उत्तर प्रदेश के उरई में रहने वाले मोहम्मद जमाल उर्फ छोटू मिस्त्री 1994 से लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम सामाजिक कार्य की भावना से करते आ रहे हैं। 45 वर्षीय छोटू मिस्त्री मुस्लिम समुदाय से आते हैं लेकिन लावारिश लाशों को आखिरी हक देते वक्त यह आड़े नहीं आता है। लावारिश लाश हिंदू की हो या मुसलमान की, छोटू मिस्त्री परोकार का काम बड़ी शिद्दत से करते हैं। यह काम इन्होंने अकेले शुरू किया था, अब एक पूरी टीम है। अब तक 500 से ज्यादा लावारिश लाशों का क्रियाकर्म छोटू मिस्त्री कर चुके हैं। इस काम के लिए कई संस्थाएं इन्हें सम्मानित कर चुकी हैं लेकिन वो लोकप्रियता के पैमाने से अगर नापा जाए तो छोटू मिस्त्री की शख्सियत जंगल के उस फूल की तरह है जो अपनी खुशबू तो चारों बिखेरता है लेकिन दिखाई नहीं देता है। ऐसे फूल को वनकुसुम कहते हैं। हमारी स्पेशल सीरीज वनकुसुम का एपिसोड 1 'लाशों के मसीहा' के लिए ही समर्पित है जो इसे देखने वाले के भीतर निश्चित तौर पर प्रेरणादायक ऊर्जा का संचार करेगा।