उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट दो साल पहले तक राजनीतिक हलकों में एक ठण्डी सीट मानी जाती थी। वजह साफ थी कि इस सीट पर करीब तीन दशकों से गोरक्षापीठ के महंतों (अवैद्यनाथ और आदित्यनाथ) का कब्जा था।
लेकिन जब 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दो-तिहाई बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाई और गोरखपुर के बीजेपी सांसद याेगी आदित्यनाथ को सूबे का मुख्यमंत्री चुना गया तो इस सीट पर उपचुनाव कराना लाजिमी हो गया।
उस वक़्त तक किसी को नहीं पता था कि गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए 2018 में हुए उपचुनाव में वो होने वाला है, जो पिछले कई दशकों से लगभग असम्भव लगने लगा था।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार के होने के बावजूद बीजेपी को बसपा से समर्थन प्राप्त सपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े निषाद पार्टी के नेता प्रवीण कुमार निषाद के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी की हार के साथ ही सभी की निगाहें लोकसभा चुनाव 2019 की तरफ लग गईं। बीजेपी गोरखपुर सीट के लिए अपना उम्मीदवार घोषित करती इससे पहले ही समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने राज्य में महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। इन तीनों दलों ने चटपट सीटों का बँटवारा भी कर लिया
महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर सपा ने राम भुआल निषाद को गोरखपुर सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया तो सभी की निगाहें बीजेपी पर टिकी थीं।
गोरखपुर में रवि किशन की चुनावी एंट्री के मायने
देश की सबसे बड़ी पार्टी ने आखिरकार 15 अप्रैल को भोजपुरी अभिनेता और बीजेपी नेता रवि किशन को गोरखपुर सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
गोरखपुर संसदीय सीट से जुड़ा एक रोचक घटनाक्रम यह भी रहा कि साल 2018 के उपचुनाव में विजयी हुए प्रवीण कुमार निषाद ने भी सपा से दामन छुड़ाकर बीजेपी का पल्ला पकड़ लिया। बीजेपी ने प्रवीण कुमार को गोरखपुर से सटे संत कबीर नगर लोकसभा सीट से टिकट भी दे दिया है।
लेकिन रवि किशन को टिकट देने के साथ ही राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी होने लगी है कि क्या गोरखपुर सीट पर एक बार फिर पेंच फँस गया है?
क्या 1991 से लेकर 2014 तक लगातार सात बार गोरखपुर से चुनाव जीतने वाली बीजेपी 2019 में यहाँ से आसानी से चुनाव जीत पाएगी?
गोरखपुर से बीजेपी की जीत में एक बड़ा रोड़ा यूपी की सियासत में ठाकुर बनाम ब्राह्मण के वर्चस्व के संघर्ष को माना जा रहा है।
यूपी बीजेपी का ब्राह्मण-ठाकुर समीकरण
योगी आदित्यनाथ जब यूपी के सीएम बने तो विपक्षी दलों ने उनके असली नाम अजय सिंह बिष्ट और उनकी जाति 'ठाकुर' को खूब उछाला।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बीजेपी के अंदर भी आदित्यनाथ के सत्तारोहण को ब्राह्मणों पर ठाकुरों के हावी होने के तौर पर देखा गया।
जब महेंद्र नाथ पाण्डेय को नरेंद्र मोदी कैबिनेट से हटाकर यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया तो जानकारों ने इसे उत्तर प्रदेश में बीजेपी द्वारा ठाकुर और ब्राह्मण के बीच संतुलन बनाने की कवायद के तौर पर देखा।
गोरखपुर के बीजेपी नेता शिव प्रताप शुक्ला को राज्यसभा सांसद बनाने और मोदी कैबिनेट में जगह मिलने को भी यूपी के नाराज ब्राह्मणों को मनाने की कोशिश के रूप में देखा गया।
जब आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर सीट के उपचुनाव में बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ल को प्रत्याशी बनाया तो कई रिपोर्टों में दावा किया गया कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस सीट पर योगी आदित्यनाथ की पसंद को दरकिनार कर के शुक्ल को टिकट दिया था।
कुछ राजनीतिक जानकारों ने माना था कि सीएम योगी का 'असहयोग' भी उपेंद्र शुक्ल के गोरखपुर उपचुनाव में हार का कारण बना था। इसे महज संयोग ही माना जा सकता है कि उपेंद्र शुक्ल भी ब्राह्मण हैं।
और अब जब 2019 के लोकसभा चुनाव का पर्दा उठा तो गोरखपुर लोकसभा सीट से बीजेपी ने रवि किशन को चुना जिनका पूरा नाम रवि किशन शुक्ल है। जाहिर है, रवि किशन भी ब्राह्मण हैं लेकिन गोरखपुर के नहीं जौनपुर के।
यह भी शायद महज संयोग ही है कि रवि किशन 2014 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी उम्मीदवार कृष्ण प्रताप के हाथों बुरी तरह शिकस्त खा चुके हैं।
