वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: आरक्षण के पैंतरे में बुराई क्या है!
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 9, 2019 08:35 PM2019-01-09T20:35:02+5:302019-01-09T20:35:02+5:30
विरोधियों का यह तर्क बिल्कुल सही है कि यह मोदी का चुनावी पैंतरा है। वह चुनावी पैंतरा है तो है। इसमें बुराई क्या है? अगर किसी भी पैंतरे से लोगों का भला हो रहा है तो उस पैंतरे का स्वागत है।
केंद्र सरकार की इस घोषणा का कोई भी विरोध नहीं कर सकता कि देश के सवर्णो में जो भी आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं, उन्हें भी अब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। यह सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं है। यह भारत के उस हर नागरिक के लिए है, जिसकी आय 8 लाख रु । सालाना से कम है या जिसके पास पांच एकड़ से कम जमीन है। यानी वह किसी भी धर्म का हो सकता है। दूसरे शब्दों में यह आर्थिक आरक्षण जाति, संप्रदाय और मजहब की सीमाओं से भी ऊपर उठ गया है।
अब विरोधी दल कह रहे हैं कि मोदी ने यह चुनावी दांव मारा है। अगले तीन-चार माह में यह घोषणा कानून कैसे बन पाएगी? यदि यह कानून बन भी जाए तो इस संवैधानिक संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक घोषित कर देगा, क्योंकि कई उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय (1992) का फैसला है कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उनकी राय में संविधान सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ों को आरक्षण देता है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़ों को नहीं। लेकिन यह आर्थिक आरक्षण पहले से दिए जा रहे 50 प्रतिशत आरक्षण में सेंध नहीं लगाएगा। अब आरक्षण 50 प्रतिशत की जगह 60 प्रतिशत होगा। ये बात दूसरी है कि नौकरियां घट रही हैं और आरक्षण बढ़ रहा है।
विरोधियों का यह तर्क बिल्कुल सही है कि यह मोदी का चुनावी पैंतरा है। वह चुनावी पैंतरा है तो है। इसमें बुराई क्या है? अगर किसी भी पैंतरे से लोगों का भला हो रहा है तो उस पैंतरे का स्वागत है। नरसिंह राव सरकार ने भी इस 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण की घोषणा की थी। कांग्रेस के 2014 के चुनावी घोषणा-पत्न में भी यह था। मायावती, वसुंधरा राजे और केरल की सरकारों ने भी ऊंची जातियों के गरीब लोगों को आरक्षण देने की मांग की थी। नौकरियां शुद्ध योग्यता के आधार पर दी जानी चाहिए। आरक्षण सभी सरकारी और गैर-सरकारी शिक्षा-संस्थाओं में दिया जाना चाहिए और प्रत्येक गरीब के बच्चे को दिया जाना चाहिए।