नई दिल्ली: बदलती सरकारों के साथ देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका को लेकर भी अक्सर सवाल उठते रहे हैं। साल 2013 में यूपीए के शासन काल में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर तल्ख टिप्पणी करते हुए उसे 'पिंजरे में बंद तोता' करार दिया था।
वहीं, 2014 में सरकार बदलने के बाद अब विपक्षी पार्टियां पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए शासन में लगातार जांच एजेंसी का जमकर दुरुपयोग करने के आरोप लगाती रही हैं। तेजस्वी यादव ने हाल में सीबीआई को बीजेपी की तीन 'जमाई' में से एक बताया था। तेजस्वी ने कहा था कि सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स भाजपा के तीन जमाई हैं।आंकड़े भी गवाही दे रहे हैं कि शासन कोई भी हो, विपक्षी नेता संभवत: सबसे ज्यादा सीबीआई के निशाने पर रहते हैं।
विपक्षी नेताओं पर ज्यादा सक्रिय रहती है सीबीआई!
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 18 साल में कांग्रेस और भाजपा सरकारों के दौरान करीब 200 नेताओं को सीबीआई ने या तो गिरफ्तार किया, छापे मारे या फिर सवाल-जवाब किए। इसमें 80 प्रतिशत विपक्षी पार्टियों से जुड़े नेता रहे। आंकड़े बताते हैं कि साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के शासन में आने के बाद ये ट्रेंड और बढ़ा है।
कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के 10 वर्षों (2004-2014) के शासन के दौरान कम से कम 72 नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए और उनमें से 43 (60 प्रतिशत) विपक्ष से थे। जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के 2014 में शासन में आने के बाद पिछले आठ सालों में जहां विपक्ष तेजी से सिकुड़ता गया, वहीं कम से कम 124 प्रमुख नेताओं को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा है। इनमें से 118 विपक्ष से हैं, जो करीब 95 प्रतिशत है।
पाला बदलते ही केस ठंडे बस्ते में
दिलचस्प ये भी है कि यूपीए शासन की ही तरह जब कोई नेता पाला बदलता है, तो उसके खिलाफ सीबीआई का मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के खिलाफ शारदा चिट फंड मामले में सीबीआई ने छापेमारी की थी। इस कार्रवाई के दौरान वह कांग्रेस में थे। हालांकि उनके भाजपा में आते ही उनके खिलाफ मामला ठंडा हो गया।
ऐसे ही 2021 में नारदा स्टिंग ऑपरेशन में दायर किए गए चार्जशीट में सीबीआई ने पश्चिम बंगाल के नेताओं सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय के नाम नहीं शामिल किए। दोनों पश्चिम बंगाल के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। हालांकि मुकुल रॉय बाद में तृणमूल में वापस आ गए। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी सोमवार को भाजपा में शामिल हो गए थे, जिनके खिलाफ सीबीआई जांच कर चुकी है।
सीबीआई की जांच पर क्यों उठते रहे हैं सवाल, आंकड़े देखिए
- अखबार की रिपोर्ट के अनुसार 2004 से 2014 के बीच जब 2जी स्पेक्ट्रम से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स और कोयला घोटाले जैसे मामले सामने आ रहे थे, तब सीबीआई ने 29 नेताओं को जांच के दायरे में लिया था जो कांग्रेस या उसके गठबंधन वाली पार्टियों से थे। वहीं, एनडीए-2 के शासन में भाजपा से संबंध रखने वाले केवल 6 नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए हैं।
- यूपीए शासन में जिन 43 विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने जांच की, उनमें से सबसे अधिक 12 भाजपा से थे जिनके यहां छापेमारी हुई या गिरफ्तार किया गया। इसमें मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस तक के नाम हैं। यहां तक कि सीबीआई ने 2012 में टूजी स्पेक्ट्रम से जुड़े मामले में प्रमोद महाजन के खिलाफ भी जांच की, जिनकी मृत्यु हो चुकी थी।
- एनडीए-2 की बात करें तो सीबीआई ने जिन 118 विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच की है, उसमें सबसे अधिक 30 तृणमूल कांग्रेस से हैं। इसके अलावा कांग्रेस से 26 नाम हैं। इन नामों में सोनिया गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं।
- एनडीए-2 में टीएमसी और कांग्रेस के बाद जिन पार्टियों के नेताओं के खिलाफ सीबीआई जांच सबसे अधिक हुई, उसमें आरजेडी और बीजेडी है। दोनों पार्टियों के 10-10 नेता सीबीआई के जांच के दायरे में हैं। दोनों ही पार्टियां यानी आरजेडी और बीजेडी क्रमश: बिहार और ओडिशा में सत्ता में हैं।
- इसके अलावा YSRCP से 6, बसपा से पांच, टीडीपी से पांच और आम आदमी पार्टी से 5 नेताओं के खिलाफ भी सीबीआई ने जांच की है। सपा (4), एआईएडीएमके (4), सीपीएम (4), एनसीपी (3), नेशनल कॉन्फ्रेंस (2), डीएमके (2), पीडीपी (1), टीआरएस (1) भी इस लिस्ट में हैं।