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ब्लॉग: ब्लैकहोल के रहस्य खुलने की बंधी उम्मीद

By अभिषेक कुमार सिंह | Published: January 03, 2024 1:05 PM

नए साल के पहले दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने जो कुछ किया, उससे वे कुछ पुराने सवाल उठ सकते हैं कि आखिर ऐसे प्रयोगों से यह संगठन क्या हासिल करना चाहता है।

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ठळक मुद्देनए साल के पहले दिन इसरो ने जो किया, वो नासा छोड़कर शायद ही किसी स्पेस एजेंसी के एजेंडे में होइसरो ने 1 जनवरी 2024 को श्रीहरिकोटा से रॉकेट पीएसएलवी सी-58 को अंतरिक्ष में भेजा जिसका एक बड़ा उद्देश्य ब्लैक होल और न्यूट्रॉन तारों का अध्ययन करना है

नए साल के पहले दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने जो कुछ किया, उससे वे कुछ पुराने सवाल उठ सकते हैं कि आखिर ऐसे प्रयोगों से यह संगठन क्या हासिल करना चाहता है जो नासा को छोड़कर शायद ही किसी अन्य स्पेस एजेंसी के एजेंडे में हों।

असल में 1 जनवरी 2024 को इसरो ने आंध्र प्रदेश स्थित हरिकोटा से रॉकेट पीएसएलवी सी-58 से 10 अन्य उपग्रहों सहित एक्सपोसैट नामक एक सैटेलाइट प्रक्षेपित किया है जिसका एक बड़ा उद्देश्य ब्लैक होल और एक्स-रे उत्सर्जित करने वाले करीब 50 क्वॉसर और न्यूट्रॉन तारों का अध्ययन करना है।

एक्सपोसैट एक किस्म का स्पेस टेलिस्कोप (वेधशाला) है जो इस किस्म का दुनिया का सिर्फ दूसरा टेलिस्कोप है। इसे अंतरिक्ष में पृथ्वी की निचली कक्षा में रहकर अगले पांच साल तक गूढ़ खगोल गुत्थियों को सुलझाने में वैज्ञानिकों की मदद करनी है। इनमें भी सबसे अहम पहेली ब्लैक होल्स को लेकर है।

एक्सपोसैट ब्लैक होल, क्वॉसर और न्यूट्रॉन तारों के बारे में नई जानकारी कैसे हासिल करेगा और वे क्या रहस्य हैं, जिनको बूझने की जरूरत है? उल्लेखनीय है कि इसरो से पहले एक्स-रे उगलने वाले तारों व ब्लैकहोल की गूढ़ संरचनाओं को समझने की कोशिश में 2021 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा भी इटली की अंतरिक्ष एजेंसी के साथ मिल कर आईएक्सपीई नाम का सैटेलाइट (टेलिस्कोप) अंतरिक्ष में भेज चुकी है।

अब इसरो का एक्स-रे पोलारिमीटर उपग्रह यानी ‘एक्सपोसैट’ भी ब्रह्मांड के करीब 50 चमकदार स्रोतों की थाह लेगा- इनमें मुख्यतः क्वॉसर, न्यूट्रॉन तारे और ब्लैकहोल शामिल हैं। ‘एक्सपोसैट’ में ऐसे दो उपकरण लगे हैं जो ऐसे एक्स-रे स्रोतों का अध्ययन करेंगे, जिनसे ब्रह्मांड के जन्म से लेकर तारों के बुझने या उनके खत्म होने की प्रक्रिया का कुछ खुलासा हो सकेगा।

इनमें पहला उपकरण है पोलारिमीटर इंस्ट्रूमेंट इन एक्स-रे यानी पॉलिक्स। दूसरा उपकरण यूआर राव उपग्रह केंद्र, बेंगलुरु द्वारा बनाया गया एक्सरे स्पेक्ट्रोस्कोपी एंड टाइमिंग यानी एक्सपेक्ट है। ये दोनों उपकरण मिलकर ब्लैक होल के अलावा सक्रिय आकाशगंगाओं के नाभिक, न्यूट्रॉन तारों और गैर-तापीय सुपरनोवा अवशेषों की थाह लेंगे।

एक सामान्य स्पेस टेलिस्कोप से कॉस्मिक एक्स-रे पकड़ने वाली इस वेधशाला (टेलिस्कोप) की खूबी यह है कि जहां दूसरे टेलिस्कोप किसी खगोलीय पिंड की बाहरी बनावट का खाका खींच पाते हैं, वहीं एक्स-रे टेलिस्कोप उन पिंडों की भीतरी संरचना यानी अंदरूनी पदार्थ क्या है और पिंड का असल व्यवहार क्या है- ये जानकारियां ले पाते हैं।

ध्यान रहे कि एक्स-रे उत्सर्जित करने वाले क्वॉसर या न्यूट्रॉन तारे अत्यधिक तीव्रता वाले चुंबकीय क्षेत्र होते हैं क्योंकि उनकी अंदरूनी संरचनाओं में भीषण टकराव, बड़े विस्फोट और तेज घूर्णन वाली स्थितियां होती हैं। इसी तरह ब्लैकहोल सभी तरह की किरणों को अवशोषित कर लेते हैं। इसलिए उन्हें भी एक्सपोसैट पकड़ने में कारगर साबित हो सकता है।

टॅग्स :इसरोनासाभारतब्लैक होल
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