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सामाजिक शर्मिंदगी के कारण मनरेगा में काम नहीं करना चाहते छोटे किसान, सम्मानजनक रोजगार पैदा करने की जरूरत: नीति आयोग सदस्य

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 25, 2021 12:50 PM

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि सामाजिक शर्मिंदगी के कारण कृषक परिवारों के लोग मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं. पीढ़ियों से खेती करने वालों के लिए मनरेगा में काम करना आसान नहीं है. कुछ लोग बहुत मजबूरी में काम करते हैं.

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ठळक मुद्देनीति आयोग के एक सदस्य ने कहा कि छोटे किसान सामाजिक शर्मिंदगी के कारण मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं.उनका मानना है कि भूमिहीन परिवारों और छोटे किसान परिवारों के लिए सम्मानजनक रोजगार के बारे में सोचे जाने की आवश्यकता हैउन्होंने कृषक परिवारों की परिभाषा के बारे में भी गंभीर सवाल उठाए.

नई दिल्ली:नीति आयोग के एक सदस्य का मानना है कि भूमिहीन परिवारों और छोटे किसान परिवारों के लिए सम्मानजनक रोजगार के बारे में सोचे जाने की आवश्यकता है क्योंकि सामाजिक शर्मिंदगी के कारण वे मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि सामाजिक शर्मिंदगी के कारण कृषक परिवारों के लोग मनरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं. पीढ़ियों से खेती करने वालों के लिए मनरेगा में काम करना आसान नहीं है. कुछ लोग बहुत मजबूरी में काम करते हैं.

उन्होंने 100-4000 वर्ग मीटर और 1-2.5 एकड़ के बीच के किसान परिवारों के लिए सम्मानजनक रोजगार पैदा करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

आजादी का अमृत महोत्सव के तहत इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च द्वारा आयोजित कार्यक्रम में रमेश चंद ने कृषक परिवारों की परिभाषा के बारे में भी गंभीर सवाल उठाए.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा किए गए एक सर्वे के नतीजे पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भूमिहीन परिवारों की आय 100-4000 वर्ग मीटर और 1-2.5 एकड़ के बीच कृषि जमीन वाले परिवारों से अधिक है.

दरअसल, सर्वे में पता चला है कि भूमिहीन परिवारों की मासिक आय 11,204 रुपये है जबकि 0.01-0.4 हेक्टेयर और 0.4-1 हेक्टेयर जमीन वाले किसान परिवारों की आय 7,522 और 8,571 रुपये के बीच है.

केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के बारे में उन्होंने कहा कि अगले 10 सालों की बात करें तो असहमति के बावजूद तीनों कानून सुधार की शुरुआत हैं.

बता दें कि, इन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से ही दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे हैं और सरकार के साथ उनकी अभी तक की बातचीत बेनतीजा रही है.

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