प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में आज कई अहम बातें कही उन्होंने युवा पीढी से एक अपील की. प्रधानमंत्री ने इस दौरान कोरोना की वजह से सार्वजनिक स्थलों पर थूकने जैसी लोगों की तमाम आदतों में भी बदलाव लाने का आह्वान किया. प्रधानमंत्री ने कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुये सार्वजनिक स्थलों पर थूकने की लोगों की आदत में आये बदलाव को सकारात्मक परिवर्तन बताया. उन्होंने कहा, सभी लोग सार्वजनिक स्थानों पर थूकने के नुकसान को भी अब समझ रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि थूकने की यह आदत सफाई और स्वास्थ्य को चुनौती देती थी. पीएम ने कहा कि समाज से यह समस्या समाप्त नहीं हो रही थी अब देर भले ही हो गयी हो लेकिन सभी को थूकने की आदत को रोकना चाहिये, क्योंकि यह संक्रमण को रोकने में मदद करती है. पीएम मोदी ने योग के महत्व पर कहा, ‘‘दुनिया ने योग की तरह ही आयुर्वेद को भी अब सम्मान के भाव से देखना शुरु कर दिया है।’’ उन्होंने अपने ही देश में अपने प्राचीन पारंपरिक ज्ञान की परंपराओं को नकारने की प्रवृत्ति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्य रहा है कि हम अपनी ही शक्तियों को नकार देते है, लेकिन जब विदेशी लोग, ज्ञान की इस शक्ति को वैज्ञानिक प्रमाण के साथ बताते है तो हम उसे स्वीकर कर लेते हैं. मोदी ने सैकड़ों साल की गुलामी को इसकी संभावित वजह बताते हुये युवाओं से आह्वान किया, ‘‘भारत की युवा पीढ़ी को इस चुनौती को स्वीकार करना होगा कि योग की तरह, आयुर्वेद को भी विश्व स्वीकार करे इसके लिये युवाओं को वैज्ञानिक भाषा में दुनिया को अपने आयुर्वेद को समझाना होगा. प्रधानमंत्री ने कोरोना के संक्रमण से बचने के लिये आयुर्वेद में सुझाये गये गरम पानी पीने सहित अन्य उपायों का पालन करने की देशवासियों से भी अपील की. पीएम ने कहा कि उम्मीद है कि आयुष मंत्रालय ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये जो प्रोटोकॉल दिया था उसका आप पालन कर रहे होंगे, इससे आपका लाभ होगा. कोरोना संकट में लोगों की कुछ आदतों में भी बदलाव आने का जिक्र करते हुये मोदी ने कहा, ‘‘कोविड-19 ने हमारी कुछ आदतें भी बदली हैं. इस संकट ने हमारी समझ और चेतना को जागृत किया है. इसमें मास्क पहनना या चेहरे को ढक कर रखना शामिल है. उन्होंने कहा कि मास्क अब सामान्य जनजीवन का हिस्सा बन रहा है. इसका इस्तेमाल करने की आदत हमें पहले नहीं थी. पीएम ने साफ किया कि इसका यह मतलब नहीं है कि जो मास्क लगाते हैं वे बीमार हैं. प्रधानमंत्री ने पुरानी धारणा का जिक्र करते हुये कहा कि एक जमाना था जब कोई फल खरीदता था तो लोग पूछते थे कि परिवार में कोई बीमार तो नहीं है. क्योंकि पहले बीमार होने पर ही फल खाये जाते थे. उन्होंने कहा कि अब यह धारणा बदली है। इसी प्रकार मास्क को लेकर भी सोच बदली है. उन्होंने कहा, ‘‘मास्क सभ्य समाज का प्रतीत बनेगा. वैसे मेरा तो सुझाव गमछा प्रयोग करने का भी है.