वर्तमान विधेयक के कुछ प्रावधान और इसके सदनों में प्रस्तुत करने का तरीका भी सवाल खड़े करता है। कई सांसदों ने चर्चा के दौरान कहा कि इस महत्वपूर्ण संविधान संशोधन विधेयक की प्रति भी उन्हें पहले उपलब्ध नहीं कराई गई।
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यानी यह मामला हिंदू-मुसलमान का उतना नहीं है, जितना कुर्सी का है। पड़ोसी देशों के सभी नागरिक भी भारत मां की ही संतान हैं। अभी 72 साल पहले तक पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के ही अंग थे।
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पूर्वोत्तर भारत में गोपीनाथ बरदलै से लेकर पियोंग तेमजन जमीर, परेशचंद्र देवशर्मा, रजनीकांत चक्र वर्ती और नवीनचंद्र कलिता ने हिंदी की सेवा की। सबसे अधिक ध्यान देने योग्य यह है कि देवनागरी के लिए पूर्वोत्तर के ही एक अहिंदीभाषी ने शहादत दी थी।
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निश्चित तौर पर चीन एक महाशक्ति है, सिर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं बल्कि सामरिक तौर पर भी। चीन दुनिया की कूटनीतिक प्रतिक्रिया की भी परवाह नहीं करता है।
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विरोधियों का यह तर्क बिल्कुल सही है कि यह मोदी का चुनावी पैंतरा है। वह चुनावी पैंतरा है तो है। इसमें बुराई क्या है? अगर किसी भी पैंतरे से लोगों का भला हो रहा है तो उस पैंतरे का स्वागत है।
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संघ की तरफ से की जा रही यह मांग उसकी अपनी सरकार से थी, न कि किसी गैर-भाजपा सरकार से। जब नरेंद्र मोदी ने कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बगैर अध्यादेश लाने से इनकार किया तो स्पष्ट हो गया कि संघ परिवार अपनी ही सरकार से यह मांग मनवाने में नाकाम रहा है।
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सवर्ण वोट भले ही संख्या के मामले में कम हों लेकिन चुनाव में पब्लिक परसेप्शन को बदलने की ताकत आज भी रखते हैं और ये बात राजनीतिक पार्टियों को पता है. क्योंकि सभी पार्टियों में आज भी थिंक टैंक से जुड़े लोग सवर्ण समुदाय से ही हैं.
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