हुगली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना करते हुए भारत के महान फिल्मकार सत्यजीत रे द्वारा बनाई गई क्लासिक फिल्म 'हीरक राजार देशे' का जिक्र किया और फिल्म के क्रूर शासक के साथ तृणमूल प्रमुख की तुलना की है।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार अमित शाह ने बंगाल में 20 मई को पांचवें चरण के मतदान से पहले बीते बुधवार को हुगली आयोजिक एक चुनावी बैठक में कहा कि अगर सत्यजीत रे आज की तारीख में जीवित होते तो अपनी क्लासिक फिल्म 'हीराज राजा देशे' का सीक्वल 'हीरक रानी' के नाम से बनाते।
अमित शाह से पहले ममता बनर्जी पर व्यंग्य करने के लिए बंगाल भाजपा के दिग्गज नेता और बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी भी 'हीरक रानी' उपनाम का इस्तेमाल करते थे। अधिकारी ममता बनर्जी को सरकारी पैसों के लूट की 'हीरक रानी' कहते हैं।
भाजपा नेता शाह ने हुगली में चुनाव प्रचार के दौरान कहा, "सत्यजीत रे, जैसा कि हम सभी जानते हैं वो बंगाल के गौरवान्वित पुत्रों में से एक और विश्व स्तर पर प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे। उनकी प्रतिष्ठित फिल्म 'हीरक राजार देशे' ने विश्व स्तर पर धूम मचाई और आज भी इसे प्यार से देखा और याद किया जाता है। अफसोस की बात है कि रे उस समय आसपास नहीं थे जब ममता बनर्जी बंगाल में सत्ता में आईं क्योंकि अगर वो होते तो अपनी फिल्म 'हीरक राजा देश' का सीक्वल 'हीरक रानी' जरूर बनाते।''
बंगाल की मौजूदा स्थिति को लेकर तृणमूल पर हमला करते हुए गृह मंत्री शाह ने कहा, ''ममता बनर्जी के राज में पूरे बंगाल में हिंसा, उत्पीड़न और तुष्टिकरण अपने चरम पर है।''
राज्य में लोगों के 'उत्पीड़न' और राजनीतिक हिंसा की संस्कृति पर विस्तार से बोलते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा, "तृणमूल ने गरीबों, पिछड़ों और आदिवासियों से अधिकार छीन लिया और उन्हें घुसपैठियों और उनके माफिया नेटवर्क को दे दिया। राज्य में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में हमारे 53 समर्थक मारे गए थे।"
शाह भाजपा के हुगली उम्मीदवार लॉकेट चटर्जी के लिए प्रचार कर रहे थे, जो लोकसभा में अपना दूसरा कार्यकाल सुरक्षित करने के लिए तृणमूल की रचना बनर्जी से लड़ रही हैं।
मालूम हो कि सत्यजीत रे की फिल्म 'हीरक राजार देशे' साल 1969 में आई थी, जिसमें मशहूर अभिनेता उत्पल दत्त ने अत्याचारी शासक 'हीरक राजा' की भूमिका निभाई थी और सौमित्र चटर्जी ने 'उदयन पंडित' नामक एक शिक्षक की भूमिका निभाई थी, जो राजा को चुनौती देते थे और दमनकारी शासन के खिलाफ किसानों को भड़काते थे।