियो कॉलर लगे हुए हैं और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही है।

मेरे साथ हुए एक विशेष साक्षात्कार में उत्तम कुमार शर्मा, आई.एफ.एस. मुख्य वन संरक्षक और क्षेत्र निदेशक, कूनो नेशनल पार्क ने बताया, “इन आठ चीतों को नवंबर 2022 में बड़े बाड़ों  या एनक्लोर्श्स में छोड़ दिया गया था। अगले महीनों में, पांच चीतों ने अपने आप शिकार करना शुरू कर दिया। और वे काफी हद तक स्थानीय वातावरण में समायोजित हो गए हैं।

उल्लेखनीय है कि ’प्रोजेक्ट चीता’ की शुरुआत 2009 में हुई थी जब जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री थे। हालांकि, परियोजना को आखिरकार जनवरी 2020 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हरी झंडी मिल गई। पुनर्वास परियोजना को एक तकनीकी समिति को सौंपा गया था और यह समिति इस बात की बारीकी से निगरानी कर रही है कि प्रोजेक्ट चीता किसी भी तरह से शेर पुनरुत्पादन परियोजना पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले।

पत्रकार अनुभा के साथ खास बातचीत में उत्तम शर्मा ने चीतों को जंगल में छोड़ने की प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि हाल ही में हुये अनुबंध के अनुसार फरवरी माह में 7 नर और 5 मादा चीतों को दक्षिण अफ्रीका से कूनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया जाएगा। 

शर्मा ने आगे कहा, ’इन चीतों में आठ चीतों को एक बाड़े में रखा जाएगा; हालाँकि, दो-दो चीतों को एक साथ दो अलग-अलग बाड़ों में रखा जाएगा। इन 12 चीतों को दक्षिण अफ्रीका में क्वारंटाइन किया गया है और भारत में भी एक महीने के लिए क्वारंटाइन करके रखा जायेगा। हमने 50/30 मीटर छोटे आठ नए क्वारंटाइन बोमा (फैन्सिस से घिरा छोटा स्थान) तैयार किये हैं और हमारे पास पहले से ही छह और बोमा हैं, जो एक महीने के समय के लिए इन 12 चीतों को रखने के लिए पर्याप्त हैं। 

इन छोटे बाड़ों में, हम उन्हें खिलाते हैं और एक महीने की अवधि के लिए जलवायु और परिवेश के प्रति उनकी प्रतिक्रिया और व्यवहार देखते हैं और साथ ही देखते हैं कि इन चीतों में फैलने वाली कोई बीमारी न हो। सॉफ्ट रिलीज की अवधारणा के अनुसार बाद में उन्हें 80/100 हेक्टेयर के बड़े बाड़ों में छोड़ देते हैं। हमारे पास ऐसे 9  एनक्लोर्श्स या बाड़े हैं और इस तरह 600 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है। 

इन बड़े बाड़ों में कुछ समय बिताने के बाद अगर ये जानवर आसपास के साथ तालमेल बिठा लेते हैं और शिकार करना शुरू कर देते हैं तो उनके प्रदर्शन को देखते हुए हम उन्हें जंगल में छोड़ने का फैसला लेते हैं।

परियोजना की कुल लागत के बारे में बात करते हुए शर्मा ने आगे कहा कि चूंकि यह सरकार से सरकार का अनुबंध है, इसलिए इस परियोजना में कोई लागत शामिल नहीं है। लेकिन भारत सर्विसिंग और लॉजिस्टिक्स की लागत वहन करेगा। ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय उद्यान में तेंदुए, सियार, हिरण, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सूअर एक आदर्श शिकार आधार क्षेत्र है।

यह उल्लेख करना उचित है कि इस श्रृंखला में, केंद्र सरकार 1960 और 1970 के दशक से भारत में चीतों को फिर से लाने का प्रयास कर रही है। गुजरात की कड़ी आपत्तियों के बावजूद 2013 में सिंह प्रजनन परियोजना के लिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चुना गया था। एशियाई चीता, एक अत्यधिक लुप्तप्राय प्रजाति जो केवल ईरान में मौजूद है, को आधिकारिक तौर पर 1952 में भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। 

हालांकि 1947 में भारत में चीता देखे जाने की खबरें थीं। जो अब छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान है वहां सरगुजा राज्य के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने तीन नर चीतों को गोली मार दी थी। उत्तम  कुमार शर्मा, आई.एफ.एस. मुख्य वन संरक्षक और क्षेत्र निदेशक, कूनो राष्ट्रीय उद्यान के साथ पत्रकार अनुभा जैन का विशेष साक्षात्कार

प्र. भारत में चीतों को लाने की भविष्य में और क्या योजना है?

उ. दक्षिण अफ्रीका के चीतों को मिलाकर कुनो में पहले से ही 20 चीते हैं। इसलिए अभी के लिए यह संख्या पर्याप्त है। चूंकि हमारे पास अब नर और मादा चीते हैं और हम कुनो में निकट भविष्य में और अधिक शावकों की उम्मीद कर रहे हैं। उस अर्थ में, कूनो को अधिक चीतों की आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन भारत में अन्य स्थलों या साइटों को आवश्यकता पड़ने पर निश्चित रूप से अधिक चीते मंगाये जा सकते हैं। साउथ अफ्रीका के साथ जिस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं, वह अगले 8-10 वर्षों के लिए देश में एक स्थायी चीता आबादी बनाने के लिए हर साल 10-12 चीता लाने के लिए है।

प्र. हमें भारत के उन प्रमुख स्थलों के बारे में बताएं जहां अफ्रीकी चीतों को स्थानांतरित किया जा सकता है?

उ. पर्यावरण मंत्रालय ने पांच मध्य भारतीय राज्यों में 10 साइटों की पहचान की है जहां चीतों को स्थानांतरित किया जा सकता है। मोटे तौर पर, ये स्थल राजस्थान में डेजर्ट नेशनल पार्क और मुकुंदरा के पास हैं; मध्य प्रदेश में कुनो, मारादही और गांधी सागर; उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश सीमा और गुजरात में घास के मैदान शामिल हैं। 

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