वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पड़ोसी देशों के हिंदुओं का स्वागत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 10, 2019 07:26 PM2019-01-10T19:26:41+5:302019-01-10T19:26:41+5:30
यानी यह मामला हिंदू-मुसलमान का उतना नहीं है, जितना कुर्सी का है। पड़ोसी देशों के सभी नागरिक भी भारत मां की ही संतान हैं। अभी 72 साल पहले तक पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के ही अंग थे।
लोकसभा ने मंगलवार को एक बहुत विवादास्पद मुद्दे पर विधेयक पारित कर दिया। इस नागरिकता विधेयक का मूल उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम लोगों को भारतीय नागरिकता देना है। अर्थात इन देशों का यदि कोई भी नागरिक हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, यहूदी हो और वह आकर भारत में बसना चाहे तो वैसी छूट मिलेगी। उनसे कानूनी दस्तावेज वगैरह नहीं मांगे जाएंगे। दूसरे शब्दों में भारत सरकार हर तरह से उनकी मदद करेगी। वैसे तो इस कानून का भारत में सभी को स्वागत करना चाहिए। उसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि ये तीनों देश- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश किसी जमाने में भारत का ही हिस्सा थे।
पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू विशेष तौर से भारत आकर रहना चाहते हैं। यदि भारत उनके लिए अपनी बांहें पसारता है तो इसमें कुछ बुराई नहीं है। यह स्वाभाविक ही है लेकिन असम गण परिषद और प। बंगाल की तृणमूल कांग्रेस जैसी संस्थाओं ने इस विधेयक के विरु द्ध संग्राम छेड़ दिया है। अगप ने तो असम में भाजपा से अपना गठबंधन ही तोड़ दिया है। सच्चाई यह है कि इन दोनों प्रदेशों में इन राजनीतिक दलों को डर है कि इस कदम से उनका हिंदू वोट बैंक अब खिसककर भाजपा के पाले में जा बैठेगा। उनका यह डर सही है।
यानी यह मामला हिंदू-मुसलमान का उतना नहीं है, जितना कुर्सी का है। पड़ोसी देशों के सभी नागरिक भी भारत मां की ही संतान हैं। अभी 72 साल पहले तक पाकिस्तान और बांग्लादेश भारत के ही अंग थे। पिछले चार-पांच सौ साल पहले तक नेपाल, भूटान, बर्मा, अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि सभी पड़ोसी देश भारत ही कहलाते थे। इसीलिए पड़ोसी देशों के दुखी नागरिकों के बारे में भारत का रवैया हमेशा जिम्मेदाराना ही होना चाहिए। जब 1971 में लाखों बांग्ला मुसलमान भारत में आ गए तो भारत ने उनका स्वागत किया या नहीं ? बेहतर यही है कि पड़ोसी राष्ट्रों के संकटग्रस्त लोगों को, चाहे वे किसी भी मजहब, जाति या वर्ग के हों, हम उन्हें अपने बड़े परिवार का हिस्सा ही समझे।