शरद जोशी अपने समय के अनूठे व्यंग्य रचनाकार थे। शरद जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 को हुआ। अपने वक्त की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को उन्होंने अत्यंत पैनी निगाह से देखा। अपनी पैनी कलम से बड़ी साफगोई के साथ उन्हें सटीक शब्दों में व्यक्त किया। आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएं और संवाद भी लिखे। हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है। वह देश के पहले व्यंग्यकार थे, जिन्होंने पहली दफा मुंबई में चकल्लस के मंच पर 1968 में गद्य पढ़ा और किसी कवि से अधिक लोकप्रिय हुए। जहाँ एक तरफ परसाई के व्यंग्य में कड़वाहट अधिक है। वहीं शरद जोशी के व्यंग्य में हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन दिखाई देता है, जो उन्हें जनप्रिय रचनाकार बनाता है। शरद जोशी आजकल के व्यंग्यकारों की तरह बाजार को देखकर नहीं लिखते थे।Read More
कृष्णप्पा का विश्वास है कि मंत्रियों को कुत्ते की नींद सोना चाहिए. पर यदि यही आदर्श कुत्ता-तत्व कभी माइक के सामने जाग्रत् हो गया तो? कभी अपनी जाति या पार्टी के बंधुओं को देख जाग्रत् हो गया तो? और यदि नेता हिज मास्टर्स वॉइस की तरह लवलीन आज्ञाकारी हो ज ...
स्त्रियां स्वाधीन हुईं और अपना सौंदर्य खुद बनाने लगीं. पहले पुरुष की गुलाम थीं तो जैसा वह पहनाता था, वैसा बंधन के कारण पहनना पड़ता था. जब आजाद हुईं तो कपड़े की गुलाम हो गईं, लिपस्टिक की गुलाम हो गईं. पहले जिनका सौंदर्य दूसरे की गुलामी करता था, अब वे ...
यों कुत्तों का सम्मान मनुष्य से ज्यादा भी कई जगह किया गया है, और इनसे भय भी पुलिस से ज्यादा ही लगता है. सभ्यता और संस्कृति की स्लेज गाड़ी खींचकर लाने में कुत्तों के बड़े पैर रहे हैं. ...
गांधीवाद दिल बदलना सिखाता है, चीजें छीनना नहीं. शांति के युग में कर शतरंज पर लगे तो ठीक भी है, पर ताश तो प्रजातंत्र का खेल है. जिस किसी को प्रजातंत्र समझना हो, उसे ताश समझना चाहिए. ...
पाक हिंद से अकारण नाराज है. नहर का पानी अल्लाह का दिया है, राज्य की सीमा आदमी की बनाई है, लड़ाई का भय व्यर्थ का डर है. सब झगड़े सुलझ सकते हैं पर प्रश्न यह है कि वह कीड़ा जो मन में पैठा हुआ है, वह किस ऑपरेशन से निकलेगा? ...
भाषा के अधिकांश रूप बिगड़े हुए करार दिए जा सकते हैं क्योंकि जहां नागरी पर ग्रामीण का प्रभाव पड़ा कि भाषा बिगड़ी. और ग्रामीण संपर्क सदैव नहीं होता रहे तो भाषा कभी प्राणवान हो नहीं सकती. ...
जब मैंने एक दुकान से ब्लेड खरीदी तो दुकानदार ने मुझे बताया कि इन दो-तीन दिनों से ब्लेडें नहीं बिक रही हैं. कारण है- गहरी ठंड. इतनी गहरी ठंड है कि लोग अपने चेहरे पर तीखी ब्लेड नहीं सहन कर सकते, इसका मुझे विश्वास नहीं था. पर जब पढ़ा कि रानीखेत और मसूर ...
इधर पंचवर्षीय योजना सप्ताह भी समाप्त हो गया. सब जगह ढोल बजे, जागृति हुई, मुर्गे की बांग पर प्रभातफेरी निकाली गई. दोपहर को कुछ खोदा-बनाया, भाषण मारे, रात को सिनेमा देखा, सुबह खबर लिखी और डाक में डाल दी, कार्यक्रम समाप्त. वास्तव में पांच वर्ष बराबर रा ...