मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ 'ग़ालिब'... या यूं कहें कि 'प्यार और एहसासों के शहंशाह' ग़ालिब को हर वह आशिक जानता है जो कभी प्यार के दरिया में डूबा हो। ग़ालिब उर्दू शायर थे जिनका जन्म आगरा में हुआ। उनकी शायरी ने केवल देश ही नहीं विदेश में भी अपनी पहुंच बनाई। कहते हैं ग़ालिब के इश्क भरे लफ़्ज़ों ने तो पत्थर को भी मोम बना दिया तो फिर इंसान क्या चीज़ है। यहां पेश है ग़ालिब की कलम से लिखे गए कुछ शेर जिनका इस्तेमाल आपकी बात-चीत का वजन बढ़ा देगा...
1.हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिनदिल को खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख्याल अच्छा है
2.दर्द जब दिल में हो तो दावा कीजियेदिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिये
3.हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकलेबहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
4.इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश है 'ग़ालिब' कि लगाए ना लगे और बुझाए ना बने
5.उन के देखे से जो आती है मुंह पर रौनकवो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
6.फिर उसी बेवफा पे मरते हैं फिर वही ज़िन्दगी हमारी हैबेखुदी बेसबब नहीं 'ग़ालिब' कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है
7.दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या हैआखिर इस दर्द की दवा क्या है
8.ना था कुछ तो खुदा था कुछ ना होता तो खुदा होताडुबोया मुझको होने ने ना होता मैं तो क्या होता
9.इश्क ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के।
आपको हमारी ये पेशकश कैसी लगी। गालिब का कौन सा शेर है आपका फेवरेट। हमें बताइएगा जरूर।