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ब्लॉग: मराठा आरक्षण आंदोलन में आया नया मोड़, 3 युवकों ने दी जान

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 31, 2023 10:14 AM

आरक्षण की मांग करते हुए इस महीने आधा दर्जन से ज्यादा लोग आत्महत्या कर चुके हैं। जरांगे की बिगड़ती हुई हालत और आत्महत्याओं के सिलसिले से उग्र होते आंदोलन ने महाराष्ट्र सरकार की चिंता निश्चित रूप से बढ़ा दी है।

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ठळक मुद्देमराठा आरक्षण आंदोलन की मांग करते हुए इस महीने आधा दर्जन से ज्यादा लोग आत्महत्या कर चुके हैं6 दिन पूर्व उन्होंने आमरण अनशन फिर शुरू कर दियाइसके बाद से आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है

मराठा समाज को आरक्षण देने की मांग को लेकर महाराष्ट्र में चल रहे आंदोलन में युवकों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं ने दु:खद तथा दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ ला दिया है। हाल में मराठा समाज के आंदोलन के नेता के रूप में मनोज जरांगे उभरे हैं। 6 दिन पूर्व उन्होंने आमरण अनशन फिर शुरू कर दिया। इसके बाद से आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है। 

आरक्षण की मांग करते हुए इस महीने आधा दर्जन से ज्यादा लोग आत्महत्या कर चुके हैं। जरांगे की बिगड़ती हुई हालत और आत्महत्याओं के सिलसिले से उग्र होते आंदोलन ने महाराष्ट्र सरकार की चिंता निश्चित रूप से बढ़ा दी है लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे भी नहीं बैठी है। वह समस्या का ऐसा समाधान खोजने में जुटी हुई है जो संवैधानिक कसौटी पर खरा उतर सके और न्यायिक लड़ाई में वह मात न खा जाए। 

मराठा आरक्षण की मांग वर्षों पुरानी है और समय-समय पर रास्ता निकालने के प्रयास भी हुए हैं, लेकिन कानूनी रूप से वे बेहद कमजोर साबित हुए और राज्य सरकार कानूनी लड़ाई हार गई। मराठा आरक्षण शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए पहचाना जाता है। कुछ वर्ष पूर्व भी मराठा समाज ने आरक्षण के लिए आंदोलन किया था, जो अपने अनुशासन के लिए देशभर में मिसाल बनकर उभरा था।

उस आंदोलन को एक दशक भी नहीं हुआ है। उस दौरान मराठा समाज ने महाराष्ट्र के छोटे-बड़े शहरों मे विशाल रैलियां निकाली थीं। उनमें हजारों-लाखों की संख्या में मराठा उमड़े थे लेकिन जितने भी मोर्चे निकले, उनमें न कोई नारे लगते थे और न ही किसी प्रकार का अन्य कोई अप्रिय दृश्य उपस्थित होता था। 

इन विशाल मोर्चों तथा रैलियों के दौरान मराठा समुदाय ने यह सुनिश्चित किया कि उसके आंदोलन से न तो यातायात बाधित हो, न सार्वजनिक या निजी संपत्ति को कोई हानि पहुंचे और न ही कानून व्यवस्था की कोई समस्या पैदा हो और न नागरिकों को अन्य किसी तरह की असुविधा हो। आंदोलन का ताजा स्वरूप उग्र रूप लेता जा रहा है और युवकों की आत्महत्याओं से समस्या का कोई समाधान नहीं होगा बल्कि आंदोलन का स्वरूप अराजक होने का खतरा पैदा हो जाएगा। 

आत्महत्या की तीन घटनाएं रविवार को हुईं। परभणी जिले की जिंतूर तहसील में बोर्डी गांव के बापूराव उत्तम मुले, लातूर जिले में औसा तहसील में गोंद्री गांव के शरद वसंत भोसले तथा परली तहसील के गोवर्धन (हि।) गांव के गंगाभीषण रामराव मोरे पाटिल और जालना जिले की अंबड़ तहसील के कुक्कड़ गांव के अजय रमेश गायकवाड़ ने मराठा आरक्षण के प्रति सरकार पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए अपनी जान दे दी। किसी भी लक्ष्य को जान देकर हासिल नहीं किया जा सकता। उसके लिए न्यायोचित संघर्ष कर सरकार को झुकाने का जज्बा दिखाना पड़ता है। 

मराठा आरक्षण के लिए जान देने वाले तमाम युवक अपने परिवार, समाज तथा मराठा समुदाय की धरोहर थे। वे हताश होकर अपनी जान देने के बजाय मराठा आंदोलन को धारदार बनाने में अपनी ऊर्जा तथा क्षमता से योगदान दे सकते थे। संघर्ष करने के बजाय जान दे देने से आंदोलन की शक्ति कमजोर पड़ सकती है और उसके अपने लक्ष्य से भटकने का खतरा पैदा हो सकता है। इससे समाज में आक्रोश भी भड़क सकता है और यह आक्रोश हिंसा को जन्म देने का खतरा बढ़ा देता है। 

आंदोलन अगर हिंसक हुआ तो अनियंत्रित हो जाएगा और उसका पूरा मकसद ही खत्म हो जाने की आशंका बढ़ जाएगी। आरक्षण बेहद संवेदनशील मुद्दा है और वह आनन-फानन में अध्यादेश जारी कर या जल्दबाजी में कानून बनाकर किसी समुदाय को नहीं दिया जा सकता। संविधान में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की गई है। कुछ राज्यों ने कुछ विशिष्ट समुदायों को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन किया था मगर कोर्ट में उन्हें हारना पड़ा और संबंधित समुदाय को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका। 

महाराष्ट्र में भी उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसके कदम को असंवैधानिक करार दिया। उद्धव सरकार के पहले 2014 में बनी देवेंद्र फडणवीस सरकार भी इस जटिल समस्या का ठोस संवैधानिक रास्ता तलाश करने का प्रयास करती रही। उसे भी सफलता नहीं मिली।

मराठा समाज की आरक्षण की मांग जायज है। सरकार मराठा समुदाय को उनकी कुनबी जाति के रूप में आरक्षण के दायरे में लाने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रही है। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है। कुनबी समाज आरक्षण में अपनी हिस्सेदारी को मराठा समाज के साथ किसी भी सूरत में बांटना नहीं चाहता। महाराष्ट्र सरकार अगर ऐसा करे भी तो कुनबी समाज सड़कों पर उतर जाएगा। 

कुनबी समुदाय भी राज्य की राजनीति में व्यापक असर रखता है। मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने का रास्ता खोजने के लिए पूर्व न्यायाधीश संदीप शिंदे की अध्यक्षता में एक समिति काम कर रही है जो मंगलवार को अपनी रिपोर्ट सरकार को दे सकती है। इसके अलावा सोमवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में उपचारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका दायर करने के प्रस्ताव पर सरकार को सलाह देने के लिए तीन विशेषज्ञों की एक समिति बनाने की घोषणा भी की। 

साफ है कि राज्य सरकार मराठा आरक्षण पर सकारात्मक रुख अपना रही है। यह जटिल संवैधानिक मसला है। उसे हल करने में समय लगेगा। राज्य सरकार को थोड़ा वक्त देना पड़ेगा। आत्महत्याओं से समस्या का समाधान नहीं होगा बल्कि सरकार का ध्यान भटक सकता है। मराठा युवक आंदोलन को ज्यादा असरदार बनाने के लिए अपनी ऊर्जा का रचनात्मक उपयोग करें। इससे उनके समुदाय को शीघ्र एवं स्थायी न्याय मिल सकेगा।

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