लखनऊ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश बागपत संसदीय लोकसभा सीट यदि वीआईपी कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह सीट भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीति कर्मभूमि रही है। इतना ही नहीं इस सीट ने कई कैबिनेट मंत्री तक दिए हैं। ऐसे में इस क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले हरेक दल के नेताओं का सपना इस संसदीय सीट से चुनाव लड़ने का भी रहता है। इस बार भी पश्चिमी यूपी का सियासी गढ़ और जाटलैंड माने जाने वाली इस सीट पर पूरे देश की नजरें हैं। तो इसकी दो वजह हैं। पहली वजह है, 53 साल बाद इस सीट से चौधरी परिवार के किसी सदस्य का चुनाव मैदान में ना होना और दूसरी वजह है, पहली बार इस सीट से तीन प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतरना जो पहली पर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर रालोद के सिंबल पर डा.राजकुमार सांगवान चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी (सपा) ने मनोज चौधरी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने प्रवीण बैसला को चुनाव मैदान में उतारा है। राजकुमार और मनोज जाट बिरादरी से हैं जबकि प्रवीण बैसला गुर्जर समुदाय से आते हैं। जाट, मुस्लिम और दलित बाहुल्य इस सीट पर रालोद, सपा और बसपा का मजबूत वोट बैंक हैं। फिलहाल इस सीट के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए यहां अभी त्रिकोणात्मक चुनावी संघर्ष होता दिख रहा है।
वैसे करीब तीन दशक तक इस सीट पर चौधरी परिवार की चौधराहट रही है, लेकिन वर्ष 2012 में हुए दंगे के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा के चलते यहां की सामाजिक समरसता में जो विष घोला गया है, उसका असर यहां पर भी हुआ है। उसके प्रभाव को कम करने के प्रयास में रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह और जयंत चौधरी दोनों ही इस सीट से चुनाव हारे।