भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: देश की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ दिखाई देना भ्रामक तो नहीं!
By भरत झुनझुनवाला | Published: May 5, 2019 06:04 AM2019-05-05T06:04:33+5:302019-05-05T06:04:33+5:30
प्रधानमंत्नी द्वारा बताई गई ये उपलब्धियां सही दिखती हैं और इन्हें हासिल करने के लिए उन्हें बधाई. लेकिन अर्थयवस्था की मूल स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं दिखती है.
वर्तमान चुनाव हमें एनडीए सरकार के आर्थिक कार्यो की समीक्षा करने का अवसर प्रदान करता है. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के इस कथन में सत्यता है कि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचारमुक्त शासन दिया है, नई आईआईटी और आईआईएम की स्थापना की है, ग्रामीण विद्युतीकरण में सुधार किया है कि हर घर को बिजली मिल सके, मंगल ग्रह पर भारत ने अपना यान भेजा है, किसानों को मासिक निश्चित रकम उपलब्ध कराई है और सोलर एनर्जी में तीव्र वृद्धि की है. प्रधानमंत्नी द्वारा बताई गई ये उपलब्धियां सही दिखती हैं और इन्हें हासिल करने के लिए उन्हें बधाई. लेकिन अर्थयवस्था की मूल स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं दिखती है.
प्रधानमंत्नी ने बताया कि विश्व बैंक द्वारा बनाए गए व्यापार करने की सुगमता के सूचकांक में भारत का स्थान 142वें से उछल कर 77वें पर आ गया है. यह बात सही है. लेकिन इसमें भी रहस्य छिपा हुआ है. इस सूचकांक को बनाने में विश्व बैंक द्वारा लगभग 10 कारकों का अध्ययन किया गया जैसे बिजली कनेक्शन लेने में कितना समय लगता है, अथवा प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन में कितना समय लगता है. मैंने भारत की रैंक में सुधार की पड़ताल की तो पाया कि इस सुधार में विशेष योगदान सरकार द्वारा लागू किए गए दिवालिया कानून के कारण है.
इस कानून में उद्यम को बंद करने एवं उसके द्वारा बैंक से ली गई रकम को वसूल करने की त्वरित व्यवस्था है. उद्योग को बंद करने को निश्चित रूप से सुगम बनाया गया है. लेकिन यह सुगमता उद्योग को बंद करने की है न कि उद्योग को चलाने की अथवा नए उद्योग को खोलने की. विश्व बैंक ने चार अन्य कारकों में भारत की परिस्थिति में गिरावट बताई है: एक, नए उद्योग को चालू करने में लगने वाला समय, विदेश व्यापर, प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन में लगने वाला समय एवं नए बिजली के कनेक्शन लेने में लगने वाला समय. समग्र रूप से देखा जाए तो देश में व्यापार बंद करना आसान हुआ है जबकि नया व्यापार चालू करना कठिन हुआ है. इसलिए व्यापार करने की सुगमता के सूचकांक में हमारी रैंक में सुधार से हमें प्रसन्न नहीं होना चाहिए.
प्रमाण यह है कि व्यापार सुगमता में इस सुधार के बावजूद बैंकों द्वारा उत्पादक क्षेत्नों को लोन देने की गति मंद पड़ी हुई है जो कि अर्थव्यवस्था की मंदी को दर्शाता है. वर्ष 2016 से 2018 में बैंकों द्वारा दिए गए कुल लोन में 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई है जो कि सम्मानजनक दिखती है. लेकिन इसमें अधिकतर हिस्सा व्यापार यानी ट्रेड तथा पर्सनल लोन जैसे मकान खरीदने इत्यादि के कारण है. अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्न यानी उद्यम, पर्यटन तथा कम्प्यूटर में बैंक लोन की वृद्धि दर मात्न 0.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है. अर्थ हुआ कि अर्थव्यवस्था के उत्पादक हिस्से मंद पड़े हुए हैं.
लोगों द्वारा खपत के लिए लोन लिए जा रहे हैं न कि उत्पादन के लिए. ऐसा भी संभव है कि लोगों की आय कम होने के कारण वे ऋण लेकर खपत कर रहे हैं. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लोगों को फैक्ट्री और कॉल सेंटर स्थापित करने के लिए लोन लेने थे. अत: व्यापार की सुगमता के सूचकांक में सुधार को अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता से जोड़ना अनुचित लगता है.
हमें विचार करना चाहिए कि भ्रष्टाचार उन्मूलन, आईआईटी आईआईएम स्थापित करना, ग्रामीण विद्युतीकरण, मंगल ग्रह तक पहुंचने, किसान को रकम देने एवं सौर ऊर्जा के विकास के बावजूद उत्पादक उद्यमों, पर्यटन एवं कम्प्यूटर जैसे क्षेत्नों को बैंकों द्वारा लोन कम क्यों दिए जा रहे हैं, जीएसटी की वसूली सपाट क्यों है और रोजगार व छोटे उद्योग दबाव में क्यों हैं?