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डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: मणिपुर हिंसा के पीछे चीन का हाथ !

By विजय दर्डा | Published: June 19, 2023 7:15 AM

उपद्रवियों ने थानों से इतनी आसानी से हथियार कैसे लूट लिए? कहां से मिल रहीं अत्याधुनिक राइफलें? मणिपुर इतनी भीषण आग के हवाले कैसे हो गया? अपनी कमजोरियों से हमें इनकार नहीं लेकिन पड़ोसियों की साजिश की गंध भी तेजी से फैलने लगी है।

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इस समय देश की सबसे बड़ी चिंता मणिपुर को लेकर है. पिछले महीने हिंसा की जो शुरुआत हुई थी, वह थमने का नाम नहीं ले रही है. 130 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. गांव के गांव जला दिए गए हैं. क्रूरता की हद तो यह है कि सुरक्षा बलों और उपद्रवियों के बीच झड़प में एक बच्चे को भी गोली लगी. उस बच्चे को जिस एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया जा रहा था, उस एंबुलेंस में उपद्रवियों ने आग लगा दी. एंबुलेंस में सवार सभी आग के हवाले हो गए. इस वक्त पचास हजार से ज्यादा लोग आर्मी कैंप या अन्य शरण स्थलों में रहने को मजबूर हैं.

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत 3 मई को हुई और 8 मई को मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि बारूद के ढेर पर क्यों हैं सेवेन सिस्टर्स? मैंने लिखा था कि कुकी जनजाति ज्यादातर ईसाई है और मैतेई अधिकांशत: हिंदू और थोड़े से मुस्लिम हैं. इसलिए इस विवाद को सांप्रदायिक रंग भी दिया जा रहा है. इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्वोत्तर की समस्याओं में पड़ोसी देशों ने आग में घी डालने का काम किया और उग्रवाद को बड़े पैमाने पर पाला-पोसा है. 

आज भी पूर्वोत्तर के कई राज्यों में ऐसे उग्रवादी सक्रिय हैं जिन्हें चीन से और यहां तक कि पाकिस्तानी सेना व आईएसआई से हथियार प्राप्त होते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि हम केवल पड़ोसियों को दोषी ठहराकर अपनी गलतियों से मुंह नहीं मोड़ सकते. पड़ोसी तभी दखल दे पाता है जब हमारा घर कमजोर होता है और सरहद पर हथियारों और उग्रवादियों की आवाजाही के लिए जगह होती है.

तमाम कोशिशों के बावजूद हकीकत यह है कि चीन और पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले उग्रवादी समूह आज भी वहां मौजूद हैं. वहां उग्रवाद का स्वरूप क्या है, इसका आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि पिछले 9 सालों में 8 हजार से ज्यादा उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है. जरा सोचिए कि वहां उग्रवादियों की वास्तविक संख्या कितनी होगी!

मणिपुर में ताजा हिंसा फैलने के केवल 48 घंटों के भीतर सेना और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां पहुंच गई थीं. इसके बावजूद हत्याएं होती रहीं, गांव आग के हवाले होते रहे. मंत्री का घर जला दिया गया! दरअसल स्थानीय पुलिस हमेशा से गंभीर सवालों के घेरे में रही है.  मणिपुर के पुलिस कमांडोज पर तो खुलेआम यह आरोप भी लगा कि वे खास उपद्रवियों का साथ दे रहे थे. वे जिन इलाकों में तैनात थे वहां पुलिस बटालियन और थानों से खुलेआम हथियार लूट लिए गए. तीन हमलों में 1200 से ज्यादा हथियार लूट लिए गए और एक मुठभेड़ तक नहीं हुई! कौन गुनहगार है, यह कहना मुश्किल है क्योंकि कुकी और मैतेई दोनों ही एक-दूसरे पर हथियार लूटने का आरोप लगा रहे हैं. 