कृष्ण प्रताप का पूरा नाम कृष्ण प्रताप सिंह और वह जाति के ठाकुर हैं। रवि किशन पिछले आम चुनाव में जौनपुर सीट पर छठवें स्थान पर रहे थे।
गोरखपुर लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास
गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए अब तक 16 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं और 17 से ज्यादा उम्मीदवार यहाँ से सांसद चुने जा चुके हैं। चौंकिए मत 1952 और 1957 के चुनाव में तब के नियमानुसार यहाँ से एक से अधिक सांसद चुने गए थे लेकिन यह कहानी फिर कभी।
गोरखपुर से चुने गए कुल डेढ़ दर्जन सांसदों में कम से कम 15 सांसद ठाकुर रहे हैं। इस सीट से 1952, 1957 और 1962 का चुनाव जीतने वाले सिंहासन सिंह इलाके के प्रभावी कांग्रेस नेता था।
1967 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर लोकसभा सीट से गोरखनाथ मंदिर का कनेक्शन जुड़ा और गोरक्षापीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने यहाँ से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता। 1970 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजयनाथ के धार्मिक उत्तराधिकारी और गोरक्षापीठ के नए प्रमुख महंत अवैद्यनाथ ने इस सीट से चुनाव जीता। अवैद्यनाथ भी ठाकुर थे।
1971 के लोकसभा चुनाव में अवैद्यनाथ को कांग्रेस के नरसिंह नारायण पाण्डेय के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 1977 और 1980 के आम चुनाव में गोरखपुर से काशी हिन्दू विश्विद्यालय (बीएचयू) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष हरिकेश बहादुर ने चुनाव जीता। हरिकेश बहादुर भी ठाकुर थे।
1984 के आम चुनाव में कांग्रेस के मदन पाण्डेय ने यह सीट पार्टी की झोली में वापस डाली लेकिन 1989 के चुनाव में हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे अवैद्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट पर दोबारा कब्जा कर लिया। और उसके बाद से 2018 के उपचुनाव तक यह सीट गोरक्षापीठ के महंतों के पास रही।
1989, 1991 और 1996 के लोकसभा चुनाव में अवैद्यनाथ ने लगातार तीन बार इस सीट से जीत हासिल की। 1998 में अवैद्यनाथ के धार्मिक उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से चुनाव लड़ा और जीते।
योगी आदित्यनाथ ने 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में लगातार पाँच बार इस सीट से जीत हासिल की।
गोरखपुर लोकसभा के लिए हुए कुल 16 चुनावों में 10 बार गोरखनाथ मंदिर के महंत यहाँ से चुनकर निम्न सदन में पहुंचे। इससे साफ है कि इस सीट पर मंदिर और ठाकुर दोनों का कनेक्शन काफी असर रखता है।
बीजेपी ने यह कनेक्शन 2018 के उपचुनाव में तोड़ा तो उसे करारा झटका लगा लेकिन पार्टी ने 2019 में भी इस कनेक्शन को नजरअंदाज किया है।
गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए 19 मई को मतदान होना है।
गोरखपुर सीट का जातीय समीकरण
गोरखपुर सीट से ठाकुरों की जीत का कारण यहाँ उनका जातिगत वर्चस्व नहीं है। गोरखनाथ मंदिर के अनुयायियों में पिछड़ा, अति-पिछड़ा और दलित समुदाय की अच्छी खासी संख्या है।
मुंबई मिरर की एक रिपोर्ट के अनुसार गोरखपुर में अति पिछड़ा वर्ग में आने वाले निषाद, मल्लाह और कहार इत्यादि करीब 20 प्रतिशत हैं। वहीं गोरखपुर में करीब 13 प्रतिशत मुस्लिम, 12 प्रतिशत दलित और सात प्रतिशत यादव हैं। गोरखपुर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इत्यादि जातियों कुल जनसंख्या का करीब 35-40 प्रतिशत है।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार गोरखपुर के करीब 19.50 लाख वोटरों में करीब साढ़े चार लाख निषाद और मल्लाह हैं। गोरखपुर में करीब साढ़े तीन लाख मुसलमान वोटर हैं। वहीं दलित मतदाता भी करीब साढ़े तीन लाख हैं जिनमें से करीब डेढ़ लाख पासवान हैं।
गोरखपुर में करीब दो लाख ठाकुर वोटर हैं और करीब दो लाख कायस्थ मतदाता हैं। यादव मतदाता करीब दो लाख हैं और करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण यहाँ से वोटर हैं। वैश्य और भूमिहार वोटरों की संख्या करीब एक लाख है।
जातिगत आंकड़ों के मद्देनजर यह साफ है कि न तो ठाकुर और न ही ब्राह्मण अकेले दम पर गोरखपुर सीट जीतने का दम रखते हैं। ऐसे में 23 मई को चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि इस सीट के समीकरण को समझने में बीजेपी आगे रही या सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन?