इजराइल-हमास युद्ध के दौरान पीड़ित मानवता की सेवा करते हुए भारत के जांबाज सपूत कर्नल (सेवानिवृत्त) वैभव अनिल काले ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. अपनी शहादत से वैभव काले ने मानवता की सेवा के प्रति अपने समर्पण की नई गाथा लिख दी जो मानव सभ्यता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित की जाएगी. उनकी शहादत आने वाली हर पीढ़ी को साहस, सेवा तथा समर्पण की प्रेरणा देती रहेगी.
विदेशी भूमि पर भी भारतीय जांबाजों ने अपने अदम्य साहस से इतिहास रचे हैं. वे दूसरे देशों में युद्ध की विभीषिका से पीड़ित लोगों को बचाने और उनकी सेवा करने के उद्देश्य से गए. वैभव काले ने दो साल पहले भारतीय सेना से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण कर लिया.
उसके बाद वह दो निजी कंपनियों में उच्च पद पर भी रहे लेकिन इस बीच इजराइल तथा हमास के बीच युद्ध से पीड़ित महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों तथा दिव्यांगों की मौत ने उन्हें विचलित कर दिया और वे संयुक्त राष्ट्र के सेवा मिशन से जुड़कर युद्ध क्षेत्र में पीड़ितों की सेवा में जुट गए.
वे संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा तथा संरक्षा विभाग से जुड़ गए. युद्ध से तबाह गाजा में वह राहत कार्यों से जुड़े थे. शहीद होने के ठीक पहले वह युद्ध से तबाह राफा शहर में स्थित ‘यूरोपियन हॉस्पिटल’ में घायलों की चिकित्सा सेवा की देखरेख के लिए संयुक्त राष्ट्र के वाहन में जा रहे थे.
युद्ध के दौरान हुए हमले की चपेट में उनका वाहन भी आ गया और वैभव काले शहीद हो गए. युद्ध के दौरान राहत कार्यों में जुटे लोगों की सुरक्षा का दायित्व दोनों युद्धरत पक्षों पर भी होता है लेकिन गाजा में इजराइल तथा हमास दोनों ही युद्ध के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं. इस युद्ध में अब तक 190 सहायता कर्मी मारे जा चुके हैं. ये सब घायलों की सेवा में जुटे हुए थे, पीड़ितों को अनाज, दवा तथा अन्य जीवनोपयोगी सामग्री पहुंचा रहे थे.
काले इस युद्ध में शहीद होने वाले संयुक्त राष्ट्र के पहले अधिकारी तथा पहले विदेशी हैं. उनकी शहादत भारतीय सैनिकों की वीरता की गाथाओं में अविस्मरणीय अध्याय जोड़ गई. इस वक्त दुनिया के दर्जन भर अशांत देशों में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में शामिल लगभग 6 हजार भारतीय जवान युद्धग्रस्त क्षेत्रों में शांति बहाल करने के प्रयास करने के साथ-साथ पीड़ितों की सहायता करने में भी जुटे हैं.
साइप्रस, लेबनान, कांगो, सिएरा लियोन, पश्चिम सहारा, सूडान, लाइबेरिया में तैनात भारतीय सैनिकों के साहस तथा मानवीय कार्यों की चारों ओर प्रशंसा हो रही है. श्रीलंका जब तमिल छापामार संगठन लिट्टे के आतंक से त्रस्त था, तब वहां की सरकार के आग्रह पर भारतीय सेना गई और शांति स्थापना के प्रयास किए. लिट्टे ने इसका बदला तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर लिया था.
राजीव गांधी ने दूसरे देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. 1988 में भी मालदीव में सैनिक विद्रोह का दमन करने के लिए भारतीय सेना गई थी और अपने कौशल से उसने इस छोटे से देश में अमन-चैन बहाल किया था. प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में विदेशी भूमि पर भारतीय सैनिकों की वीरता की गाथाएं आज भी प्रेरणा देती हैं. फ्रांस में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान शहीद भारतीय सैनिकों का स्मारक 2018 में बनाया गया.
द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत के सपूत डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस को चीन में नायक की तरह पूजा जाता है. डॉ. कोटनीस ने युद्ध में घायल चीनी सैनिकों की जान बचाते-बचाते अपने प्राणों को समर्पित कर दिया था. उन्होंने 800 से ज्यादा घायल चीनी सैनिकों की जान बचाई थी.
कर्नल वैभव काले की शहादत मानवता की सेवा के लिए समर्पित होने की भारतीय जवानों की समृद्ध विरासत को गौरवान्वित करती है. आज सारा देश ही नहीं समूचा विश्व उनकी शहादत को सलाम कर रहा है.