शरद जोशी का ब्लॉग: पाकिस्तान का सतही सौजन्य
By शरद जोशी | Published: September 21, 2019 06:45 AM2019-09-21T06:45:23+5:302019-09-21T06:45:23+5:30
पाक हिंद से अकारण नाराज है. नहर का पानी अल्लाह का दिया है, राज्य की सीमा आदमी की बनाई है, लड़ाई का भय व्यर्थ का डर है. सब झगड़े सुलझ सकते हैं पर प्रश्न यह है कि वह कीड़ा जो मन में पैठा हुआ है, वह किस ऑपरेशन से निकलेगा?
पाकिस्तान के एक बड़े नेता ने प्यार उमड़ने पर फरमा दिया है कि हिंद और पाकिस्तान के झगड़े दोस्तों के झगड़े हैं. दोस्तों के झगड़े यानी जो दोस्ती से निबट सकते हैं और दोस्ती है तो झगड़े स्वाभाविक ही हैं. बात सच है, झगड़े तो दोस्तों में ही होते हैं. अपरिचित आपस में झगड़ने ही क्यों लगे? और कभी साइकिल टकरा जाने या रेल में अधिक भीड़ होने के कारण दो अपरिचित झगड़ भी पड़ें तो जल्दी ही बात आई-गई हो जाती है.
मनोविज्ञान के जानने समझने वाले कहते हैं कि ज्यादा प्रेम लड़ाई करवाता है और कलह का मूल हांसी में उतना ही सत्य है जितनी कि रोग की जड़ खांसी है. किसी को हंसी-मजाक का अधिकार मिलता है तो दूसरे को कुछ-कुछ बंधन या गुलामी अनुभव होती है, उसका व्यक्ति मर जाता है और वह मुक्ति के वास्ते आत्मविद्रोह पर उतरता है और समाज कहता है कि दोस्तों में झगड़े हो गए.
तो क से ख की या श से म की या हिंद से पाक की जो कटाछनी तथा मन-मुटाव है, उसका कारण है- जलन. वह जलन, जो दूसरे की प्रगति व निर्माण को देखकर दिल में स्वयं उगती है. फिर इस बात के भी कई सबूत हैं कि जब किसी दोस्त के मन में दूसरे दोस्त के लिए जलन जागी तो वह सीधा किसी बड़े के पास से सहयोग प्राप्त कर दूसरे को छोटा सिद्ध करेगा और अपने पासे फेंकेगा. क से जलकर ख फिर ग के पास जाता है, श से जलकर म किसी प को अपनी तरफ हिलाता है और हिंद से जलकर पाक अमेरिका का गहरा बन उससे युद्ध की सामग्री प्राप्त करता है और भय दिखाता है.
पाक हिंद से अकारण नाराज है. नहर का पानी अल्लाह का दिया है, राज्य की सीमा आदमी की बनाई है, लड़ाई का भय व्यर्थ का डर है. सब झगड़े सुलझ सकते हैं पर प्रश्न यह है कि वह कीड़ा जो मन में पैठा हुआ है, वह किस ऑपरेशन से निकलेगा?
डाह का अंकुर सदैव प्रगति की होड़ाहोड़ के समय उग आता है और वहीं पर यह अंकुर उगता है जिसे कि अपनी शक्ति, बुद्धि और क्षमता का भावी चित्र धुंधला नजर आता है. वह नहीं चाहता कि उसका साथी पड़ोसी उससे आगे बढ़ा दिखे.
सो हिंद की अपनी राह है. उसकी किस्मत वह खुद बनाता है. उसकी मैत्री से मोहित सब स्वयं हो जाते हैं या होने के लिए तरसते हैं. और दोस्ती का हो या दुश्मनी का, झगड़ा-भाव और क्रियाएं तो समान ही होती हैं, नुकसान भी समान होता है, तब उसे दोस्ती के झगड़े कहकर थोथे पर दे डालता मूर्खता है. दिमाग, दिल और जुबान में फर्क रखना समझदारी का सबसे बड़ा दोष है.