लाइव न्यूज़ :

नामवर सिंह का एक किस्सा: शेख की दावत में मय का क्या काम...

By रंगनाथ सिंह | Published: July 28, 2021 3:24 PM

आज प्रसिद्ध विद्वान एवं हिन्दी लेखक नामवर सिंह की जयंती है। नामवर का जन्म 28 जुलाई 1926 को चंदौली जिले (तब वाराणसी) के जीयनपुर गाँव में हुआ था। उनका निधन 19 फरवरी 2019 को नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर हुए। नामवर सिंह के जन्मदिन पर पढ़ें उनसे जुड़ा एक किस्सा...

Open in App

आज (28 जुलाई) नामवर सिंह का जन्मदिन है। जीवन में बहुत कम मौकों पर मैं सही साबित हुआ हूँ। नामवर जी के बारे में मेरा एक अनुमान सही साबित होता दिख रहा है जिसकी वजह से मैं कभी-कभी थोड़ा खुश हो लेता हूँ। काफी पहले एक नौजवान कवि से कहा था, नामवर जी को मरने दो उसके बाद देखना उनका कद और बढ़ेगा। 

नामवर जी 2019 में मरे। पिछले दो सालों पर नजर डालने के बाद कह सकते हैं कि नामवर जी अभी कई सालों तक कुछ लोगों की छाती पर मूँग दलते रहेंगे। यह जुमला नामवर जी ने तब कहा जब उनकी उम्र 90 हो चुकी थी। देह कृशित, वाणी कम्पित और स्मृति जरा मद्धिम हो गयी थी। उन्होंने यह जुमला दो केंद्रीय मंत्रियों पर जवाबी तंज कसते हुए उनके बगल में खड़े होकर कहा था। अप्रतिम विद्वता के साथ यह जीवट, यह ठसक ही उन्हें नामवर बनाती थी। जब तक हिन्दी भाषा रहेगी नामवर जी उसकी स्मृतियों में बने रहेंगे। 

नामवर जी के जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत है एक किस्सा जो करीब 13-14 साल पुराना है। पाकिस्तान के एक चर्चित विद्वान लेखक की नई-नई किताब आई थी। किताब का विषय हिन्दी-उर्दू भाषा था। किताब अंग्रेजी में थी। अंग्रेजी के एक विदेशी प्रकाशक ने छापी थी। नई दिल्ली स्थित एक केन्द्रीय विश्विद्यालय में उस किताब पर परिचर्चा रखी गयी।  उस कार्यक्रम में नामवर जी बोलने आ रहे थे, इस कारण सभागार में हिन्दी जबान वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी। 

किताब पर बोलने के लिए मंच पर जो लोग मौजूद थे उनमें एकमात्र नामवर सिंह ऐसे दिख रहे थे जिनके हिन्दी में बोलने की संभावना थी। मंच पर जो अंग्रेजीदाँ वक्ता मौजूद थे वो भी हल्के-फुल्के वाले अंग्रेजी-धकेल नहीं थे। मामला बहुत हाई-प्रोफाइल और आक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज वाला था। माहौल कुछ ऐसा था कि हम जैसे कई लोगों के मन में यह सवाल बार-बार आ रहा था कि क्या नामवर जी अंग्रेजी में बोलेंगे!

कार्यक्रम शुरू हुआ। जैसी उम्मीद थी वक्ताओं ने अपनी-अपनी शैली की नफीस अंग्रेजी में बात रखनी शुरू की। न जाने क्या वजह है कि जहाँ भी नफीस-अंग्रेजी बरस रही हो वहाँ खांटी-हिन्दी वाले कार्यक्रम भर  "सावधान" की मुद्रा में दिखाई देते हैं। वहाँ भी ऐसा ही माहौल था। 'अंग्रेजी-श्रोता' बेतकल्लुफी के साथ सुन रहे थे और 'हिन्दी-उर्दू-श्रोता' अति-सजगता के साथ।

गेंद घूम कर नामवर जी के पाले में पहुंची। नामवर जी ने बोलने से पहले एक बार अपने दायें देखा, फिर बायें देखा, फिर सभागार पर विहंगम दृष्टि डाली और बोले, "मुझे तो समझ में नही आया कि मुझे यहाँ कैसे बुला लिया गया ! फिर श्रोताओं कि तरफ मुखातिब होकर कहा इन लोगों ने सोचा होगा कि,  "शेख की दावत में मय का क्या काम? मगर एहतियातन कुछ मँगा ली जाए" 

