सिद्धू की टिप्पणी से दिलचस्प समाजशास्त्रीय सवाल उठते हैं, जो एक समाज के रूप में हमें आईना दिखाते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि हम पदानुक्रमिक मानसिकता वाले लोग हैं जो सामाजिक व्यवस्था में असमानता को समाज का हिस्सा मानकर चलते हैं.
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प्रधानमंत्नी द्वारा बताई गई ये उपलब्धियां सही दिखती हैं और इन्हें हासिल करने के लिए उन्हें बधाई. लेकिन अर्थयवस्था की मूल स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं दिखती है.
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हथियारों और सेना की ताकत को बढ़ाने में सभी बड़े देशों में एक दूसरे से आगे निकलने की जद्दोजहद ने इस पृथ्वी को इतना अधिक बारूद का ढेर दे दिया है जिससे यह धरती कई बार पूरी तरह से नष्ट हो सकती है.
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मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रशांत महासागर में तापमान में हो रहे बदलाव की वजह से भी इस तरह के तूफानों में तेजी आ रही है. भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक एलएस राठौर के अनुसार प्रशांत महासागर में तापमान में काफी बदलाव देखा जा रहा है. ऐसा पहले
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आज से ठीक 100 साल पहले दुनिया के जाने-माने भारतविद और आईसीएस विन्सेंट स्मिथ को शायद यह हकीकत सबसे अधिक मालूम थी. शायद उनको यह भी अहसास था कि प्रजातंत्न में फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट चुनाव पद्धति और आधुनिक शिक्षा जातिवाद को चरम स्तर तक सौदेबाजी करने से नही
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इस बार एक धारणा यह बनी है कि चीन के रुख में बदलाव लाने की ही मंशा से प्रतिबंध वाले प्रस्ताव में पुलवामा और किसी अन्य आतंकी घटना में इस आतंकी का हाथ होने के उल्लेख से बचा गया.
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उक्त मक्खीमार आंदोलन ने एक और बात स्पष्ट कर दी है. मक्खी मारना बड़ा महंगा शगल है. काशी नगरसेविका इस कार्य में चालीस हजार रुपया खर्च करने वाली हैं. इस विशाल औद्योगिक स्तर के साथ ही केवल हाथ से मक्खी मारने के गृहोद्योग को भी योजना में सम्मिलित किया गया
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अभी थोड़े ही अरसा पहले चुनाव आयोग की इतनी साख थी कि वह देश की सबसे बड़ी अदालत से कह रहा था कि उसकी तरह उसे भी अपनी मानहानि करने वालों को दंड देने का अधिकार मिलना चाहिए ताकि राजनीतिक दल व प्रत्याशी उसके फैसलों की नाहक आलोचना न कर सकें.
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