कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: चुनाव आयोग की निष्पक्षता दिखे
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 4, 2019 06:21 AM2019-05-04T06:21:41+5:302019-05-04T06:21:41+5:30
अभी थोड़े ही अरसा पहले चुनाव आयोग की इतनी साख थी कि वह देश की सबसे बड़ी अदालत से कह रहा था कि उसकी तरह उसे भी अपनी मानहानि करने वालों को दंड देने का अधिकार मिलना चाहिए ताकि राजनीतिक दल व प्रत्याशी उसके फैसलों की नाहक आलोचना न कर सकें.
कृष्ण प्रताप सिंह
सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव की उस याचिका पर सुनवाई छह मई तक टाल दी है, जो उन्होंने प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी व भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह द्वारा आदर्श चुनाव आचार-संहिता के उल्लंघन की शिकायतों पर चुनाव आयोग द्वारा एक महीना बीत जाने के बावजूद कार्रवाई न किए जाने के विरुद्ध दायर कर रखी है. पहले न्यायालय उनकी याचिका पर गत मंगलवार को ही सुनवाई करने वाला था, लेकिन अपरिहार्य कारणों से उसने इसे शुक्रवार तक के लिए टाला और अब छह मई की तारीख तय की है. इसके साथ ही उसने आयोग से कहा है कि इन दोनों महानुभावों के खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन की जितनी भी शिकायतें हैं, उन पर छह मई से पहले फैसला ले ले.
इस बीच चुनाव आयोग एक बार फिर ‘जाग’ गया है. वैसे ही जैसे गत 16 अप्रैल को जागा था, जब सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे उल्लंघनों के खिलाफ बेबसी का ढोंग रचने के लिए न सिर्फ उससे कैफियत तलब की बल्कि फटकार भी लगाई थी. लेकिन उसके दोनों बार के जागने के नतीजों में एक बड़ा फर्क है : पिछली बार जागा तो उसे अपनी शक्तियां याद आ गई थीं और उसने उनका इस्तेमाल कर न सिर्फ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्नी योगी आदित्यनाथ बल्कि बसपा सुप्रीमो मायावती व सपा नेता आजम खां जैसे कई नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की थी. लेकिन इस बार उसने प्रधानमंत्नी के खिलाफ की गई शिकायतों पर जिनमें से एक को पहले उसने ‘गायब’ बता डाला था, कोई कार्रवाई करने के बजाय उन्हें क्लीन चिट देने का रास्ता अपना लिया है.
अभी थोड़े ही अरसा पहले चुनाव आयोग की इतनी साख थी कि वह देश की सबसे बड़ी अदालत से कह रहा था कि उसकी तरह उसे भी अपनी मानहानि करने वालों को दंड देने का अधिकार मिलना चाहिए ताकि राजनीतिक दल व प्रत्याशी उसके फैसलों की नाहक आलोचना न कर सकें. लेकिन अब कहा जाने लगा है कि इस लोकसभा चुनाव के नतीजे आने पर जो भी पक्ष जीते या हारे, चुनाव आयोग नतीजे आने से पहले ही हार गया है. उसकी जीत तो तब मानी जाती, जब वह चुनावों की निष्पक्षता के नए प्रतिमान बनाता नजर आता.