आपको जानकर हैरत होगी कि जो हथियार उग्रवादियों ने लूटे, सेना और अर्धसैनिक बलों के खिलाफ उन्हीं का इस्तेमाल किया गया है. और हां, उपद्रवी जिस तरह से सेना और अर्धसैनिक बलों के साथ मुठभेड़ कर रहे हैं, उससे लगता नहीं है कि वे सामान्य ग्रामीण या शहरी लोग हैं. हथियार ऐसे चलाए जा रहे हैं जैसे उन्होंने पहले से प्रशिक्षण ले रखा हो. स्पष्ट रूप से आधिकारिक स्तर पर भले ही यह नहीं कहा गया हो कि पाकिस्तान, आईएसआई और म्यांमार स्थित उग्रवादी समूहों की सहायता से चीन मणिपुर की आग में घी डाल रहा है लेकिन भारतीय खुफिया तंत्र के भीतर इस बात की चर्चा जरूर होने लगी है. इस आशंका के पुख्ता कारण भी हैं. 

म्यांमार के इलाके में ऐसे कई उग्रवादी समूह हैं जो घोषित रूप से भारत के खिलाफ चीन के लिए काम करते हैं. भारत में सेना पर हमला करके वे म्यांमार भाग जाते हैं. ऐसे ही एक हमले के बाद भारतीय सेना ने एक बड़ा ऑपरेशन चलाया था. उस ऑपरेशन को लेकर छोटी फिल्म भी बन चुकी है.

सरकार को चीन की हरकतों का अंदाजा अच्छी तरह से है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर के राज्यों की 50 से अधिक यात्राएं की हैं. अमित शाह को खासतौर पर लगा रखा है कि उन समूहों से बातचीत की जाए जिनकी कुछ मांगें हैं लेकिन वे देश विरोधी नहीं हैं. गोपनीय स्तर पर कुछ समझौतों की खबरें भी आती रही हैं.

कई उग्रवादी समूहों ने हथियार भी डाल दिए हैं और मुख्य धारा में शामिल भी हुए हैं लेकिन चीनी टुकड़ों पर पलने वाले उग्रवादी तो भारत को तबाह करने की मंशा रखते हैं. मणिपुर शांत होने लगा था. पिछले साल वहां शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा चुनाव हुए. हालात बेहतर होने की वजह से ही कई इलाकों से सैन्य बल विशेष कानून भी हटा लिया गया. तो फिर ऐसा क्या हो गया कि मणिपुर अचानक से जल उठा? ऊपरी तौर पर जनजातियों को लेकर न्यायिक आदेश भले ही इसका कारण दिखता हो, सामान्य तौर पर यह प्रारंभिक कारण है भी लेकिन पर्दे के पीछे की गहरी साजिश से कोई इनकार नहीं कर सकता है.

इस ताजा उपद्रव के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो मणिपुर पहुंचकर जायजा लिया ही, सेना प्रमुख मनोज पांडे भी वहां पहुंचे. फिलहाल तो निश्चय ही यह कानून व्यवस्था का मामला है और इससे सख्ती से ही निपटा जाना चाहिए. जो भी व्यक्ति कानून हाथ में ले रहा है, उसे उसकी भाषा में ही जवाब देने की जरूरत है. लेकिन इससे ज्यादा जरूरत उस पूरे इलाके में रोजगार के व्यापक साधन उपलब्ध कराने के साथ ही हर व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचाने की है कि चीन भारत को तोड़ना चाहता है. 

पूर्वोत्तर के राज्यों में इसीलिए खुराफात कर रहा है. हमारी खुफिया एजेंसियों ने जिस तरह से अरुणाचल प्रदेश में पैठ बनाई, उसी तरह की पैठ बाकी के पूर्वोत्तर के राज्यों में भी वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है ताकि हर षड्यंत्र की भनक हमें पहले ही लग जाए और मणिपुर जैसे हालात पैदा न होने पाएं. ऐसे मामलों से निपटने के लिए सख्ती भी चाहिए और प्यार भी! मैं प्यार की चर्चा इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आधुनिकता के बीच भी पूर्वोत्तर की संस्कृति को बचाए रखने की जिम्मेदारी हम सबकी है. हिंदुस्तान रूपी बगीचे को प्यार से सींचेंगे तभी हर मौसम में मोहब्बत के फूल खिलेंगे.

टॅग्स :मणिपुरचीनइंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी)
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