शरद जोशी का ब्लॉगः आदर्श और पशुत्व के बीच संबंध

By शरद जोशी | Published: October 26, 2019 07:42 AM2019-10-26T07:42:52+5:302019-10-26T07:42:52+5:30

कृष्णप्पा का विश्वास है कि मंत्रियों को कुत्ते की नींद सोना चाहिए. पर यदि यही आदर्श कुत्ता-तत्व कभी माइक के सामने जाग्रत् हो गया तो? कभी अपनी जाति या पार्टी के बंधुओं को देख जाग्रत् हो गया तो? और यदि नेता हिज मास्टर्स वॉइस की तरह लवलीन आज्ञाकारी हो जाए तो?

Relationship between Ideality and Animalism, Union Deputy Minister Krishnappa | शरद जोशी का ब्लॉगः आदर्श और पशुत्व के बीच संबंध

शरद जोशी का ब्लॉगः आदर्श और पशुत्व के बीच संबंध

कौन जाने केंद्रीय उपमंत्री कृष्णप्पा की बात आपको जंची हो या नहीं, पर मुझे तो यह पसंद आया है कि आदर्श मंत्री में चार पशुओं के गुण होने चाहिए. सब ऊंट-सा खाएं, भैंस-सी चर्बी रखें, कुत्ते-सा सोएं, और गधे-सा काम करें. गांधीजी ने अपने आदर्शो में तीन बंदरों को ही स्थान दिया था. दत्तात्रेय तो  सभी को गुरु मानते थे मगर चार पशुओं का यह नया थीसिस यदि एक प्रारंभिक सीढ़ी के रूप में लें तो हमें मंत्रियों को आदर्शवान बनाने के लिए चिड़ियाघर में रखना पड़ेगा.

यों सभी पशुओं में कुछ-न-कुछ आदर्श खोजा जा सकता है. जैसे खरगोश को लीजिए, जिसने सिंह को छाया दिखाकर अपनी जाति को विनाश से बचाया था, पर वही खरगोश कछुए से रेस करते समय रास्ते में सो गया और बदनाम हो गया. अब बताओ, यदि यही आदर्श बन जाए तो योग्यता यानी दिमाग के बावजूद खरगोश-सा आलसी बनना कैसे किसी मंत्री के लिए अच्छा होगा? और वह कछुआ भी जब लकड़ी पकड़कर उड़ रहा था, तब जरा-सा मुंह खोल देने के कारण मर गया.

यही प्रश्न गड़बड़ के हैं. कृष्णप्पा का विश्वास है कि मंत्रियों को कुत्ते की नींद सोना चाहिए. पर यदि यही आदर्श कुत्ता-तत्व कभी माइक के सामने जाग्रत् हो गया तो? कभी अपनी जाति या पार्टी के बंधुओं को देख जाग्रत हो गया तो? और यदि नेता हिज मास्टर्स वॉइस की तरह लवलीन आज्ञाकारी हो जाए तो?

सोने तक तो ठीक है पर यदि मुंह में रोटी ले पुल पर से जाते समय छाया देख भूंके और अपनी रोटी खो दे तो चाहे वह कैसा भी मंत्री हो- न घर का रहेगा, न घाट का! भैंस की तरह चर्बी होनी चाहिए! मगर आप सोचिए, आखिर अकल बड़ी कि भैंस? और तो और, कृष्णप्पाजी ने यहां तक कह दिया कि उसे गदहे की तरह काम करना चाहिए.

यह योजना का युग है, दिमाग की जरूरत है, गधे की तरह काम करेंगे तो अगले चुनाव में बैल कैसे जीतेंगे? गधे का काम है नम्रतापूर्वक जो पीठ पर है, उसे ढोना. पीठ पर होती है मिनिस्ट्री डिपार्टमेंट-बस, ढोइए पांच साल तक, फिर लाइसेंस रिन्यू करा लीजिए, या अपने किसी बंधु को दे दीजिए तो वह ढोएगा. अत: यह पशुत्व के आदर्शो की बात जंच जाती है पर इसमें खतरे बहुत हैं. आदर्श किन पशुओं से सीखें?
(रचनाकाल - 1950 का दशक)

Web Title: Relationship between Ideality and Animalism, Union Deputy Minister Krishnappa

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