रमेश ठाकुर का ब्लॉग: सांसदों की उदासीनता से व्यर्थ जाती सांसद निधि
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 9, 2019 07:12 PM2019-01-09T19:12:54+5:302019-01-09T19:12:54+5:30
जनता बड़ी उम्मीद के साथ अपनी पसंद के जनप्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भेजती है ताकि उनके क्षेत्र का विकास हो सके।
केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यान्वयन मंत्रलय की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर सांसदों ने अपनी सांसद निधि का इस्तेमाल नहीं किया है। लोकसभा के 543 सांसदों में से मात्र 35 सांसद ही अपनी विकास निधि का पूरा उपयोग कर पाए, अन्य 508 सांसदों ने विकास कार्यो में उदासीनता दिखाई।
जनता बड़ी उम्मीद के साथ अपनी पसंद के जनप्रतिनिधियों को चुनकर संसद में भेजती है ताकि उनके क्षेत्र का विकास हो सके। लेकिन जीतने के बाद उनका कई बार अपने क्षेत्र और जनता से कोई लेना देना नहीं होता। इस बार कई सांसद ऐसे रहे जो अपने क्षेत्रों में एकाध बार ही गए। रंगमंच की दुनिया से जुड़े ऐसे सांसदों की तादाद ज्यादा है। दरअसल उनके पास अपने फील्ड का ही काम इतना होता है जिससे वह नेतागीरी में ज्यादा समय नहीं दे पाते। इससे अनुमान लगा सकते हैं कि वह सांसद निधि को खर्च करने में समय कैसे निकालेंगे।
केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्यों को अपने पूरे कार्यकाल में 21,125 करोड़ रुपए सांसद निधि के तौर पर खर्च करने के लिए आवंटित किए जाते हैं। लेकिन पिछले दस वर्षो से देखने को मिला है कि यह राशि खत्म नहीं हो सकी। कुल राशि में करीब 12 हजार करोड़ रुपए अभी तक सरकारी सुस्ती के कारण सरकारी खजाने में पड़े हैं। इस राशि को खर्च करने की सांसदों ने पहल ही नहीं की। इस मसले पर हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्र म क्रियान्यवयन मंत्रलय ने इस साल की सालाना समीक्षा बैठक कर गहरी चिंता जताई है।
गौरतलब है कि वर्ष 1993 में जब प्रथमत: सांसद निधि का प्रावधान लागू किया गया था, उस वक्त यह कहा गया था कि इससे भ्रष्टाचार में तब्दीली आएगी। वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार समिति इस फंड को समाप्त करने की सिफारिश भी कर चुकी थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी ने सांसद निधि की राशि एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ रुपए सालाना कर दी। जिस सांसद निधि को पी।वी। नरसिंह राव ने एक करोड़, अटल बिहारी वाजपेयी ने दो करोड़ और डॉ। मनमोहन सिंह ने पांच करोड़ किया, उसी सांसद निधि के लिए कई सांसद मांग कर रहे हैं कि अब यह राशि पचास करोड़ रु। कर दी जानी चाहिए, ताकि सांसद आदर्श-ग्राम योजना का क्रियान्वयन किंचित सुविधाजनक हो सके। सवाल उठता है जब मौजूदा फंड ही खर्च नहीं होता, तो फिर बढ़ाने का मतलब ही क्या है। इस फंड को सीधे अब केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यान्वयन मंत्रलय के अधीन कर देना चाहिए। जिस सांसद को जितना पैसा चाहिए उसे मांगपत्र के आधार पर मुहैया किया जाए।