Same Sex Marriages: उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला देते हुए समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने संबंधी 21 याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है।
सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में उनका, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा का अलग-अलग फैसला है। न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी इस पीठ में शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के साथ मतभेद नहीं किया जाए।
फैसले से जुड़ा घटनाक्रम निम्नलिखित है:
छह सितंबर, 2018: संविधान पीठ ने सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को अपराध बनाने वाले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के हिस्से को अपराध की श्रेणी से हटाया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
25 नवंबर, 2022: दो समलैंगिक जोड़ों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया। न्यायालय ने केंद्र को नोटिस भेजा।
छह जनवरी, 2023: न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने वाली विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित सभी याचिकाएं शीर्ष अदालत को भेजे जाने का निर्देश दिया। इस संबंध में 21 याचिकाएं दायर की गई हैं।
12 मार्च: केंद्र ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का उच्चतम न्यायालाय में विरोध किया।
13 मार्च: न्यायालय ने यह मामला संविधान पीठ के पास भेजा।
15 अप्रैल: न्यायालय ने पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन अधिसूचित किया।
18 अप्रैल: न्यायालय ने दलीलें सुननी शुरू कीं।
11 मई: न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
17 अक्टूबर: न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया।