शरद जोशी का ब्लॉगः ठंड के दिनों की ठंडी तकलीफें

By शरद जोशी | Published: September 1, 2019 02:49 PM2019-09-01T14:49:42+5:302019-09-01T14:49:42+5:30

जब मैंने एक दुकान से ब्लेड खरीदी तो दुकानदार ने मुझे बताया कि इन दो-तीन दिनों से ब्लेडें नहीं बिक रही हैं. कारण है- गहरी ठंड. इतनी गहरी ठंड है कि लोग अपने चेहरे पर तीखी ब्लेड नहीं सहन कर सकते, इसका मुझे  विश्वास नहीं था. पर जब पढ़ा कि रानीखेत और मसूरी में बरफ गिरी है और ठंडी-ठंडी हवाएं मध्यभारत को अपने में समेट रही हैं तो गरम कपड़े पहनने पड़े.

story of winter: thand ke dino ki thandi taklifen | शरद जोशी का ब्लॉगः ठंड के दिनों की ठंडी तकलीफें

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उस दिन सुबह-सुबह जब मैं शहर से गुजर रहा था, तब मुझे आश्चर्य हुआ कि राह में चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति की दाढ़ी साधारण रूप से बढ़ी हुई थी. मैं समझ नहीं पाया कि आखिर एकाएक चेहरों की चिकनाहट कहां चली गई? अभी-अभी कोई ‘दाढ़ी बढ़ाने का आंदोलन’ भी प्रारंभ नहीं हुआ!

जब मैंने एक दुकान से ब्लेड खरीदी तो दुकानदार ने मुझे बताया कि इन दो-तीन दिनों से ब्लेडें नहीं बिक रही हैं. कारण है- गहरी ठंड. इतनी गहरी ठंड है कि लोग अपने चेहरे पर तीखी ब्लेड नहीं सहन कर सकते, इसका मुझे  विश्वास नहीं था. पर जब पढ़ा कि रानीखेत और मसूरी में बरफ गिरी है और ठंडी-ठंडी हवाएं मध्यभारत को अपने में समेट रही हैं तो गरम कपड़े पहनने पड़े.

उस दिन मैं मंदिर नहीं गया, एक होटल में बैठकर वापस आ गया. दुर्भाग्य से मध्यभारत के बच्चों को गिरती बरफ का आनंद नहीं नजर आता वरना मिस्टर लो की तरह नथुनों पर तीन इंच बरफ से ढका कोई घोड़ा हमें भी सड़क से भागता नजर आता. और सांस छोड़ते ही मूंछों पर बर्फ जम जाती. सुबह-शाम डॉक्टर किसी हालत में अस्पताल के राउंड नहीं लगा सकते. ठंड और कुहरा इतना बढ़ जाता कि अंडर ड्रेनेज के काम अधूरे रह जाते और राहचलतों को खजूरीबाजार के गड्ढे नजर नहीं आते. 

जैसे 1292 में राइन नदी जम गई थी और अनेक को कष्ट ङोलना पड़ा था, वैसे चम्बल जम जाती और बर्फ के बांध बंध जाते. जैसे 1067 में जर्मनी में सड़क पर गुजरने वाले बर्फ से जम गए थे, वैसे जेलरोड पर होता. जैसे 1691 में गहरी ठंड के कारण वियेना में भूखे भेड़िए शहर में घुस आए थे, वैसा इंदौर के साथ होता.

तब का ब्लेड खरीदने जाना तो दूर, वह कल्पना तक नहीं कर पाता. और फिर ठंडे पानी से नहाना.? मैं समझता हूं, इस गहरी ठंड में तो अभिनेत्रियां भी नहीं नहाती होंगी, चाहे वे विज्ञापनों में सदैव दम भरती हों कि वे अपने प्रिय साबुन से रोज नहाती हैं.

सोचिए, रानीखेत और कुमायूं में बर्फ गिर रही है और मध्यभारत में नल बंद हो रहे हैं. मुझे ‘ले हंट’ का तर्क बहुत जंचता है कि मनुष्य विचारशील प्राणी है और जब बिस्तर में गरम ओढ़कर विचार कर सकता है तो फिर उठकर काम करना कहां की इंसानियत है? विजयलक्ष्मी पंडित जैसी हिम्मत हममें कहां कि मास्को की बर्फीली सुबह में भी वे छह बजे ठंडे पानी से नहा लेती थीं. नहीं तो ‘परिक्रमा’ लिखते समय ये हाथ नहीं ठिठुरते और दो चाय के प्याले नहीं खत्म होते.

Web Title: story of winter: thand ke dino ki thandi taklifen

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