नामवर जी का आशय था कि, शराब (हिन्दी) को हराम मानने वालों की  दावत में मय (नामवर जी) इसलिए मँगा ली गयी होगी कि शायद कुछ पीने वाले (हिन्दी श्रोता) भी आ जाएँ।नामवर जी के इस औचक विस्फोट से मंच पर बैठे मुख्य-आयोजक क्षण-भर को थोड़े सकुचाए लेकिन तब तक हाल तालियों और कहकहों से गूंज चुका था। श्रोताओं के साथ ही आयोजक, किताब के लेखक भी दिल-खोल कर हंस रहे थे। नामवर जी मंद-मंद तिर्यक मुस्कान बिखर रहे थे।

मैंने नोटिस किया है कि जब हाल में उनके कहे पर तालियाँ बज रही हों तब नामवर जी मौन रह कर उनका पूरा रस लेते हैं और जब तक तालियाँ सम पर नहीं आ जातीं वो अगला वाक्य नहीं बोलते। उस दिन भी करीब मिनट-दो मिनट की जोरदार तालियों  के सम पर आने के बाद नामवर जी ने दूसरा विस्फोट कर दिया। जो अपने प्रभाव में पहले विस्फोट से उलट था। पहले से हँसी फूटी थी तो अबकी हाल में सकपकाहट फैल गई। मंच पर विराजमान सज्जनों का चेहरा तो खासतौर पर देखने लायक था।

शेख और मय वाली शेरो-शायरी के बाद नामवर जी का पहला वाक्य था कि- "मैंने यह किताब नहीं पढ़ी है" किताब पर कार्यक्रम है और वक्ता ने पढ़ी ही नहीं है, यह सुनकर आयोजक,किताब के लेखक और श्रोताओं का असहज हो जाना स्वाभविक ही था। (इस बयान के बाद हिन्दी वालों में यह खुसपुसाहट होने लगी कि क्या आज नामवर जी इन लोगों को 'ध्वस्त' करने के इरादे से आए हैं क्या ??) 

नामवर जी ने किताब न पढ़ पाने के पीछे किताब के देर से मिलने जैसी कोई वजह दी। उसके बाद उन्होंने लम्बे पॉज के बाद अपना वाक्य पूरा करते हुए बताया कि कार्यक्रम में बोलने के लिए उन्होंने किताब का एक अध्याय पढ़ा है और वो केवल उसी पर बोलेंगे।

नामवर जी ने उस एक अध्याय पर बोला, बढ़िया बोला। बीच-बीच में तालियाँ बजती रहीं। किताब के लेखक समेत तमाम लोग उनके वक्तव्य से काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे। सभा-विसर्जन के बाद नामवर जी की खूब जय-जय हुई। 'हिन्दी वाले' 'नफीस-अंग्रेजी वालों' की सभा से गदगद भाव से बाहर निकले। ज्यादातर हिन्दी श्रोता इसी बात से गौरवान्वित थे कि नामवर जी ही हैं जो ऑक्सफोर्ड-कैम्ब्रिज वालों के बीच भी हिन्दी का मान रखते हुए महफिल पर छा सकते हैं।

टॅग्स :नामवर सिंहहिंदी साहित्यहिन्दी
Open in App

संबंधित खबरें

भारतDELHI News: ‘हिन्दी पाठक को क्या पसन्द है’ विषय पर परिचर्चा, लेखक जो लिखे उस पर वह भरोसा कर सके...

भारतराजकमल प्रकाशन दिवस पर विचार पर्व ‘भविष्य के स्वर’ का आयोजन, 77वाँ सहयात्रा उत्सव

ज़रा हटकेमौत की खबर से भड़की पंचायत 2 एक्ट्रेस, बोलीं- "मैं जिंदा हूं, सही सलामत हूं"

भारतब्लॉग: भाषा से ही अस्तित्व अर्थवान होता है!

भारतWorld Book Fair 2024 in New Delhi: विश्व पुस्तक मेला का तीसरा दिन, नासिरा शर्मा, चंचल चौहान, सॉनेट मंडल और अदनान कफील दरवेश की किताबों का लोकार्पण

भारत अधिक खबरें

भारतRajkot Gaming Zone Fire: राजकोट हादसे की जांच करेगी SIT, गेमिंग जोन में आग लगने से 9 बच्चों समेत 27 की मौत से मचा हाहाकार

भारतयूपी: शाहजहांपुर में बड़ा सड़क हादसा, बस-ट्रक की टक्कर में 11 लोगों की मौत, 10 घायल

भारतGujarat fire: राजकोट में गेमिंग जोन में भीषण आग से हुआ बड़ा हादसा, 24 लोगों की हुई मौत, पीएम मोदी ने जताया शोक

भारतDelhi Lok Sabha polls 2024: राष्ट्रीय राजधानी में शाम 7 बजे तक 54.48% मतदान दर्ज; नई दिल्ली सीट में सबसे कम

भारतLok Sabha Elections 2024: छठे चरण में 59% से अधिक मतदान, पश्चिम बंगाल 78% के साथ सबसे आगे