क्रिकेट ब्लॉग: आज मैं ऊपर आसमां नीचे
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 8, 2019 07:24 PM2019-01-08T19:24:29+5:302019-01-08T19:24:29+5:30
विराट सेना की अगुवाई में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसी धरती पर जिस आसानी के साथ चारों खाने चित किया, उसमें चेतेश्वर पुजारा का योगदान सबसे अहम रहा।
(राम ठाकुर)
भारतीय क्रिकेट के लिए शीर्षक की पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं। ऐसा कारनामा जिसके लिए 71 सालों का लंबा इंतजार करना पड़ा हो। जी हां, टेस्ट सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को उसी की धरती पर करारी शिकस्त देना बड़ी कामयाबी रही। आजादी के बाद लालाजी (अमरनाथ) की अगुवाई में वर्ष 1947-48 के बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया में अनेक यात्रएं कीं, लेकिन वहां की बाउंसी विकेटों पर भ्रमणकारी भारतीय टीम जीत के लिए तरसती रही। यही बात केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि उपमहाद्वीप की अन्य टीमों के लिए भी जीत दर्ज कर पाना असंभव ही रहा है।
सीरीज शुरू होने से पूर्व भारतीय टीम को जीत का दावेदार माना जा रहा था। यह सच है कि पूर्व कप्तान स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर की अनुपस्थिति में टीम बेहद कमजोर हो गई। लेकिन इससे भारतीय टीम की इस कामयाबी को कम करके आंका भी नहीं जा सकता। इसकी और भी वजहें हैं।
मसलन, श्रृंखला से पूर्व मेजबान टीम प्रबंधन जिस गेंदबाजी आक्रमण को अपनी ताकत मान रहा था उसे चेतेश्वर पुजारा की अगुवाई में भारतीय बल्लेबाजों ने निरस्त किया। यह सच है कि वह केवल मजबूत गेंदबाजी के मोर्चे पर जीत दर्ज नहीं कर सकते थे, लेकिन भारतीय अभियान को रोकने का प्रयास तो जरूर हो सकता था। नतीजतन, तीसरे और चौथे टेस्ट में कंगारुओं को विराट सेना के सामने पूरी तरह नतमस्तक होते देखने का यह पहला ही अवसर रहा। विराट सेना की अगुवाई में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को उसी धरती पर जिस आसानी के साथ चारों खाने चित किया, उसमें चेतेश्वर पुजारा का योगदान सबसे अहम रहा।
सीरीज में तीन शतकों के साथ सर्वाधिक 521 रन बनाकर उन्होंने टेस्ट क्रिकेट की परंपरा को कायम रखने में बड़ी भूमिका निभाई। सचिन-द्रविड़-गांगुली-लक्ष्मण जैसे दिग्गजों की विदाई केबाद किसी भारतीय बल्लेबाज ने अपनी तकनीक के बल पर टीम को ऐतिहासिक कामयाबी दिलाई है। टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती महज रन बनाना नहीं है। गेंदों की वरीयता को ध्यान में रखकर संयम के साथ बल्लेबाजी करना होता है। फटाफट क्रिकेट के युग ने इस प्रारूप की सुंदरता भुला दी, लेकिन पुजारा (सीरीज में 1258 गेंदों का सामना) ने टेस्ट क्रिकेट के उस स्वर्णिम की याद ताजा कर दी। पुजारा के अलावा युवा मयंक अग्रवाल और हनुमा विहारी ने अपने प्रदर्शन से छाप छोड़ी। इन दोनों की कामयाबी में घरेलू लंबे प्रारूप की राष्ट्रीय क्रिकेट स्पर्धा- रणजी ट्रॉफी का बड़ा योगदान रहा। जिस दौर में इन दोनों को उतारा गया वह इनके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं था, लेकिन पूरे संयम के साथ उन्होंने अपनी उपयोगिता साबित की। जसप्रीत बुमराह की उपलब्धियों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।